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Mukul Mukund Khodey; कर्मकवी...
शेकोटी..!!! अग्नी... विस्तो... धुनी... Fire... आग अन् अंगेठी..!!! स्वरूप बदललं की नाव बदलतं पण उद्देश एकच़; संबंधी भस्म करती... कधी पाककला सहयोग-आधार कधी मोक्ष संसारी; कधी करी विनाश तर कधी दिवा देवा द्वारी... साऱ्यांच रूपाचं महत्व कधी हवं तसं कधी बेभाण बेलगाम; उग्र उच्छाद तरी हवीहवीशी मर्म उबदार ठरती... शेकोटी..!!! पर्यायी मेणबत्ती... टेंभा... Lighter वा मशाल; प्रवास अंधारातून उजेडाकडे... वाट-वेळ कितीही खडतर काळोखाची का असेना; आधारस्तंभ होऊनी नेते हिमतीने ध्येयाकडे... प्रत्येक संकटास भिडून जिंकण्याची देते शाश्वती..!!! शेकोटी; अग्नी... विस्तो... धुनी... Fire... आग अन् अंगेठी..!!! शेकोटी... . . . 🙂🙏🏼😇 ©कर्मकवी... (Mukul Mukund Khodey) #शेकोटी..!!! https://www.facebook.com/PostWhatFeels/
Kartik Pratap
जब रात ढले लिखना हो कोई गीत तब मत लिखना अपने दिलदार को लिख देना कोई नज़्म जिसमे इंसान, इंसान ही नज़र आए लिख देना अपनी सारी पर्तें खंगाल कर कुछ अटरम-सटरम बिखेर देना खुद को उस गीत में इस तरह कि बस जैसे लिखा जा रहा हो दुनिया का आखिरी गीत #NojotoQuote आखिरी गीत #गीत
Kandari.Ak
sunset nature अभोर जब होगा इक नया दौर आएगा बेशक ये हस्ती मिट चुकी होगी मेरे गीत - गजलों से अटल जी सा एक नाम मेरा भी गुजेंगा हर कवि सम्मेलन इक छोर पे हर मुश्यारे के एक मोड़ पे मेरी लिखी पंक्तियां पढ़ी जाएंगी अभोर जब ......... इक नया दौर ....... ✍️ ©Kandari.Ak #गीत#गीत✍🏻 #ग़ज़ल #shyari
Anuj thakur "बेख़बर"
अधूरी मुहब्बत का किस्सा हूं जो कभी सुनाया जाऊंगा! टूटता आईना हूं, अब क्या किसी को दिखाया जाऊंगा बदक़िस्मती ने बखूबी साथ निभाया ताउम्र मेरा! गीत ही तो हूं खुशी में न सही गम में तो गाया जाऊंगा!! बेख़बर गीत
विनय शुक्ल 'अक्षत'
तुमने गर आवाज दी होती तो मैं पल भर ठहरता। वक्त के तटबंध पर बनकर मैं शीतल जल छहरता। पर तुम्हे तो हार का अवसर दिखाई दे रहा था। एक भयानक त्रासदी का डर दिखाई दे रहा था। मुख से कुछ बोले नहीं तुम पर निगाहें कह रही थी। पीर उर की नैन के कोरों से रिस कर बह रही थी। मौन थे तुम, आँसूओं से थी दुपट्टे पर तरलता, तुमने गर आवाज दी होती तो मैं पल भर ठहरता। प्राण ! तुमको वक्त का था भान न मालूम मुझको। बंदिशों को तोड़ना आसान न मालूम मुझको। पर शिकायत है कि तुम से कुछ छुपाया जा रहा था। सच न कह कर मुझसे मेरा दिल दुखाया जा रहा था। थी नहीं अब प्राण ! तुझमें पहले जैसी वो सरलता, तुमने गर आवाज दी होती तो मैं पल भर ठहरता। पर चलो जो भी हुआ अच्छा हुआ यह मानता हूँ। अब न मुझको जानते तुम मैं न तुमको जानता हूँ। वक्त के हाथों गढ़ी तस्वीर लेकर देख लेंगे। एक दूजे के हृदय की पीर लेकर देख लेंगे। सोचता हूँ कब तलक मुझको सताएगी विफलता, तुमने गर आवाज दी होती तो मैं पल भर ठहरता। ©©©©विनय अक्षत' गीत