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RK SHUKLA
प्रभु किन्हा भल एक उपाई। दिन्हि आशीष राम सम भाई।। भ्राता को समर्पित prk भ्राता के लिए
Dayal "दीप, Goswami..
मौसम बदला ,बदल गया हवाओं का रुख, तर धरती का आंचल सूखा, सूख चुका नयन जल, मन मेरे जो मिलन आश बची, अब वो भी हुईं निर्जल, कौन देश तुम सिधार गए, आज भी ढूंढे तुमको नयन । ये कैसा था, नीति का खेल निराला, उज्जवल तन भी पड़ गया जिसमें काला, भोर से सांझ हो गई, पर कैसे मुख जाए निवाला, विरह वेदना की जब सुलग रही हो इस मन में ज्वाला। ©Dayal "दीप, Goswami.. भ्राता विरह वेदना,
Prashant Mishra
निश्छलता का प्रारूप है 'माँ' इस धरती पे स्नेह का सच्चा स्वरूप है 'माँ' इस धरती पे दुनिया में 'माँ' के जैसा नहीं कोई दूजा है भगवान का सच्चा रूप है 'माँ' इस धरती पे --प्रशान्त मिश्रा #"माँ" का रूप
अर्पिता
आज माँ का एक रुप देखा , दिनभर बच्चों के काम किये जा रही थीं, अपनी उलझने भुलाकर उन्हें सुलझाना सीखा रही थी, अपने खट्टे मीठे अनुभवों से उन्हें जीना सीखा रही थी, अपनी सहनशीलता का परिचय जता रही थी, नामचिन चाय की चुस्कियों के साथ दिन बनाये जा रही थी, उनके हर एक पल को तराशती जा रही थी, नाजुक सी कलियों को फूल बनना सीखा रही थी, अपनी सतयुग की कहानियां इस कलयुग में सुनाए जा रही थी, अपने भोलेपन से सभी के दिलों को जीतना सिखाए जा रही थी, सिर्फ वो ही ये सब करे जा रही थीं, अपने बच्चों को प्रत्यक्षता का ज्ञान कराए जा रही थी, अपनी ही ममता को लुटाये जा रही थी, बहुत प्यार दुलार से बात किये जा रही थी, और इन्ही बातो के जरिये सब कुछ सिखाये जा रही थी, ज़िन्दगी का मतलब बताये जा रही थी, इस संसार मे अपनी महत्वता को बनाये जा रही थी, थोड़ा ध्यान से देखा तो साक्षात देवी सी प्रतीत हो रही थी।। ©अर्पिता #माँ का रूप