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Pushpvritiya

क्या कहोगे तुम उसे............. जो बंधिनी... जो बेधीनी, #कविता

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Shashank

ये धुंध कुहासा छंटने दो रातों का राज्य सिमटने दो प्रकृति का रूप निखरने दो फागुन का रंग बिखरने दो, प्रकृति दुल्हन का रूप #Quotes #story #Hindi #poem #Happy_New_year #fake_new_year

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ये धुंध कुहासा छंटने दो
        रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
        फागुन का रंग बिखरने दो,
प्रकृति दुल्हन का रूप धर
     जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
       घर -घर खुशहाली लायेगी,
तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि
           नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
      जय-गान सुनाया जायेगा... #NojotoQuote ये धुंध कुहासा छंटने दो
          रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
          फागुन का रंग बिखरने दो,
प्रकृति दुल्हन का रूप

sushma Nayyar

सुजला, सुफला, शस्य श्यामला ,हरित धरोहर दामिनी अनंत वसित नित हृदय तेरे ,चिर मनोहर रागिनी उन्नत भाल, देदीप्यान, उर वसित तेरे मंगल गान सुभाषिनी

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सुजला, सुफला, शस्य श्यामला ,हरित धरोहर दामिनी
अनंत वसित नित हृदय तेरे ,चिर मनोहर रागिनी
उन्नत भाल, देदीप्यान, उर वसित तेरे मंगल गान
सुभाषिनी, वरदायिनी, ऐ वसुंधरा फलदायिनी

सागर नदियां चिर चितेरे क्रीड़ायमान अंक तेरे 
प्रसरित सर पे व्योम तेरे,शुभ सुंदर फलदायिनी
चहुं ओर फैले वन शिलाएं, मेघ यूं मल्हार गायें
रचित, रूचित आशीष तेरे, पर्वत श्रृंखलाओं के घेरे

सुवासित मलय आंचल में तेरे, मकरंदमय पुष्पों के फेरे
सजदे में रहते चांद तारे , रवि किरणों से आरती उतारे
आशीष प्रदायिनी,शुभ फदायिनी, हे धरा जीवन दायिनी
नत मस्तक हैं अंबर,घटाएं , सदैव तेरे बलि बलि जाएँ

प्रीत प्रेम वाहिनी,हे धरती मां ! तेरे मान में करबद्ध खड़े सम्मान में 
शुभ कामना , संवाहना ,नित नव उर्जित संभावना
द्रवित तव उपकारों से, अभिभूत हृदयोदगारों से 
आश्रय दायिनी,संवाहिनी , हे धरा जीवन दायिनी  !!!!!!
       
              ________सुषमा नैय्यर सुजला, सुफला, शस्य श्यामला ,हरित धरोहर दामिनी
अनंत वसित नित हृदय तेरे ,चिर मनोहर रागिनी
उन्नत भाल, देदीप्यान, उर वसित तेरे मंगल गान
सुभाषिनी

Dadhich Praveen Sharma

*आह्वान हिंदुस्तान का...* पूरे देश की यही पुकार... भेड़ियों को घर में घुस के मारो इस बार... आतंक की यह चरम सीमा है... आगे इसके लेखनी की गरि #Indian #army #hindustan #salute #tribute #bharat #jai #Mata #Jindabad

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पूरे देश की यही पुकार...
भेड़ियों को घर में घुस के मारो इस बार...
आतंक की यह चरम सीमा है...
आगे इसके लेखनी की गरिमा है...
क्या उन मांओं पर बीती होगी...
कैसे उनकी बहनें अब जीती होंगी...
कितनी सुहागनों का सुहाग उजड़ा होगा...
कितने बेटों के सिर से हाथ पिता का उठा होगा...
बूढ़े बापों की लाठी टूटी होगी...
बेख़ौफ़ सोती सरकारों की नींदें टूटी होगी...
हुक्मरानों अब तो कुछ कर दिखलाओ...
इन कायर हिजड़ों को सबक सिखलाओ...
इस बार माफी की मुर्गी मत ले आना...
इस बार शहादत को बेकार मत जाने देना...
हर कतरे का हिसाब कर जाना...
हैवानों को कुत्ते की मौत मार गिराना...
पापियों के पाप से मैली यह धरा हो गयी...
क्यों शस्य श्यामला भारत माँ अब जरा हो गयी...?
पूरे देश में एक ही गान उठा है...
एक स्वर में आह्वान उठा है...
इतिहास दोहराने की नौबत ना आने देना...
इस बार नक्शे से इसका नाम-ओ-निशाँ मिटा देना...

