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Stories related to पढ़ाकू क्या पढ़ते थे

Parasram Arora

भी क्या दिन थे

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White वे भी क्या दिन थे 
ज़ब मै ठहाके मार कर 
हँसा करता था
 
बिना शिकायत के 
जिंदगी बसर करता था
 
छोटे छोटे खबाब देख 
कर जिंदगी के दिन 
काट लिया करता था
 
रफ्ता रफरता वक़्त गुजरता गया 
और बचपन पीछे छुटता गया 
 और मै जवान होता गया

©Parasram Arora भी क्या दिन थे

Praveen Jain "पल्लव"

#chaandsifarish सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे

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पल्लव की डायरी
घुटन कियो लिबासों में हो रही है
फेशनो के नाम पर 
नंगेपन की नुबायस हो रही है
सादगी अंगों की बनी रहे
सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे
लगता है बाजारू रुख
असभ्यताओ को निमंत्रण दे रहा है
फले फूले बाजार,कट लिबास कर
अंगप्रदर्शन को तज्जबो दे रहा है
                                              प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #chaandsifarish सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे

नवनीत ठाकुर

#खुदा से अब क्या मांगें नवनीत, ये लम्हे कहाँ जाएं, जो कभी थे मोहब्बत, अब वही तमाशा बने हैं हम।

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तेरे प्यार की जो कभी शमा जलती थी मेरे अंदर,
 वही शमा राख हो गई है, और अब जल रहे हैं हम।

वो तुझसे मिलकर जो रास्ते थे रोशन,
अब उसी अंधेरे में खुद को खोते हैं हम।

खुदा से अब क्या मांगें नवनीत, ये लम्हे कहाँ जाएं,
जो कभी थे मोहब्बत, अब वही तमाशा बने हैं हम।

©नवनीत ठाकुर #खुदा से अब क्या मांगें नवनीत, ये लम्हे कहाँ जाएं,
जो कभी थे मोहब्बत, अब वही तमाशा बने हैं हम।

Narender Kumar

दुर थे तो शांत थे पास आए तो शोर हुआ।

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Lili Dey

क्या था

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माना कि तेरे रास्ते और मेरे रास्ते अलग था,
मगर एक रोज मुलाक़ात तो हुआ था,
दोस्ती भी हुई थी और इश्क भी हुआ था,
मेरे इज़हार तुझे नापसंद था और
 तेरे इनकार मुझे चुभता था,
फिर भी हमारे बीच कुछ तो था,
मगर यह बता ही नहीं जो था वह क्या था ?

©Lili Dey क्या था

unique writer

गुण नहीं थे

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Shashi Bhushan Mishra

#आस्तीन के सांप बहुत थे#

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आस्तीन के साँप बहुत थे फुर्सत में जब छाँट के देखा,
झूठ के पैरोकार बहुत थे आसपास जब झाँक के देखा,

बाँट रही खैरात सियासत मेहनतकश की झोली खाली, 
नफ़रत की दीवार खड़ी थी अल्फ़ाज़ों को हाँक के देखा,

जादू-टोना,  ओझा मंतर,  पूजा-पाठ   सभी   कर   डाले,
मिलती नहीं सफलता यूँही धूल सड़क की फाँक के देखा,

धरती से आकाश तलक की यात्रा सरल कहाँ होती है,
बड़ी-बड़ी  मीनारों  से  भी करके सीना चाक के देखा,

कदम-कदम चलता है राही दिल में रख हौसला मिलन का, 
मंज़िल धुँधला दिखा हमेशा सीध में जब भी नाक के देखा,

चलना बहुत ज़रूरी 'गुंजन' इतनी बात समझ में आई, 
हार-जीत के पैमाने पर ख़ुद को जब भी आँक के देखा, 
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'

©Shashi Bhushan Mishra #आस्तीन के सांप बहुत थे#

F M POETRY

#क्या हुआ...

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White ग़मगीन है ये क़ल्ब बेशुमार क्या हुआ..
है क़ल्ब बहुत ज्यादा बेकरार क्या हुआ..

घर बार है हयात है दुनियाँ में सब तो है..
पाया न मैंने सिर्फ तेरा प्यार क्या हुआ..

यूसुफ़ आर खान....

©F M POETRY #क्या हुआ...

हिमांशु Kulshreshtha

क्या ग़ज़ब....

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White क्या ग़ज़ब वाक़या हुआ
वो क़ैद रहे अपनी ख़ुदी में
हम अपना करम करते रहे
वो मोहब्बत निभा न सके
हम मुसलसल इश्क़ करते रहे

©हिमांशु Kulshreshtha क्या ग़ज़ब....

neelu

#GoodMorning #अगर हम फर्क करना भूल जाएंगे कुछ बातों में तो ......क्या होगा क्या हिंदू.. क्या #मुस्लिम क्या गोरा ...क्या काला क्या पतला ..

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White अगर हम फर्क करना भूल जाएंगे 
कुछ बातों में तो ......क्या होगा
क्या हिंदू.. क्या मुस्लिम
 क्या गोरा ...क्या काला
 क्या पतला ..क्या मोटा

आप किस बात का फर्क मिटाना चाहते हैं?,

©neelu #GoodMorning #अगर हम फर्क करना भूल जाएंगे 
कुछ बातों में तो ......क्या होगा
क्या हिंदू.. क्या #मुस्लिम
 क्या गोरा ...क्या काला
 क्या पतला ..
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