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Ujjwala Sahu
अल्फ़ाज़ों के सिमटते दायरे थे जो इन दिनों बढ़ने लगे हैं वो बिखरे अफ़साने हमारे आज फिर अज़ीज़ लगने लगे हैं रुख भी अज़ब है फ़िज़ाओं का टूटे ख्वाब भी जुड़ने लगें हैं ये जो आलम और जो उल्फत है रिश्तों की कश्मकश मिटाने लगे हैं बेचैनी के इस आलम में सारे अब होश में आने लगें हैं अपनो को ज़िन्दगी से हारता देख वो रिश्तों में अपनापन बढाने लगे हैं कुदरत की नियामत भी देखिए जो दूर थे वो अब पास आने लगे हैं -उज्ज्वला(परछाई) #नियामतें
Dinesh Kumar
दवा और दारू में क्या अंतर हे दवा एक गर्लफ्रेंड हे जिसकी एक्सपायरी डेट आ जाती हे पर दारू एक बीबी की तरह होती हे जितनी पुरानी होती हे उतना सर चढ़के बोलती हे #NojotoQuote सोच अपनी अपनी बीबी अपनी अपनी
Shailendra Sameer
कोई कहती है कि ज़िन्दगी में इतना बुरा हो चुका है कि अब कुछ भी बुरा होता तो बुरा नहीं लगता 🙃 और , मैं कहता हूँ - "ज़नाब आप इतना सोच भर रही , इतना क्या कम है बेहतरी के लिए ☺️ और ये जान लीजिए , ये ज़िन्दगी है न हर पल कुछ न कुछ सिखाता है , आपको बेहतर बनाता है। इसलिए ज़िन्दगी जीने का नाम है क्योंकि जब परिस्थिति विपरीत होती है तो हमें बुद्धिमता की जरूरत नहीं , अनुकूलन की जरूरत पड़ती है 😊 और हाँ ,ध्यान रहें कि परिस्थिति हमेशा विपरीत नहीं होती और दुःख की भी अपनी सीमा होती है ☺️ शुक्रिया ध्यान रखिये अपना , आपका समीर 🙏❤️ ©Shailendra Sameer अपनी अपनी बातें और अपनी अपनी समझदारी 😍 #OneSeason
SUSHIKRI MURYAVANSH
जिन्दगी मे सब कुछ अपने बारे में समझा देना ही काफी नहीं है, कही-कही सामने वाले को भी समझना बहुत जरूरी होता है ©SUSHIKRI MAURYVANSH समझ अपनी-अपनी
Nand Gopal Aghnihotri
कुछ पथिक रास्ते में पड़े कांटों को हटाकर, उन कांटों से बाड बना देते हैं, कि दूसरे आसानी से चल सकें । कुछ ऐसे भी हैं जो उन कांटों को फिर से रास्ते में डाल देते हैं, कि दूसरा न आ सकते ।। समझदारी अपनी-अपनी
Ram Pravesh Kumar
सिर्फ ताकत से जंग जीती नहीं जा सकती है यारों वरना रावण तो बलशाली था फिर भी हार गया क्यों? ताकत का भी कहाँ इस्तेमाल करना है उसके लिए बुद्धि चाहिए लेकिन रावण तो बुद्धिमान भी था फिर हार गया क्यों? क्योंकि बुद्धि का इस्तेमाल सही तरीके से नही किया। इसलिए ताकत नहीं भी हो तो बुद्धि का इस्तेमाल करो किसी को मात देने के लिए। हर मुकाम पा सकते हो। #विचार#अपनी अपनी
ओमप्रकाश सूँटी हरिॐबाबा अटड्डा
चलते जा रहा हूँ, पता नही यह रास्ता कब खत्म होगी | मंजिलें अपनी, अपनी