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pramod malakar
***!!* फूलों को भी नहीं पता उसे जाना कहां है *!!*** ////////////////////\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\ फूलों को भी नहीं पता उसे जाना कहां है, स्वर्ग भी यहां और नर्क भी यहां है। मंदिर जाना है या शमशान, मस्जिद जाना है या कब्रिस्तान। " या " गले का माला बन कर दरिंदों का, सहना है फूलों को अपमान। वीर शहीदों के लाशों पर बिछकर, होगा फूलों को अभिमान। फूलों को भी नहीं पता उसे जाना कहां है, उमंग भी यहां और बसंत भी यहां है। सूखकर पौधों में पंखुड़ियों को, हवाओं में शैर करना है। " या " फूलों को पांव तले कुचल कर, चरणों का धूल बन जाना है। निरंतर शादी के मंडप में सज कर, रंग बिरंगे फूलों को होगा अहंकार। फूलों को भी नहीं पता उसे जाना कहां है, खौफनाक मंजर भी,तूफानी बवंडर भी यहां है। *********************************** प्रमोद मालाकार की कलम से ©pramod malakar #फूलों को भी नहीं पता उसे जाना कहां है!!
Vickram
गुरु का होना भी बहुत जरूरी है जिंदगी में,, ये कोई भी हो सकता है किसी भी रूप में,, मां बाप भाई बहन या कोई मित्र ही सही,, जो तेरे अंधेरों में उजाले का काम करता है,, कयी बार पत्नी भी दिखाती है मार्ग पती को,, इस जीवन के कयी किरदार निभाती है,, बदकिस्मत हैं वो लोग जो है बिना गुरु के,, एक बार फिर इकलव्य सी कहानी हो जाती है हर किसी के तकदीर में कहां है बेहतर इंसान जिंदगी अंधेरे में ही खोकर रह जाती है,, गुरु,,,,,,,,,, ©Vickram #God गुरु भी कहां मिलता है हर किसी को
Akanksha Jain
चलते चलते......ये ख्याल आया मुझको। रस्ता अनजाना सुनसान नजर आया मुझको। है मंज़िल कहां, कहां को है जाना। जेहन में यही,एक सवाल आया मुझको। ©Akanksha Jain कहां को है जाना? #snowpark
Vickram
हमेशा ज्यादा सोचना भी हल नहीं निकलता कयी बार ज्यादा सोचने से काम बिगड़ जाते हैं सही है रुककर ठंडे दिमाग से ही सोचना बांकी सब कुछ छोड़ कर देखो उसके हाथ में ©Vickram ज्यादा सोचना भी कहां सही है,,
Anuj Ray
दिल भी इज़हार कहां करता है" मिलते ही नज़र ,बेचैन जिगर, दिल ख़्वाब में आहें भरता है। कहने में शर्म सी आती है, शायद ऐ दिल, सचमुच उसपे मरता है। छुप छुप कर हर दिन किसी बहाने से, वो भी गलियों में पीछा करता है। फिरने दो थोड़ा आगे पीछे, दो-चार मुलाकातों में, "दिल भी इजहार कहां करता है"। ©Anuj Ray # दिल भी इज़हार कहां करता है"
Pradeep Kalra
Nisankoch Singh
कुछ सवाल भी अधूरे रह जाते है जवाबों की तरह। कुछ ख़्वाब भी टूट जाते हैं सितारों की तरह। कुछ राहें भी छूट जाती है मुसाफिरों की तरह। ये तो जिंदगी का दस्तूर हैं यहाँ कौन बेकसूर हैं। कुछ अपने भी रूठ जाते है जिंदगी की तरह। पतझड़ के मौसम में बहार कहां जी लो जिंदगी, इसका भी एतबार कहाँ।
Dharmender Bisht
इस मौसम सुहाने में भी सुकूं कहां दिल के मारो को सुना है ये ठंडी हवाएं भी सुलगाती है जख्मों को.... इस मौसम सुहाने में भी सुकूं कहां दिल के मारो को सुना है ये ठंडी हवाएं भी सुलगाती है जख्मों को....