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N S Yadav GoldMine
आज हम माता त्रिजटा के बारें में जानेंगे त्रिजटा कौन थी व उसको माता सीता से सहानुभूति क्यों थी !! 🌇🌇 {Bolo Ji Radhey Radhey} त्रिजटा कौन थी :- 🌰 त्रिजटा रावण की नगरी में एक ऐसी राक्षसी थी जिसका जन्म तो राक्षस कुल में हुआ था लेकिन उसका हृदय देवियों के समान पवित्र था। वह रावण को दुष्ट व पापी समझती थी व भगवान विष्णु में विश्वास रखती थी। रावण के द्वारा माता सीता का अपहरण किये जाने के पश्चात उसे अशोक वाटिका में रखा गया था जहाँ माता त्रिजटा को ही उनकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा गया था। उस समय उसने अपनी बुद्धिमता के साथ माता सीता को संभाला था। त्रिजटा का जन्म :- 🌰 त्रिजटा के जन्म के बारें में वाल्मीकि रामायण व तुलसीदास की रामचरितमानस में तो नही बताया गया है लेकिन कुछ अन्य भाषाओँ में त्रिजटा के बारें में भिन्न-भिन्न विवरण सुनने को मिलते हैं। सबसे प्रमुख मान्यता के अनुसार त्रिजटा को रावण के छोटे भाई विभीषण व उनकी पत्नी सरमा की पुत्री बताया गया हैं। कुछ अन्य रामायण में त्रिजटा को रावण व विभीषण की बहन के रूप में दर्शाया गया है। किसी भी बात को प्रमाणिक तौर पर नही कहा जा सकता लेकिन यह निश्चित है कि उसका जन्म एक राक्षस कुल में हुआ था फिर भी उसके अंदर राक्षसी प्रवत्ति के गुण नामात्र थे। वह हमेशा माता सीता की सच्ची मित्र के रूप में याद की जाती है। अशोक वाटिका में माता सीता की अंगरक्षक की भूमिका :- 🌰 जब रावण छल के द्वारा माता सीता को पंचवटी से अपने पुष्पक विमान में उठाकर ले आया तो उसने माता सीता को अशोक वाटिका में रखा। रावण के द्वारा माता त्रिजटा को ही सीता की सुरक्षा सौंपी गयी व सभी राक्षसियों का प्रमुख बनाया गया। रामायण में त्रिजटा की भूमिका भी यही से शुरू हुई थी जिसमे उन्होंने स्वयं के चरित्र को ऐसा दिखाया जिससे वह आमजनों के दिल में हमेशा के लिए बस गयी। माता सीता की दुःख की साथी :- 🌰 जब माता सीता रावण के द्वारा अपहरण कर लंका में लायी गयी तब वह अत्यंत विलाप कर रही थी। साथ ही अशोक वाटिका में अन्य राक्षसियां उन्हें तंग कर रही थी। यह देखकर त्रिजटा ने अपनी बुद्धिमता से बाकि राक्षसियों को चुप करा दिया था व माता सीता को ढांढस बंधाया था। त्रिजटा के कारण ही माता सीता को उस राक्षस नगरी में रहने की शक्ति मिली व उनका विलाप कम हुआ थ माता सीता की गुप्तचर :- 🌰 वैसे तो माता त्रिजटा रावण की सेविका थी लेकिन वह भगवान श्रीराम की विजय में विश्वास रखती थी। उसनें अपने व माता सीता के बीच के संबंधों को जगजाहिर नही होने दिया किंतु हर पल वह माता सीता को हर महत्वपूर्ण जानकारी देती थी जैसे कि लंका का दहन होना, समुंद्र पर सेतु बनना, राम लक्ष्मण का सुरक्षित होना इत्यादि। त्रिजटा के द्वारा समय-समय पर माता सीता को जानकारी देते रहने से उनकी हिम्मत बंधी रहती थी। रावण के अंत के बाद माता त्रिजटा :- 🌰 अंत में भगवान श्रीराम व दशानन रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ व उसमें रावण मारा गया। इसके पश्चात विभीषण को लंका का अधिपति बनाया गया व उन्होंने तुरंत माता सीता को मुक्त करने का आदेश जारी कर दिया। त्रिजटा