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Mihir Choudhary
तुमने तो हँस के पूछा था बोलो न कितना प्रेम है बोलो कैसे मैं बतलाता बोलो ना कैसे समझता जब अहसास समंदर होता है तो शब्द नही फिर मिलते हैं उन बेहिसाब से चाहत को कैसे कैसे मैं बतलाता बोलो न कैसे दिखलाता बोलो न कैसे समझता तब भी हिसाब का कच्चा था अब भी हिसाब का कच्चा हूँ जो था वो ना मेरे बस का था अब तो जो हालात हुए उनसे तो मैं अब बेबस हूं अब अंदर -अंदर सब जलता है लावा जैसा सा कुछ पलता है धीमे धीमे कुछ रिसता है कुछ टूट-टूट के पीसता है नस-नस मैं जैसे कुछ खौलता है धड़कन बिजली सा दौड़ता है अब बेहिसाब ये यादे है बस बेहिसाब ये चाहत है बोलो क्या वो प्रेम ही था बोलो न क्या ये प्रेम ही है मिहिर... बिरहा
शाहिबा (h.s.)
इश्क में कभी किसी की जमानत नही होती, रहेंगे उम्र भर कैदी मगर बगावत नही होती। बेवजह लोग करते है रुस्वा मोहब्बत को, ये दुनियां ही नही चलती जो मोहब्बत नही होती। ©himanshi Singh #Mic #Rahul आशुतोष यादव
शाहिबा (h.s.)
मेरी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा हो आप, हकीकत में न सही मेरे सपनों में जिंदा हो आप.. miss u babu( baba g) ©himanshi Singh #FathersDay #Rahul आशुतोष यादव
शाहिबा (h.s.)
रूठना आसान है मगर मनाना है मुश्किल, है गुरूर अगर इश्क में तो निभाना है मुश्किल. कसमें वादे प्यार ये तो दो दिन की बातें है, बिना सामंजस्य के उम्र भर साथ निभाना है मुश्किल.. ©himanshi Singh #Loneliness #Rahul आशुतोष यादव
शाहिबा (h.s.)
मैं बीत जाऊँ दिसंबर सी, तुम जनवरी की तरह हमेशा आबाद रहना.. ©himanshi Singh #wetogether #Rahul आशुतोष यादव
शाहिबा (h.s.)
दिल दोस्ती यारियां, है एक तरह की ये साझेदारियां. साझेदारीयां कुछ बातों की, साझेदारीयां कुछ यादों की. कुछ रूठने मानने की, कुछ एक दूसरे को चिढ़ाने की.. बन्द किताबों के झोले से,टिफ़िन चुराने की। समोसे की चटनी बैठने वाली सीट पर गिराने की. साझेदारियां एक दूसरे से लड़कर भी मुस्कुराने की, साझेदारियां लड़खड़ाने पर हाथ आगे बढ़ाने की.. बिना बताए भी परेशानिया समझ जाने की, बिना जताए ही सारी उलझन सुलझाने की.. साझेदारियां प्यार को तकरार की, साझेदारियां एक अटूट विश्वास की.. दिल दोस्ती यारियां , है एक तरह की साझेदारियां... Happy friendship day ©himanshi Singh #FriendshipDay आशुतोष यादव #Rahul
Anuj Ray
" बिरहा की रातें" न धुंआ न कहीं ,आग जला करती है, बिरहा की रातें यूं ही ,खामोश जला करती हैं जलता है बदन आग की लपटों में,दो बूंद की उम्मीद लिये, बेबसी हाथ मला करती है। फागुन का महीना हो, या घनी सावनी रातें, पिया मिलन की आस में, यूं ही ख़ला करती हैं। ©Anuj Ray #बिरहा की रातें