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Shashi Goutam
New Year 2024-25 नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। साल आयेंगे, साल जाएंगे, लेकिन याद वही रखे जाएंगे, जो इतिहास बनायेंगे। saal aayenge saal jayenge, lekin yaad wohi rakhe jayenge Jo itihas banayenge. Happy New Year ©Shashi Goutam #NewYear2024-25 #itihas #history #goal #life #struggle #zindgi #unity
Deepakraj
Unsplash mera naam hai Raj aur Delhi se Delhi support kar lijiye aur tumhare ko bhi support Kiya jaega aur ine Kami bahut badhiya hone wali Hai aur Tum logon Ko bhi cutie cutie aur naye sal ka mubark hai aur bahut badhiya hone wala hai naye sal ka event 🌹😎 ©Deepakraj #library naya sal ka event
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read moreVIMALESH YADAV
Unsplash The Hindu Akhabar ka Itihas वर्ष 1878 में मद्रा स हा ई को र्ट की जजों की बेंच में सर टी मुथुस्वा मी अय्यर को , शामिल करने के खिलाफ एंलो इंडियन अखबार विरोध कर रहा था । इस विरोध के खिलाफ कानून की पढ़ाई करने वाले चार छात्रों और दो शिक्षकों ने चेन्नई से साप्ताहिक पत्रिका द हिंदू अखबार की शुरुआत की इस अखबार के संपादक जी . सुब्रमण्यम अय्यर और मैनेजिंग डायरेक्टर एम.वी . राघवाचार्य थे। अखबार की शुरुआत केवल एक रुपये 12 आने से हुई 1905 में एस. कस्तूरी ने इसे अपने अंतर्गत ले लिया । तब से इसका संचा लन कस्तूरी परिवार ही कर रहा है। द हिंदू समाचार पत्र का मुख्यालय चेन्नई में है। इसकी शुरुआत साप्ताहिक पत्रिका के रूप में हुई, जो आगे चलकर 1829 में दैनिक समाचार पत्र बन गया । यह भारत के शीर्ष दैनिक अंग्रेजी समाचा र पत्रों में से एक है, जो ज्यादातर दक्षिण भारत में पढ़ा जा ता है। ©VIMALESH YADAV The hindu newspaper ka itihas #Book #TheHindu #vimaleshyadav
The hindu newspaper ka itihas #Book #Thehindu #vimaleshyadav
read moreमलंग
कई दिन हुये, उस रास्ते से गुजरे जो तुम तक जाती थी। सुना है, रास्ते के पेड़ सूख गये, हाँ सूखना ही था उनको... मुहब्बत जो कि थी बहारों से, बहार चली गयी और रह गया पीछे ठूंठ। हम भी तो ऐसे ही हैं, ये घाट, ये गलियाँ सब बेकार... शहर बनारस अब रास नहीं आता। कुछ छूट गया या फिर छोड़ दिया, यह सवाल आजतक सवाल ही है.... घर के एक कोने में हमारा कमरा है जिसके रंग अब फीके हो चुके हैं। दिल थम सा गया है। शायद धड़कन मद्धम-सी हो रही है, तुम समझी नहीं... कुछ ठहर गया और हम बेपरवाह चलते रहे, न जाने कब अकेले हुये पता न चला। निदा फ़ाजली ने कहा था 'रोज जीता हुआ, रोज मरता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी', ससुरी किस्मत ने अपने दिल पर ले लिया। सांस चलना ही अगर जिन्दा रहना होता तो फिर मुहब्बत की जरूरत न थी.... शहर की आब-ओ-हवा बदल गयी पर हम अब भी वहीं हैं, तनहा, अकेले, एकदम अंधेरे में.... वहीं जहाँ तुम हमें छोड़ गयी। ❤️ 'सोच' ©मलंग #naya