*दाधीच प्रवीण शर्मा*
*नागौर, राजस्थान*
©dadhichpraveensharma #NojotoQuote *आह्वान हिंदुस्तान का...*


पूरे देश की यही पुकार...
भेड़ियों को घर में घुस के मारो इस बार...
आतंक की यह चरम सीमा है...
आगे इसके लेखनी की गरि

Anil Shukla

श्रद्धेय *रामधारी सिंह " दिनकर " जी* की कविता:- *ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,* है अपना ये त्यौहार नहीं, है अपनी ये तो रीत नहीं, है अपना य #story #nojotophoto

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 श्रद्धेय *रामधारी सिंह " दिनकर " जी* की कविता:-

 *ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,*
है अपना ये त्यौहार नहीं,
है अपनी ये तो रीत नहीं,
है अपना य

Arsh

जब भी इस पार्क में टहलने आता हूँ, चमककर वो चेतन चेहरा सामने आ हीं जाता है। उसे यहीं.. इसी पार्क में जॉगिंग करते देखा करता था। नव्या थी, उम्र #Love #story #Emotion #SAD #Arsh

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मेरी यह रचना उस चिट्ठी को समर्पित है जो मुझे 
यहीं इस #NOJOTO पर एक पोस्ट के रूप में दिखी थी।
मुझे उस चिट्ठी के भाव इतने पसंद आएं कि बस उसचिट्ठी के शब्दों को
आप तक पहुँचाने के लिए अपनी कल्पना से
गुलमोहर की रचना कर पाया।

कहानी में आगे आपको वह चिट्ठी हूबहू पढ़ने को मिल जाएगी।

मेरी इस कहानी को आप कैप्शन में पढ़ सकते हैं
 उम्मीद है आपको पसंद आएगी जब भी इस पार्क में टहलने आता हूँ, चमककर वो चेतन चेहरा सामने आ हीं जाता है।
उसे यहीं.. इसी पार्क में जॉगिंग करते देखा करता था। नव्या थी, उम्र

Nisheeth pandey

*** कुछ मित्रों ने अभी से नव वर्ष की अग्रिम शुभकामना की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दिया है । इस परिप्रेक्ष्य मे राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह #poem #poetryunplugged #HappyNewYear2020 #kahanikaar #रामधारीसिंह_दिनकर

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***
कुछ मित्रों ने अभी से नव वर्ष की अग्रिम शुभकामना की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दिया है ।
इस परिप्रेक्ष्य मे  राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह " दिनकर " जी की कविता..

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं   

~  रामधारीसिंह दिनकर

©Nisheeth pandey
  ***
कुछ मित्रों ने अभी से नव वर्ष की अग्रिम शुभकामना की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दिया है ।
इस परिप्रेक्ष्य मे  राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह

Nisheeth pandey

*** कुछ मित्रों ने अभी से नव वर्ष की अग्रिम शुभकामना की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दिया है । इस परिप्रेक्ष्य मे राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह #poetryunplugged #HappyNewYear2020 #kahanikaar #throwback2020 #रामधारीसिंह_दिनकर

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***
कुछ मित्रों ने अभी से नव वर्ष की अग्रिम शुभकामना की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दिया है ।
इस परिप्रेक्ष्य मे  राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह " दिनकर " जी की कविता..

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं   

~  रामधारीसिंह दिनकर

©Nisheeth pandey ***
कुछ मित्रों ने अभी से नव वर्ष की अग्रिम शुभकामना की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दिया है ।
इस परिप्रेक्ष्य मे  राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह

Divyanshu Pathak

मैं आप सब के समक्ष राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह ” दिनकर ” जी की कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ । ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्य

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ये धुंध कुहासा छंटने दो
          रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
          फागुन का रंग बिखरने दो,
प्रकृति दुल्हन का रूप धर
           जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
           घर -घर खुशहाली लायेगी,
तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि
           नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
           जय-गान सुनाया जायेगा...

नव संवत्सर (२०७६) ६ अप्रैल २०१९  पर  हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाए  मैं आप सब के समक्ष राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह ” दिनकर ” जी की कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्य

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 12 - नृत्यरत ता थेई, ता थेई ता .... त थेई थेई, कन्हाई नाच रहा है। हिल रहा है मयूरपिच्छ मस्तक के ऊपर, हिल रही है अलकें और #Books

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|| श्री हरि: || 
12 - नृत्यरत

ता थेई, ता थेई ता .... त थेई थेई, कन्हाई नाच रहा है।

हिल रहा है मयूरपिच्छ मस्तक के ऊपर, हिल रही है अलकें और
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