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Robin Singh
White Ho Mubarak Apko ye suhani Raat, Mile khwabo me bhi khud ka saath, khule jab apki Aankhen to, Dheron khushiya ho Apke sath. GooD NighT ©Robin Singh GOOD NIGHT 💤 . #Night #GoodNight # #Quote #quotation love quotes in hindi life quotes in hindi quotes love quotes loves quotes
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read moreAnil gupta
A short story गिलास की वजन की कहानी एक प्रोफेसर ने अपने छात्रों को एक गिलास पानी दिखाया और पूछा, "इस गिलास का वजन कितना है?" छात्रों ने जवाब दिया कि यह 200 से 500 ग्राम के बीच हो सकता है। प्रोफेसर ने जवाब दिया, "गिलास का वजन महत्वपूर्ण नहीं है। जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि आप इसे कितना समय तक पकड़ते हैं। अगर मैं इसे एक मिनट के लिए पकड़ता हूं, तो यह हल्का लगेगा। अगर मैं इसे एक घंटे तक पकड़ता हूं, तो मेरा हाथ दुखने लगेगा। अगर मैं इसे पूरे दिन पकड़ता हूं, तो हाथ सुन्न हो जाएगा। गिलास का वजन नहीं बदलता, लेकिन जितना अधिक समय आप इसे पकड़ेंगे, उतना अधिक यह भारी महसूस होगा।" फिर उन्होंने कहा, "जिंदगी की परेशानियाँ भी इस गिलास की तरह हैं। कुछ देर के लिए इन पर विचार करें, तो कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अगर आप इन्हें और अधिक समय तक सोचते हैं, तो ये दर्द देने लगती हैं। और अगर आप इन्हें पूरे दिन सोचते हैं, तो आप बिल्कुल थक जाते हैं। इसलिए कभी भी इस गिलास को नीचे रख दें।" सीख: अपने तनाव और चिंताओं को कुछ समय के लिए छोड़ दें, ताकि वे आपके जीवन को न तोड़ सकें। ©Anil gupta(Storyteller) #story motivational story in hindi
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read moreBirendra yadav
White raja yaduvanshi ©Birendra yadav motivational story in hindi
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read moreharshit tyagi
White तलाशता रहा मैं खुद को दूर तक, अब मुझे तो मेरी परछाई भी कहीं नज़र नहीं आती । ©harshit tyagi #night poetry in hindi
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read moresandeep gautam
White जिंदगी का एक ही उसूल है इज्जत दो और इज्जत लो😈💙 ©sandeep gautam motivational story in hindi
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read moreअक़श
White !!!---: महर्षि की दूरदर्शिता :---!!! ========================= 1875 में मुम्बई में जब कई उत्साही सज्जनों ने स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के समक्ष नया ‘समाज’ स्थापित करने का प्रस्ताव रखा, तब उस दीर्घद्रष्टा ऋषि ने अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए और उन लोगों को सावधान करते हुए कहा – “भाई, हमारा कोई स्वतन्त्र मत नहीं है । मैं तो वेद के अधीन हूँ और हमारे भारत में पच्चीस कोटि (उस समय की भारत की जनसंख्या) आर्य हैं । कई-कई बात में किसी-किसी में कुछ-कुछ भेद है, सो विचार करने से आप ही आप छूट जाएगा । मैं संन्यासी हूं और मेरा कर्तव्य यही है कि जो आप लोगों का अन्न खाता हूँ, इसके बदले जो सत्य समझता हूँ, उसका निर्भयता से उपदेश करता हूँ । मैं कुछ कीर्ति का रागी नही हूँ । `चाहे कोई मेरी स्तुति करे या निन्दा करे, मैं अपना कर्तव्य समझ के धर्म-बोध कराता हूँ । कोई चाहे माने वा न माने, इसमें मेरी कोई हानि लाभ नहीं है ।...आप यदि समाज से पुरुषार्थ कर परोपकार कर सकते हो, तो समाज स्थापित कर लो । इसमें मेरी कोई मनाई नहीं है । परन्तु इसमें यथोचित व्यवस्था न रखोगे तो आगे गड़बड़ाध्याय हो जाएगा । मैं तो जैसा अन्य को उपदेश देता हूं, वैसा ही आपको भी करूंगा और इतना लक्ष्य में रखना कि मेरा कोई स्वतन्त्र मत नहीं है और मैं सर्वज्ञ भी नहीं हूं । इससे यदि कोई मेरी गलती आगे पाई जाए तो युक्तिपूर्वक परीक्षा करके इसी को भी सुधार लेना । यदि ऐसा न करोगे तो आगे यह भी एक ‘मत’ (सम्प्रदाय) हो जाएगा और इसी प्रकार से ‘बाबा वाक्यं प्रमाणम्’ करके इस भारत में नाना प्रकार के मतमतान्तर प्रचलित होके, भीतर-भीतर दुराग्रह रखके धर्मान्ध होके लड़कर नाना प्रकार की सद्विद्या का नाश करके यह भारतवर्ष दुर्दशा को प्राप्त हुआ है, इसमें यह भी एक मत बढ़ेगा । मेरा अभिप्राय तो है कि इस भारतवर्ष में नाना मतमतान्तर प्रचलित हैं, तो भी वे सब वेदों को मानते हैं । इससे वेदशास्त्र रूपी समुद्र में यह सब नदी-नाव पुन: मिला देने से धर्म ऐक्यता होगी और धर्म ऐक्यता से सांसारिक और व्यावहारिक सुधारणा होगी और इससे कला-कौशल आदि सब अभीष्ट सुधार होके मनुष्य मात्र का जीवन सफल होके अन्त में अपना धर्म बल से अर्थ, काम और मोक्ष मिल सकता है । Source-आर्ष दृष्टि ©अक़श motivational story in hindi
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