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तन्हा
आग लगी है, मेरी बस्ती में...तो बुझाने, वह क्यों जाएगा..?? उस मोहल्ले में... कही उसका मकान... थोड़ी है..!! वह हार मांगता है, मेरी...रोज मंदिरों में जाकर.. समझाओ उसे कोई.. मंदिरो में... बसे भगवान थोड़ी है..!! मैं भी मां के पैर दबा कर... जीत मांग लेता हूं अपनी... मेरी मां भी भगवान है.... मेरे लिए... इंसान थोड़ी है...!! और यह दोस्ती है ना... बुरे वक्त में भी... साथ रहना पड़ता है साहब... जब तीखी लगी जिंदगी... बस तभी याद करो...यह मीठा पकवान थोड़ी है...!! और वह शख्स ...जिसने पीठ पीछे... खंजर से वार किया है, आज... वह भी जिगरी दोस्त.... है मेरा... शैतान थोड़ी है...!! वह हार मांगता है मेरी.... रोज मंदिरों में जाकर... मैं पैर दबाता हूं... मां के.. रोज़ थका-हारा आकर..!!
Rkumar
जाते जाते मैं उसका दिल, दुखता भी तो कैसे हुई जो उससे गलतियां, गिनता भी तो कैसे बोझ हो गया था उस पर, मेरा इश्क़ मेरे यार कि मैं उसे मुहब्बत तले दबाता भी तो कैसे ©Rkumar #जाते_जाते मैं उसका #दिल_दुखता भी तो कैसे हुई जो उससे #गलतियां, गिनता भी तो कैसे #बोझ हो गया था उस पर, #मेरा_इश्क़ मेरे यार कि मैं उसे #मुहब
Akshay Ojha
ना सर्दियों की अकड़ मुझमें ना गर्मियों में गर्म होता हूँ में जुड़ा हूँ ज़मीन से अपनी माँ के पैरो में सोता हूँ में ॥ किसी व्यक्ति की उचाईयों पर पोहचने का अंदाज़ा उसके छोटे छोटे क्षणौ के प्रति विचारधाराओ से किया जा सकता हे। व्यक्ति की विचारधारा उसके बड़े या
Krish Vj
सिसकता रहा हूँ "दर्द" में, मैं यूँ तड़पता रहा सिसकती "आहों" को अपनी, मैं दबाता रहा रात का मुसाफ़िर "ग़म" उससे उलझता रहा दबा ली चीख, "ख़ामोशी" में, मैं ढ़लता रहा सुनकर अफ़साना "इश्क़" का यूँ मैं चुप रहा अपने "ख़ामोश" "लबों" को मैं सिलता रहा बेबसी छाई, नम "आँखों" को मैं देखता रहा पथरा गई "आँखे" व "जार-जार" मैं रोता रहा समेट दर्द-ए-इश्क़ दिल में,मैं "ख़ामोश" रहा ख़ामोश जुबान को सुनने वाला कोई ना रहा ख़ामोशी-एक आवाज़ सिसकता रहा हूँ "दर्द" में, मैं यूँ तड़पता रहा सिसकती "आहों" को अपनी, मैं दबाता रहा रात का मुसाफ़िर "ग़म" उससे उलझता
parinda
Poetry with Avdhesh Kanojia
आपको हास्य रचना सुनाता हूँ मैं। आप बीती पुरुष की बताता हूँ मैं।। भोर से उठके मैं ही सफाई करूँ फिर रसोई में भोजन बनाता हूँ मैं दर्द बेशक़ बदन ख़ूब मेरा करे पाँव पत्नी का प्रतिदिन दबाता हूँ मैं नींद आये उसे सुन के लोरी मेरी दिन चढ़े बन अलारम उठाता हूँ मैं डांट गुस्सा सदा मैं ही झेला मग़र कहती दिन रात उसको सताता हूँ मैं लात खाया बहुत मैंने माँ बाप का मार पत्नी का अक्सर ही खाता हूँ मैं। खैर ये तो लिखा है हँसाने को बस प्रेम उससे बहुत ही जताता हूँ मैं ।। ©Avdhesh Kanojia #गज़ल #हास्य #poem #Poetry #gazal #laugh #Comedy आपको हास्य रचना सुनाता हूँ मैं। आप बीती पुरुष की बताता हूँ मैं।। भोर से उठके मैं ही सफाई
Pulkit Goel
जब मेरे फोन की घंटी बजती है, और नंबर अपरिचित होता है, उस वक़्त मेरे ज़हन में बस एक ही ख्याल होता है, कि कहीं ये फोन उसका तो नही, उत्सुकता से
Poetry with Avdhesh Kanojia
आपको हास्य रचना सुनाता हूँ मैं। आप बीती पुरुष की बताता हूँ मैं।। भोर से उठके मैं ही सफाई करूँ फिर रसोई में भोजन बनाता हूँ मैं दर्द बेशक़ बदन ख़ूब मेरा करे पाँव पत्नी का प्रतिदिन दबाता हूँ मैं नींद आये उसे सुन के लोरी मेरी दिन चढ़े बन अलारम उठाता हूँ मैं डांट गुस्सा सदा मैं ही झेला मग़र कहती दिन रात उसको सताता हूँ मैं लात खाई बहुत मैंने माँ बाप का मार पत्नी का अक्सर ही खाता हूँ मैं। खैर ये तो लिखा है हँसाने को बस प्रेम उससे बहुत ही जताता हूँ मैं ।। #हास्य_व्यंग्य #poetry #poem #poet #love #lovequotes #life आपको हास्य रचना सुनाता हूँ मैं। आप बीती पुरुष की बताता हूँ मैं।। भोर से उठके म
Adv Sandeep Saini
हिन्द का सिपाही हूँ हिन्द का सिपाही हूँ सीमा पर ठहरे रहता हूँ माँ भारती की सेवा में अपना शीश नवाता हूँ दुश्मनों की टोली में हाहाकार मचाता हूँ हिन्द का सिपा