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Poetry with Avdhesh Kanojia
राम शरण तजि जो चलें अपने मन की राह। कष्ट निमंत्रण देत हैं करते सुख की चाह।। ✍️अवधेश कनौजिया© राम शरण तजि जो चलें अपने मन की राह। कष्ट निमंत्रण देत हैं करते सुख की चाह।। ✍️अवधेश कनौजिया©
Kavi Rahul Jangid { राह़ }
Poetry with Avdhesh Kanojia
राम शरण तजि जो चलें अपने मन की राह। कष्ट निमंत्रण देत हैं करते सुख की चाह।। #राम #ram #dharm #धर्म #hindustani #poetry #life राम शरण तजि जो चलें अपने मन की राह। कष्ट निमंत्रण देत हैं करते सुख की चाह।। ✍️अवधेश कनौज
Sunita Bishnolia
Poetry with Avdhesh Kanojia
शबरी की प्रतीक्षा --------------------- आओ हे मेरे रघुराई। आओ हे मेरे रघुराई।। हृदय कुटी है तुम बिन सूनी बस जाओ तुम आई आओ हे मेरे रघुराई।। नाम तुम्हारा रटा है अब तक बस यही पूँजी कमाई। आओ हे मेरे रघुराई।। तजि वैकुण्ठ मनुज तन धारे त्याग के तव प्रभुताई। आओ हे मेरे रघुराई।। आओ मेरे स्वामी खरारी स्वीकारो सेवकाई। आओ हे मेरे रघुराई।। चुन चुन रखे फल शबरी ये आओ भोग लगाई। आओ हे मेरे रघुराई।। गुरु मतङ्ग तब गए थे कह कर तव आगमन बताई। आओ हे मेरे रघुराई।। शबरी तब से राह है तकती आएंगे सुरराई। आओ हे मेरे रघुराई।। आओ हे मेरे रघुराई। आओ हे मेरे रघुराई।। #ram #dharm #love #respect #wait #waiting #राम #कविता शबरी की प्रतीक्षा --------------------- आओ हे मेरे रघुराई। आओ हे मेरे रघुराई।। हृदय
प्रशान्त कुमार"पी.के."
"कोरोना मुक्ति चालीसा" दोहा "कोरोना" के नाम का, रोना हो जाये बन्द। केवल इससे बचाव के, कर लो आप प्रबंध।। चौपाई जय जय हे कोरोना देवा। चीन ने कीन्ही तुम्हरी सेवा। समझा निज का तुमको रक्षक। बन गये तुम उसके ही भक्षक।। चीन ने तुम पर कीन्ह भरोसा। पर तुम्हरा मन ना संतोषा। जिसने तुमको पाला पोषा। उसको तुमने दीन्हा धोखा।। कर बेवफाई पैर पसारा। पालक जन को तुमने डकारा।। भ्रष्टाचार सा अवसर पाकर। सब देशन मा घुसि गए जाकर।। ध्यान रखो सब बाल वृद्ध जन। युवक, युवती अन्य सब परिजन।। खांसी जुकाम और दर्द गले मा। दिक्कत होय सांस लेवे मा।। यहि लक्षण जो कोई मा पावें। सदा ही इनसे दूरी बनावें।। मास्क लगाई फिरहु तजि डर का। बिना काम नही छोड़हु घर का।। हाथ मिलाई न, करहु नमस्ते। भीड़ भाड़ से नापहु रस्ते।। साफ सफाई सब तनि राखहु। आस पास कुछ मैल न राखहु।। घर पर आई के हाथ मलि धोवहु। निर्भय इधर उधर फिर डोलहु।। "कोरोना" को तजि फिर रोना। जग से मिटि जाय यहि "को-रोना"। हम सब जंग लड़ेंगे तुझसे। हम सब नही डरेंगें तुझसे।। पी.एम. संग हैं हम जनता गण। हर पल हर दिन जीवन के हर क्षण।। स्वस्थ रहेंगे, स्वच्छ रहेंगे। सब निर्भय और मस्त रहेंगे।। अफवाहों पर ध्यान न देवें। कान सुनी पर ध्यान न देवें।। पालन कर सरकारी ज़न का। रखहु सुरक्षित जीवन धन का।। "पी.के." ध्यान बात यहि लावै। कोस दूर कोरोना भागै।। दोहा कोरोना बुरी आत्मा, तुम्हरा सत्यानाश। तुम्हरे बुरे विचार का, होगा महाविनाश।। विश्व के हम सब एक हो, करेंगे ऐसा उपाय। जड़ से तू मिट जाय, फिर कबहूँ ना आय।। कविपं. प्रशान्त कुमार पी.के. साहित्य वीर अलंकृत आशुकवि पाली - हरदोई उत्तर प्रदेश 8948892433 #"कोरोना मुक्ति चालीसा" दोहा "कोरोना" के नाम का, रोना हो जाये बन्द। केवल इससे बचाव के, कर लो आप प्रबंध।।
प्रशान्त कुमार"पी.के."
