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Sneh Prem Chand
काश कोई योग गुरु ऐसा भी होता जो हमें ऐसा अनुलोम विलोम करना सिखा देता, जिसमें अंदर सांस लेते हुए संग प्रेम,सौहार्द,अपनत्व और स्नेह ले जाएं, और बाहर सांस छोड़ते हुए अपने भीतर के ईर्ष्या,द्वेष, अहंकार,क्रोध,लोभ,काम सब छोड़ देवें।। दिल की कलम से ©Sneh Prem Chand अनुलोम विलोम #Hope
Aaradhana Anand
पत्थर की दुनिया जज़्बात नही समझती, दिल में क्या है वो बात नही समझती, तन्हा तो चाँद भी सितारों के बीच में है, पर चाँद का दर्द वो रात नही समझती। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "
Aaradhana Anand
प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "
Aaradhana Anand
मेघ अरे वसुधे जरा बोलो , पिपासित सी प्रपीडित क्यों । तपा करती है हमेशा ही , बताने में प्रव्रीडित क्यो ।। हमेशा ही चाहते घन तुम्हे गर्मी न लगने दें । जरा सी भी अधिक पीडा , झमाझम फिर बरसनें दें ।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "
Aaradhana Anand
सुन्दर प्रकृति हवा सुहानी है , ये इस दौर की ही कहानी है । भूल हुई मानव पच्छताए , रात में नमन कर दीप जाए ।। हुए सब प्रकृति के नतमस्तक , उजाला कर अंधकार भगाए । धरती मां भी हुई प्रसन्न अब , अम्बर में गंग नील धाराएं ।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "
Aaradhana Anand
सुख दुख कि नदी अलौकिक , आनन्दमय चित्त को ढूंढे । कहां से आई ऐ सुन्दर नारी , दिखने मे तू अतिशय प्यारी । देखकर तुझको मन हरसाएं, पाकर तुझको हृदय महकाएं । दिखती सारी दुनिया से न्यारी , सबके तुम जीवन की क्यारी । तुझसे सुबह तुझी से शाम , तू ही सृष्टि की जननी , तुझसे ही जगत कल्याण ।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "
Aaradhana Anand
Alone हृदय गगन की लहरों में , ना जाने कब से झूम रहें है । दिव्य दर्शन के दो पल को , प्रेम पथिक बनकर घूम रहे है ।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "
Aaradhana Anand
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। पिय कू लिखूं भाव असुंअन ते, तडफत सतत मैं अपनेपन ते। भीजत सारी सारी।।1 (मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। सुनत कहत मन ही मन अपने, देखत रहत दिवस भर सपने। रात करत सब कारी।।2 (मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। जगत कहे अवगुण शत मोरे, मर्यादा के बन्धन तोरे। देत है दुनिया गारी।।3 (मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। छूट गये सब रिश्ते नाते, जग के कौतुक तनक न भाते। मेरो गिरिवरधारी।।4 (मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। एक भरोसो बसो है मन में, कोटि कोटि जन तारे क्षण में। अब है प्रियतम की बारी।।5 (मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "