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Amit Sir KUMAR
शाख से कुछ पत्ते झड़ते है जिंदगी के कुछ लम्हे गुजरते हैं कहीं किसी की मोत का शोक है कहीं किसी के जन्मोत्सव के गीत बजते हैं जिंदगी एक मेला है सुख -दुख मौसम कि तरह बदलते हैं एक मुसाफिरखाना है मुसाफिरों कि तरह कमरे बदलते हैं पतझड़ के बाद बसंत को आना है लम्हा लम्हा कर वक्त को गुजरते जाना है। ©Amit Sir KUMAR #Parchhai शाख से कुछ पत्ते झड़ते हैं...
Bobby(Broken heart)
Kulbhushan Arora
परी हो तुम Dedicating a #testimonial to Sakshi Trivedi परी हो तुम, सबके दिल से पीड़ा चुरा, उनकी हथेली पे सुख रखती हो, डूबती सांसों को, सहारा देने का हौ
Kulbhushan Arora
परी हो तुम, सबके दिल से पीड़ा चुरा, उनकी हथेली पे सुख रखती हो, डूबती सांसों को, सहारा देने का हौसला रखती हो, तुम्हारी वाणी , मिठास से भरी है, बोलती हो तो फूल झड़ते हैं, गुनगुनाती हो तो, मुस्कानों के ही फूल खिलते हैं, फिक्र सबकी तुम, दिल में रखती हो, सबके लिए प्रार्थना करती हो, मुस्कुराती हो प्रार्थना ही लगती हो, परी हो तुम...... Hi writers 😊 Good afternoon 💐 Collab with this beautiful background 😊 #earlybirdz #eb_angel #YourQuoteAndMine
Writer1
दीदार-ए-वफा हो गया, थम गई जैसे सांसे वही।। नूर-ए-खुदा देखा महबूब, बिस्मिल्लाह करदी वहीं।। रौशन हैं बहुत तेरी आँखें रुख़ तेरा पुरनूर है ।। रुख़सार पर तेरे माहताब जैसा नूर है ।। ना जमीन तांकि हमने , ना ही आसमां पर नज़र करी।। फूल, शम्स और क़मर, हुस्न-ए-शबाब की अदाकारी।। करती हो बातें तो जैसे फ़ूल झड़ते हैं लबों से । संग-ए-मरमर सा बदन तुझमें अजब सरूर है ।। हुस्न-ए-शबाब का, ए हमनशी इस कदर छाया है नशा। गोया छलक रहा है उस के रूखसार का पियाला शराब का।। आदिल-ए-इश़्क में जैसे ही सजदा हमारा हुआ।। गूंज सुभान-अल्लाह बज़्म-ए-महिफल नज़्र हुआ। दीदार-ए-वफा हो गया, थम गई जैसे सांसे वही।। नूर-ए-खुदा देखा महबूब, बिस्मिल्लाह करदी वहीं।। रौशन हैं बहुत तेरी आँखें रुख़ तेरा पुरनूर है ।।
Anjal Singh
"केश" .................. ऐ बाल प्रिये, तु इतना क्यो झड़ता है? क्या नाराज है मुझसे? जो यु रोज बरसता है। ऐ बाल प्रिये, तु इतना क्यो झड़ता है? तु सौंदर्य है मेरा, तब क्यो मुरझा सा जाता है? तु तो शरीर का महत्वपुर्ण अंग कहलाता है। तब मेरे जड़ो को क्यो नही मजबूती से पकड़ता है? बोल किसके आँखो मे तु गड़ता है? ऐ बाल प्रिये, तु इतना क्यो झड़ता है? ~अँजलि सिँह झड़ते हुए बालो पर मेरी छोटी कविता