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 21 जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥ रावण का साम्राज्य, भगवान् राम के बल के थोड़े से अंश के बराबर और हे रावण! सुन,जिसके बल के लवलेश अर्थात किन्चित्मात्र, थोडे से अंश से तूने तमाम चराचर जगत को जीता है,उस परमात्मा का मै दूत हूँ जिनकी प्यारी सीता को तू हर ले आया है ॥21॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम रावण का सहस्रबाहु और बालि से युद्ध जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई॥ समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥ हे रावण! तुम्हारी प्रभुता तो मैंने तभी से जान ली है कि जब तुम्हे सहस्रबाहु के साथ युद्ध करनेका काम पड़ा था और मुझको यह बात भी याद है कि तुमने बालि से लड़ कर जो यश प्राप्त किया था। हनुमानजी के ये वचन सुनकर रावण ने हँसी में ही उड़ा दिए॥ हनुमानजी ने अशोकवन क्यों उजाड़ा? खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥ सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी॥ तब फिर हनुमानजी ने कहा कि हे रावण!मुझको भूख लग गयी थी इसलिए तो मैंने आपके बाग़ के फल खाए है औरजो वृक्षो को तोडा है सो तो केवल मैंने अपने वानर स्वाभावकी चपलतासे तोड़ डाले है और जो मैंने आपके राक्षसों को मारा उसका कारण तो यह है की हे रावण!अपना देह तो सबको बहुत प्यारा लगता है,सो वे खोटे रास्ते चलने वाले राक्षस मुझको मारने लगे॥ हनुमानजी ने राक्षसों को क्यों मारा? जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥ मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥ तब मैंने अपने प्यारे शरीर की रक्षा करने के लिए जिन्होंने मुझको मारा था उनको मैंने भी मारा।इस पर आपके पुत्र ने मुझको बाँध लिया है,हनुमान जी कहते है कि मुझको बंध जाने से कुछ भी लज्जा नहीं आती क्योंकि मै अपने स्वामी का कार्य करना चाहता हूँ॥ हनुमानजी रावण को समझाते है बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥ देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥ हे रावण! मै हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना करता हूँ।सो अभिमान छोड़कर मेरी शिक्षा सुनो॥और अपने मन मे विचार करके तुम अपने आप खूब अच्छी तरह देख लो और सोचनेके बाद भ्रम छोड़कर भक्तजनों के भय मिटाने वाले प्रभुकी सेवा करो॥ ईश्वर से कभी बैर नहीं करना चाहिए जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई॥ तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै॥ हे रावण! जो देवता, दैत्य और सारे चराचर को खा जाता है,वह काल भी जिसके सामने अत्यंत भयभीत रहता है॥उस परमात्मा से कभी बैर नहीं करना चाहिये।इसलिए जो तू मेरा कहना माने तो सीताजी को रामचन्द्रजी को दे दो॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 824 से 835 नाम 824 अश्वत्थः श्व अर्थात कल भी रहनेवाला नहीं है 825 चाणूरान्ध्रनिषूदनः चाणूर नामक अन्ध्र जाति के वीर को मारने वाले हैं 826 सहस्रार्चिः जिनकी सहस्र अर्चियाँ (किरणें) हैं 827 सप्तजिह्वः उनकी अग्निरूपी सात जिह्वाएँ हैं 828 सप्तैधाः जिनकी सात ऐधाएँ हैं अर्थात दीप्तियाँ हैं 829 सप्तवाहनः सात घोड़े(सूर्यरूप) जिनके वाहन हैं 830 अमूर्तिः जो मूर्तिहीन हैं 831 अनघः जिनमे अघ(दुःख) या पाप नहीं है 832 अचिन्त्यः सब प्रमाणों के अविषय हैं 833 भयकृत् भक्तों का भय काटने वाले हैं 834 भयनाशनः धर्म का पालन करने वालों का भय नष्ट करने वाले हैं 835 अणुः जो अत्यंत सूक्ष्म हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 21 जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥ रावण का साम्राज्य, भगवान् राम के
kavi manish mann
#शक्ति_छंद जिसे चाहते थे दिया वो दगा। यहां कौन किसका हुआ है सगा। सिला प्यार का खूब हमको मिला। शिकायत करें क्या करें अब गिला। पाठ - 55 : शक्ति -18 मात्राएँ - अन्त में (212) मापनी - 122 122 122 12 (लगागा लगागा लगागा लगा) "छन्द प्रभाकर" में 18 मात्राओं के छ