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Richa Dhar
White तुम्हें ही सोचूं ये कहाँ तक ठीक है चांद तारों से कहकर तुम्हें मनाऊं ये कहा तक ठीक है आँखों की ज़ुबान तो बेजुबान भी समझ लेते हैं समझदारों को समझाऊं ये कहा तक ठीक है चांद,तारों,पेड़,पौधों,पशु,पक्षियों किससे नहीं तेरा ज़िक्र किया सब समझ गए,एक तुम न समझो ये कहाँ तक ठीक है काश बिना कहे पढ़ लेते तुम मेरा मन तुम्हें हर बात समझाऊं ये कहाँ तक ठीक है ©Richa Dhar #goodnightimages कहाँ तक ठीक है
#goodnightimages कहाँ तक ठीक है #कविता
read moreNeel Lokesh Mishra (Insta-Neel3.Mishra)
संघर्षों के बिना अनुभव कहाँ #neel.mishra3 #viral #PoeticAntakshri #Quote
read moreShashi Bhushan Mishra
हाँ में हाँ है, ना में ना है, झूठी कसमें प्रेम कहाँ है, मन भरमाये यहाँ वहाँ है, ढूँढी खुशियाँ जहाँ तहाँ है, बंद है आँखें दृष्टि कहाँ है, तन्मयता से ढूँढ जहाँ है, अंतर्मन यह दर्द सहा है, भवसागर में जब नौका है, ज्ञान से गुंजन पार हुआ है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज ©Shashi Bhushan Mishra #प्रेम कहाँ है#
Manish Raaj
क़रार वाली बात कहाँ ------------------------ महफ़िल के शोर में वह क़रार वाली बात कहाँ मैंने अक़्सर मन के आँगन में बरसों के सुकूं की प्यास को बुझते देखा है मनीष राज ©Manish Raaj #क़रार वाली बात कहाँ
दिनेश
उसे अपने वक़्त पर कुछ इस कदर गुरूर हो गया , कि एक पल में एक उम्र का ख्वाब चकनाचूर ही गया । जो सोचता था कि वो पूरा घर चलाता है , आज एक कदम न चल पाया इतना मजबूर हो गया । कुछ आये अपनापन जताने उनके आने से आधा दर्द दूर हो गया , पर दुख में साथ देती है सिर्फ पत्नी ये अहसास जरूर हो गया। ©दिनेश #Raat कोई कारवां कहाँ ? कोई काफिला कहाँ ?
#Raat कोई कारवां कहाँ ? कोई काफिला कहाँ ?
read moreShashi Bhushan Mishra
दिल के जैसा जमीं कहाँ है, पर आँखों में नमी कहाँ है, क्यों नाहक हो परेशान तुम, सोचो तुझमे कमी कहाँ है, हुई जेल से फक़त रिहाई, बात ख़ुशी की गमी कहाँ है, मौसम है बदला-बदला सा, वक्त की आँधी थमी कहाँ है, ढूँढ रहे हो हरियाली को, चाचर धरती शमी कहाँ है, गम के बादल घिरकर आए, अब बारिश मौसमी कहाँ है, बिन सौगात मिलन बेमानी, तुम ही तुम हो हमीं कहाँ है, आशाओं के दीप से 'गुंजन', जगमग घर है तमी कहाँ है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #दिल के जैसा जमीं कहाँ है#
Sangeeta Kalbhor
White नही चाहता.. सुनते क्यूँ नही अब तुम पुकार कब से लगा रहा हूँ थककर बैठा हूँ देखो मैं कब से खुदको जगा रहा हूँ हारुँगा नही मैं कभी उलझन में मगर पड़ गया हूँ कहाँ जाऊँ कैसे जाऊँ सोचविचारों में अड़ गया हूँ आओ , आओ मुझे बताने और आओ मुझे समझाने नही नही मैं नही चाहता टूटकर यूं बिखर जाने..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #Night नही चाहता.. सुनते क्यूँ नही अब तुम पुकार कब से लगा रहा हूँ थककर बैठा हूँ देखो मैं कब से खुदको जगा रहा हूँ हारुँगा नही मैं कभी उलझन