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F M POETRY
New Year Resolutions जैसे हर साल गुज़र जाता है.. दर्द-ओ-ग़म क्यों गुज़र नहीं जाते.. यूसुफ़ आर खान. ©F M POETRY #newyearresolutions दर्द-ओ-ग़म....
#newyearresolutions दर्द-ओ-ग़म....
read more- Arun Aarya
23-12-2024 बहोत ज़्यादा तलाशने के बाद मिला है , तब जाकर ज़िंदगी मुझें आबाद मिला है ! तुम भागते-फिरते रहो नौकरी-छोकरी के पीछे ,, मैं इसी में ख़ुश हूँ जो मुझें ज़ायदाद मिला है..!! - अरुन आर्या ©- Arun Aarya #HumptyKavya #मेरी शायरी ही मेरी ज़िंदगी है
#HumptyKavya #मेरी शायरी ही मेरी ज़िंदगी है
read moreAnuj Ray
White दर्द ओ ग़म" उनसे बिछड़ने का दर्द ओ ग़म ज़िगर से आज तक कभी गया ही नहीं। कुछ लोग दर्द ओ ग़म की दवा ढूंढने लगते हैं, हमें इस क़ाबिल कोई जचा ही नहीं ©Anuj Ray # दर्द ओ ग़म "
# दर्द ओ ग़म "
read moreLalit Saxena
हमने ख़ुद को ज़िंदा जलते देखा है रोशन दिन आँखों में ढलते देखा है सांस-सांस पीर कसमसाती रहती मुर्दा सपने पांवपांव चलते देखा है उगते सूरज के जलवे देखे हर दिन उदास शाम को भी उतरते देखा है ख़्वाहिशें, सारे ही रंग उतार देती है उम्रदराज़ को भी, मचलते देखा है दरवाजे पर नहीं कोई दस्तक हुई हर सुब्ह उन्हें वैसे गुज़रते देखा है दिन बुरे हों, तो ये दरिया भी सूखे बुलंदियों को भी, बिखरते देखा है ©Lalit Saxena ग़ज़ल
ग़ज़ल
read moreMayuri Bhosale
White ओ पहली मुलाकात..... दिल मे दबी हुई वो हसी लगती है हमे आँखो मे अभी भी वैसी ही फसी सब कुछ लुटा दिया है हमने तुम पर मगर दिल धडकते ही आ जाते है होशपर आप को देखा तो ऐसा लगा की उडणे लगे है हवा में वैसे तो चाॅंद तारे शामिल है हमारे मिलन के गॅंवा में कुछ तो खास थी आप में वो बात याद आती है हमें ओ पहली मुलाकात ओ पहली मुलाकात. ©Mayuri Bhosale #ओ पहली मुलाकात
#ओ पहली मुलाकात
read moreमिहिर
White ये क्या पूछा ये बिंदी कैसी लगती ये साड़ी कैसी दिखती है ये काजल ठीक तो लगते है ना ! जो सच पूछो तो ये जचना खिलना मत पूछो तुम बिंदी पर जँचती हो तुम साड़ी पर खिलती हो तुम काजल से तीखी हो तुम सोने से ज्यादा चमकती हो तेरे होने से इनका होना है तू हंसती है तो ये सोना है तेरे आगे इनका क्या मोल अरे ओ बावली तू क्या जाने तू अनमोल !! ©मिहिर #तू क्या जाने
#तू क्या जाने
read moredharmendra kumar yadav
White मज़ाक था या सच जाने क्या सोचकर आया था मेरा अज़ीज़ मुझको गिफ्ट में आईना लाया था वो आसूं सिर्फ आसूं नहीं बाग़ी भी हो सकते थे पर क्या शख्स रहा था वो जो फिर भी निभाया था जिससे ज्यादातर नाराज़ ही रहता रहा ये दिल उसको ही अपने बुरे दिनों में अपने साथ पाया था वो मेरी जान से जिक्र की है कि वो मेरी होती जो मुझे उन दिनों बर्बाद ओ बेकार बताया था ©dharmendra kumar yadav ग़ज़ल
ग़ज़ल
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