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theABHAYSINGH_BIPIN
White वयां करती है कभी इश्क़, कभी रंज, मेरे दर्द से आँखें चार नहीं करती। नज़रें मिले तो मुड़ जाए कहीं, वो अब मेरे साथ नहीं चलती। स्टेटस से बयाँ करती है अपना दर्द, वो मुझसे अब प्यार नहीं करती। जो कहती थी, "सात खून माफ़ तेरे", गलती पर अब आँखें चार नहीं करती। कसती है अपने शब्दों से मुझपे तंज, सीधे-सीधे अब मुझसे कुछ नहीं कहती। बयाँ करती है मुझसे अपने रंज सभी, वो आँखों से कत्ल-ए-आम नहीं करती। ©theABHAYSINGH_BIPIN #Thinking वयां करती है कभी इश्क़, कभी रंज, मेरे दर्द से आँखें चार नहीं करती। नज़रें मिले तो मुड़ जाए कहीं, वो अब मेरे साथ नहीं चलती। स्टेट
#Thinking वयां करती है कभी इश्क़, कभी रंज, मेरे दर्द से आँखें चार नहीं करती। नज़रें मिले तो मुड़ जाए कहीं, वो अब मेरे साथ नहीं चलती। स्टेट
read moreAsraf Husain
वो लहू क्या है रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है। -मिर्जा ग़ालिब
read moreArjun Singh Rathoud #Gwalior City
शाम की छोटी कविताएँ यहाँ कुछ छोटी-छोटी कविताएँ हैं जो शाम के माहौल को बयां करती हैं: * शाम का नजारा: धूप छिपी, छाया फैली, चिड़ियों की चहचहाट थमी। आकाश रंग बदलता, शाम आई, मन को भाती। * संध्या का समय: आज का दिन हुआ समाप्त, तारे निकले, चाँद आया। हवा चलती, शीतल लगती, मन शांत, आनंद भरा। * शाम की यादें: बचपन की शामें याद आतीं, दोस्तों संग खेलते थे। खेतों में दौड़ते फिरते, खुशी से मन भर जाता।✍️✍️🙏💯😍 ©Arjun Singh Rathoud #Gwalior City शाम की छोटी कविताएँ यहाँ कुछ छोटी-छोटी कविताएँ हैं जो शाम के माहौल को बयां करती हैं: * शाम का नजारा: धूप छिपी, छाया फैली, चिड़ियों की
शाम की छोटी कविताएँ यहाँ कुछ छोटी-छोटी कविताएँ हैं जो शाम के माहौल को बयां करती हैं: * शाम का नजारा: धूप छिपी, छाया फैली, चिड़ियों की
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