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Das Sumit Malhotra Sheetal
शीर्षक:- आजीविका की वस्तुओं में वृद्धि। जब भी आजीविका की वस्तुओं में वृद्धि जब होती, गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों को परेशानी होती। कभी रसोई गैस सिलेंडर के दाम सरकार बढ़ाती, कभी पेट्रोल और डीजल के दाम सरकार बढ़ाती। लोगों के लिए दो वक़्त की रोजीरोटी कमाना मुश्किल, किराने का सबसे ज़रूरी सामान भी खरीदना मुश्किल। आजीविका की वस्तुओं पर तो हम सभी निर्भर करते, आटा, दालें व खाद्य तेल पर तो हम सभी निर्भर करते। आजीविका की वस्तुओं के बिना जीना सबसे मुश्किल है, कभी प्याज़ तो कभी टमाटर भी महंगा सरकार करती है। सरकार देश का बजट नियत्रंण में करने का प्रयास करती, भरसक प्रयासों के बावजूद मंहगाई बढ़ती सदा ही जाती। ©Das Sumit Malhotra Sheetal शीर्षक:- आजीविका की वस्तुओं में वृद्धि। जब भी आजीविका की वस्तुओं में वृद्धि जब होती, गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों को परेशानी होती। कभी रस
sr fighter
हेलो फ्रेंड मेरे पास आपकी जिंदगी को एक नई दिशा एक नई उड़ान देने के लिए अच्छा मौका है अगर आप इच्छुक हैं तो अपना व्हाट्सएप नंबर सेंड करें 6376590469 ©Ramesh kumar ✅ *फायदा हमारा नहीं हम से जुड़े सभी का*🚖✈🏡 NEXMONEY एक ऐसा ऐप जो आपके हर *खर्चे* पर *इनकम* gurenteed cashback देता है दोस्तों इस ऐप को *राज
Agrawal Vinay Vinayak
स्वदेशी मसाला-जगत् के महाराजा ने दुनिया को कहा अलविदा [ READ CAPTAIN ] मसालों के शहंशाह एमडीएच (महाशियाँ दी हट्टी) के संस्थापक धर्मपाल गुलाटी जी का आज 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। कभी तांगा चलाकर आजीविका कमान
Arvind k Jaiswal
RJ Ankesh
Bhaskar Anand
यशवंत कुमार
वो चेहरा 'तुम्हारा' है मेरी बातों का मेरे जज्बातों का मेरे ख्यालों का मेरे सवालों का Read in caption... वो चेहरा "तुम्हारा " है। मेरी बातों का मेरे जज्बातों का मेरे ख्यालों का मेरे सवालों का मेरी तन्हाईयों का मेरी परछाईयों का
Rohit Potdar
का बरं का ? "Koni Pratyaksha pyeksha Gelyavarach jasta prem jaanavte." Haa difference vedich sarkavta aala nahi. Tar aayushya aani tyatli loko, fakt aathvan mahnun rahun jhatil aani tasecha jagave lagtil. का बरं का ?
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
"अधूरापन ही खींचता है अपनी ओर पूर्ण हो जाने के लिए..." अधूरापन भावों का...सोच का....विचारों का...
Mayank Pandit
आज कल लोग सच्चे प्यार की नही, बस कुछ दिन साथ दे ऐसे यार की खोज करते है, आज कल तो सकल भी नही देखते लोग, 10 मिनट की चॅटिंग मे डिरेक् पुरपोज करते है, और कहते है की बेबी हम भी मशूर हो लैला मजनू की तरह इस जमाने मे, मगर उनको क्या पता जिंदगी से अल्बिदा कहना पड़ता है इश्क़ का इतिहास बनाने मे. . poet - mayank pandit आज का का इश्क़