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Dr. Bhagwan Sahay Meena
नाम- डॉ. भगवान सहाय मीना पिता - जगदीश नारायण मीना जन्मतिथि - 02 मई, 1978 शिक्षा -(1) स्नातकोत्तर - 4 विषयों में - 1. हिंदी 2. राजस्थानी भाषा 3. इतिहास 4. भूगोल (2) नेट/ जेआरएफ - 10 टाइम (3) बीएड़- हिंदी, नागरिक शास्त्र (4) पीएचडी - हिंदी ( हरिवंशराय बच्चन के साहित्य में सामाजिक चेतना) पता - गांव- बाड़ा पदमपुरा, तहसील- चाकसू, जिला - जयपुर,राजस्थान। सम्प्रति - वरिष्ठ अध्यापक हिंदी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय खेडारानीवास, कोटखावदा, जयपुर। साहित्यिक उपल्ब्धि - 1.अब तक 19 कृतियां प्रकाशित- 1. हरिवंशराय बच्चन के साहित्य में सामाजिक चेतना (शोध ग्रंथ) 2. सामान्य हिन्दी विमर्श व्याकरण 3. सामान्य हिन्दी 4. राजस्थानी भाषा और साहित्य 5. अलंकार सौरभ ( भारतीय काव्य शास्त्र) 6. बेटे की चाहत( नाटक) 7. अमीषा (काव्य) 8. परिवर्तन जीवन का सार ( कथा संग्रह) 9. स्वर्णाभ ( काव्य संग्रह) 10. उम्मीद का सूरज ( काव्य संग्रह) 11. काव्य रश्मियां (काव्य संग्रह) 12. काव्यात्मक अहसास(काव्य संग्रह) 13. महाकाव्यमेध ( काव्य संग्रह) 14. प्रीत की पाती ( काव्य संग्रह) 15.स्पंदन ( काव्य संग्रह) 16. स्पंदन -2 ( काव्य संग्रह) 17. बलिदान को नमन ( काव्य संग्रह) 18. साहित्य सरिता ( काव्य संग्रह) 19. चातक की प्यास ( काव्य संग्रह) 2.अब तक 25 राज्यों में 500 से अधिक रचनाएं विभिन्न समाचार पत्रों/ पत्रिकाओं में प्रकाशित । 3.अब तक अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा में रचनाएं प्रकाशित। 4.आकाशवाणी जयपुर पर कई वार्ताएं प्रसारित। 5. अब तक साहित्य के क्षेत्र में *भारत भारती सम्मान* सहित 250 से अधिक सम्मान पत्र/ पुरस्कार मिल चुके । ©Dr. Bhagwan Sahay Meena #retro जीवन परिचय Anshu writer Ritu Tyagi Sanjana Santosh Narwar Aligarh vabby 731
Bharat Bhushan pathak
चित्रपदा छंद विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण चार चरण, दो-दो समतुकांत भगण भगण गुरु गुरु २११ २११ २ २ नीरद जो घिर आए। तृप्त धरा कर जाए।। कानन में हरियाली। हर्षित है हर डाली।। कोयल गीत सुनाती। मंगल आज प्रभाती। गूँजित हैं अब भौंरे। दादुर ताल किनारे।। मेघ खड़े सम सीढ़ी। झूम युवागण पीढ़ी।। खेल रहे जब होली। भींग गये जन टोली।। दृश्य मनोहर भाते। पुष्प सभी खिल जाते।। पूरित ताल तलैया। वायु बहे पुरवैया।। भारत भूषण पाठक'देवांश' ©Bharat Bhushan pathak #holikadahan #होली#holi#nojotohindi#poetry#साहित्य#छंद चित्रपदा छंद विध
Manya Parmar
Manya Parmar
Vikrant Rajliwal
Manya Parmar
Devesh Dixit
महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये सुर ताल।। बीच वर्ग के हैं पिसे, देख हुए नाकाम। अब सोचें वह क्या करें, बढ़ा सकें कुछ काम।। फिर भी हैं कुछ घुट रहे, मिला न जिनको काम। महँगाई के दर्द में, जीना हुआ हराम।। चिंतित सब परिवार हैं, दें किसको अब दोष। महँगाई ऐसी बढ़ी, थमें नहीं अब रोष।। विद्यालय व्यवसाय हैं, दिखते हैं सब ओर। शुल्क मांँगते हैं बहुत, पाप करें ये घोर।। मुश्किल से शिक्षा मिले, कहते सभी सुजान। महँगाई की मार है, यही बड़ा व्यवधान।। .......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #महँगाई_की_मार #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये
Manya Parmar