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RUPESH Kr SINHA
.................................................. ©RUPESH Kr SINHA सच है ना ये
सच है ना ये
read moreKiran Chaudhary
कितनी अजीब बात है, कि हम मिले और यूँही बिछड़ गए एक दिन।। ©Kiran Chaudhary कितनी अजीब बात है
कितनी अजीब बात है
read moreF M POETRY
Unsplash ये ग़म-ए-हिज़्र है तोहफा दिया हुआ तेरा.. अब भी ताज़ा है ये ग़म मैंने संभाला यूँ है.. यूसुफ़ आर खान... ©F M POETRY #अब भी ताज़ा है ये ग़म....
#अब भी ताज़ा है ये ग़म....
read moreF M POETRY
Unsplash बड़ी अजीब है दरख़्त के पत्तों कि वफ़ा.. शाख गिर जाती है पर साथ नहीं छोड़ते ये.. यूसुफ़ आर खान..... ©F M POETRY #बड़ी अजीब है दरख़्त के पत्तों कि वफ़ा...
#बड़ी अजीब है दरख़्त के पत्तों कि वफ़ा...
read moreF M POETRY
White जो तअल्लुक कभी न था यूसुफ़.. वो निभाना अजीब लगता है.. यूसुफ़ आर खान.... ©F M POETRY #वो निभाना अजीब लगता है....
वो निभाना अजीब लगता है....
read moreAnukaran
ख्वाइशों का काफिला बहुत अजीब है,मेरे दोस्त ! अक्सर वहीं से गुज़रता है, जहाँ से रास्ते न हो। ©Anukaran #GoldenHour ख्वाइशों का काफिला बहुत है अजीब है,मेरे दोस्त ! अक्सर वहीं से गुज़रता है, जहाँ से रास्ते न हो। poetry
#GoldenHour ख्वाइशों का काफिला बहुत है अजीब है,मेरे दोस्त ! अक्सर वहीं से गुज़रता है, जहाँ से रास्ते न हो। poetry
read moreनवनीत ठाकुर
White क्या कहें, ये दौर कितना बदल गया, हर इंसान अपने ही साए से जल गया। इज्जत अब बस नामों तक रह गई है, असलियत झूठ की चादर में ढह गई है। जो सपने कभी जमीर ने सजाए थे, अब दौलत की ठोकर से मिटाए गए हैं। हर ख्वाब जो आँखों में पलता था, उसकी कीमत सिक्कों में लिखी गई है। मगर ये सिलसिला ज्यादा नहीं चलेगा, हर झूठ का नकाब एक दिन गिरेगा। ईमान की चिंगारी फिर शोला बनेगी, और सच्चाई हर अंधेरे को जलेगी। ©नवनीत ठाकुर #ये दौर कितना बदल गया है
#ये दौर कितना बदल गया है
read moreParasram Arora
White धर्म! आखिर ये धर्म है क्या? मैंने तो सिर्फ जीवन को ही जाना है जीवन के अलावा मैंने किसी को नहीं जाना है. और मेरी दृष्टि मे जीवन का अर्थ है. खेत हल कुवा और लहल्हाती फसल जीवन का अर्थ है पत्नी बच्चे और सुखद सफल दाम्पत्य ©Parasram Arora आखिर ये धर्म है क्या?
आखिर ये धर्म है क्या?
read moreParasram Arora
White लहरों की पीठ पर तैर कर तट पर पहुंचने लगी है सीपीया और घोंघे शायद वे समुन्दर के अंदर की हल चल की दास्ताँ समुन्द्र को सुनाने न आये हो वे तट पर ©Parasram Arora दास्ताँ
दास्ताँ
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