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Imran Shekhani (Yours Buddy)
White हर family के एक बंदा तो ऐसा होता ही है, जो परिवार की परिभाषा ही बदल कर के रख देता है और रिश्तों में रंजिशे पैदा कर देता है। Imran Shekhani ©Imran Shekhani (Yours Buddy) #good_night #Original #YoursBuddy #YoursImran
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White कितना अजीब और दुःख दायक है यह ... कि जिन मां - बाप ने खुद भुखे रह कर बच्चों को खिलाया होता है, वही बच्चे फिर बड़े हो कर दो रोटी भी चार बातें सुना कर खिलाते हैं। Imran Shekhani ©Imran Shekhani (Yours Buddy) #sad_quotes #Original #ownvoice #YoursBuddy #YoursImran
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White बुरे लोग ऐसे होते हैं ... वह खुद किसी को अपने घर से और जिंदगी से नहीं निकालते हैं, बल्कि ऐसा माहौल बना देते हैं कि आप खुद ही उनसे दूर हो जाओ... और उस में भी वह दूर जाने का इल्जाम भी फिर आप ही पर लगाते हैं। इतने चालाक और जालसाज होते हैं, यह बुरे लोग। Imran Shekhani ©Imran Shekhani (Yours Buddy) #sad_quotes #Original #YoursBuddy #YoursImran
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White जिन घरों में मां - बाप खुद को कमजोर समझने लगते हैं, उन घरों में फिर औलादें उनकी कमजोरी , मजबूरी और चुप्पी का पूरा फायदा उठाते हैं। Imran Shekhani ©Imran Shekhani (Yours Buddy) #love_shayari #Original #YoursBuddy #YoursImran
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Unsplash क्या खूब जमाना है, कुछ औलाद के लिए रोते हैं तो कुछ औलाद को ले कर । पर कुछ औलाद को देख कर तो ऐसा लगता है कि बे-औलाद ही रहना अच्छा है। Imran Shekhani ©Imran Shekhani (Yours Buddy) #leafbook #Original #YoursImran #YoursBuddy
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इस जहां में हमारा "मान" तब ही बढ़ता है, जब हमारा "नाम" होता है। और "नाम" तभी होता है, जब हम जी जान लगा कर के , मेहनत कर के सफल होते हैं। ईमरान शेखानी ©Imran Shekhani (Yours Buddy) #leafbook #Original #YoursBuddy #YoursImran
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read moreDr O L Daksh
Aatma Amar h... Deh, nashean h... Karma is Dhatma... ©omlata ##Gita Sar## Krishna##❤🔥Parth##
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read moreAvinash Jha
कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha #संशय #Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
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