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Sai Angel Shaayari
*🌹🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹🌹* *श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,* *हे नाथ नारायण वासुदेवाय!!!* *!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!* *हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे* 🙏🙏 *हमेशा हिम्मत रखो और आगे बढ़ो,* *ताने तो भगवान को भी मिलते है तो* *आप तो सिर्फ एक इंसान है !!* 🙏🙏 *🌹🌹सुप्रभात🌹🌹* *🌹🌹जय श्री राधे कृष्ण 🌹🌹* ©Sai Angel Shaayari #love_shayari *🌹🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹🌹* *श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,* *हे नाथ नारायण वासुदेवाय!!!* *!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष
#love_shayari *🌹🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹🌹* *श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,* *हे नाथ नारायण वासुदेवाय!!!* *!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष #Bhakti
read moreVijay Kumar
Emotional मुफ्त में पाई हुई वस्तु इंसान उसकी वैल्यू नहीं करता । Motivational Poetry poem Emotional Trending Life Life_experi
read morePrerna Singh
हमें समाधान पसंद था उसे समस्या उसे युद्ध पसंद था मुझे संगीत मैं पारदर्शी वो डार्क बस इसी फर्क ने मुझे मिटा दिया उसे बचा दिया मिटना और मिटा देना दोनों अलग क्रियाएं हैं परिणाम दोनों के अलग आएंगे उस दिन कहां जाएगा शायद पिछले जन्म का कोई बुरा कर्म हैं अगला पिछला कुछ होता नहीं जो होता हैं इसी जन्म का होता है तुम्हारा बोया हुआ अगला कटेगा अच्छा या बुरा तुम्हारे वजह से पाएगा जैसे मैंने काटे थे बेटी के रुप में जन्म लेकर मुझे दबाया गया अनचाहा समझकर जैसे अब दबाया जा रहा हैं मलबे में पुरानी वस्तु समझकर मैं वस्तु नहीं विदित उसे भी पर उस के प्रयास में सामिल कई कौरव लालची बन कर ©Prerna Singh हमें समाधान पसंद था उसे समस्या उसे युद्ध पसंद था मुझे संगीत मैं पारदर्शी वो डार्क बस इसी फर्क ने मुझे मिटा दिया उसे बचा दिया मिटना और मिटा द
Arora PR
Beautiful Moon Night प्रेम एक विलक्षण वस्तु है और हम कितनी. आसानी से उसकी ऊष्मा भरी लौ क़ो ख़ो देते है अर्थात प्रेम की ज्योति विलीन हो जाती और हमारे पास उसका धुँवा रह जाता है ©Arora PR प्रेम एक बिलक्षण वस्तु
प्रेम एक बिलक्षण वस्तु #विचार
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
सीता छन्द मापनी:- २१२२ २१२२ २१२२ २१२ वर्ण :- १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते । प्रीति के जो हैं सतायें ईश को ही ढूढ़ते ।। लोग क्यों माने बुरा जो आपसे ही प्रेम है । आपके तो संग मेरी ज़िन्दगी ही क्षेम है ।। १ भूल जाये आपको ऐसा कभी होगा नहीं । दूर हूँगा आपसे ऐसा कभी सोचा नहीं ।। प्रीति तेरी है बसी वो रक्त के प्रावाह में । खोज पाता है नहीं संसार मेरी आह में ।। २ प्रीति का व्यापार तो होता नहीं था देख लो । प्रीति में कैसे हुआ है सोंच के ही देख लो ।। प्रेम में तो हारना है लोग ये हैं भूलते । जीत ले वो प्रेम को ये बाट ऐसी ढूढ़ते ।। ३ प्रेम कोई जीत ले देखो नही है वस्तु ये । प्रेम में तो हार के होता नही है अस्तु ये ।। प्रेम का तो आज भी होता वहीं से मेल है । प्रीत जो पाके कहे लागे नहीं वो जेल है ।। ०१/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सीता छन्द मापनी:- २१२२ २१२२ २१२२ २१२ वर्ण :- १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते ।
सीता छन्द मापनी:- २१२२ २१२२ २१२२ २१२ वर्ण :- १५ राधिका को मानते है कृष्ण को ही पूजते । #कविता
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