माता सीता के जाने से तो दुखी थी लेकिन प्रसन्न भी थी कि अब सब विपत्ति टल गयी। अग्नि परीक्षा के बाद जब माता सीता भगवान श्रीराम के पास आई तब उन्होंने माता त्रिजटा के वात्सल्य व प्रेम के बारे में उन्हें बताया। यह सुनकर सभी बहुत खुश हुए व भगवान राम व माता सीता ने त्रिजटा को इतने पुरस्कार दिए कि अब जीवनभर उन्हें कुछ करने की आवश्यकता नही थी। साथ ही त्रिजटा को लंका में भी विभीषण के द्वारा अहम उत्तरदायित्व व उचित सम्मान दिया गया। कुछ मान्यताओं के अनुसार माता त्रिजटा भगवान राम व माता सीता के साथ पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या भी आई थी व कुछ दिनों तक उनके साथ रही थी। कुछ रामायण में लंका विजय के बाद यह बताया गया है कि विभीषण ने भगवान हनुमान से अनुरोध किया था कि वे उनकी बेटी त्रिजटा से विवाह कर ले। इसके बाद हनुमान ने त्रिजटा से विवाह किया जिन्हें उन्हें एक पुत्र तेगनग्गा प्राप्त हुआ। कुछ समय तक वहां रहने के पश्चात हनुमान वहां से चले गए। ©N S Yadav GoldMine #boat आज हम माता त्रिजटा के बारें में जानेंगे त्रिजटा कौन थी व उसको माता सीता से सहानुभूति क्यों थी !! 🌇🌇 {Bolo Ji Radhey Radhey} त्रिजटा क
Kamaal Husain
बडी होकर करेगी क्या वो गुडिया सोंचतीं हैं अब जहाँ में फैले हैं शैतान उसको नोंच डालेंगे Read the caption.... ना देश का कानून, ना इसकी अर्थव्यवस्था, ना कोई अंगरक्षक , ना इशतेहार की व्यवस्था, ना PM, ना CM, ना DM, काम आया, ना
CK JOHNY
अपनी हिफाजत के लिए उसने इक अंग रक्षक इस शर्त पर रख लिया, "तेरी खैर नहीं अगर किसी ने मेरी परछाई तक को भी छुआ।" अंगरक्षक
Divyanshu Pathak
जब हम वैदिक संस्कृति के साथ जैन और बौद्ध मतों को स्वीकारने लगे तब बृहत्तर भारत में 16 जनपद थे- काशी,कुरु,अंग,मगध,वज्जि,मल्ल, चेदि, वत्स, कौशल, पांचाल, मत्स्य, सूरसेन, अश्मक,अवंति, गांधार, कम्बोज।आप सब ये तो जानते ही हैं कि 305 ई.पूर्व में चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्युकस को बुरी तरह परास्त कर उसकी पुत्री हेलना से विवाह किया और दहेज़ में कंधार,काबुल,हैरात, और बलूचिस्तान प्राप्त किए।सेल्युकस ने ही चन्द्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज को भेजा था जिसने 'इंडिका' नाम से पुस्तक लिखी। 'इंडिका' के कुछ अंश- कैप्शन में पढ़ें- मेगस्थनीज लिखता है कि- जब भारतीय सम्राट जनता के समक्ष आता है तो नगर में उत्सव मनाया जाता है।वे (राजा) सोने की पालकी में बैठकर आते हैं।उनके अ
Nagvendra Sharma( Raghu)
जलजला है या कोई आफत है ये, पिंजरे में बंद पंछी कि चाहत है ये, जो कहर ढाया प्रकृति पर हमने, शायद उस कहर से आयी कयामत है ये, क्या तुम्हारी प्रगती है या विशाल इमारत है ये, धरती के नीचे दबे जीवों कि इबादत है ये, उन घोंसलों को जो बेरहमी से हटाया था हमने, शायद उस माँ के उजडे घोंसलों कि चाहत है ये, मानव के दानव रुपी रुप का होना है ये, प्रकृति का करवट लेकर सोना है ये, जिस माँ को खून के आँसू रुलाया हमने, शायद उस माँ का अंगरक्षक "कोरोना" है ये ।। जलजला है या कोई आफत है ये, #पिंजरे में बंद पंछी कि चाहत है ये, जो कहर ढाया प्रकृति पर हमने, शायद उस कहर से आयी कयामत है ये, क्या तुम्हारी प