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Author Munesh sharma 'Nirjhara'
ग़म ने कब किसे अपना कहा ग़म ने कब किसे छोड़ा किया आरजू-ए-मोहब्बत में ग़म साथ ही रहा कुछ उसका दिया कुछ किस्मत का दिया वो जो कहता था साथ देगा हर क़दम पर सबसे पहले ग़म से गठबंधन उसने किया पलटकर देखा नहीं एक बार आगे बढ़ उसने ग़म को साथ चलने का न्योता उसने ही दिया अब जब देखती हूँ पीछे मुड़, सोचती हूँ मैं ग़म ने ही तो मुझ अदना को शायरा बना दिया! 🌹 #mनिर्झरा ग़म ने कब किसे अपना कहा ग़म ने कब किसे छोड़ा किया आरजू-ए-मोहब्बत में ग़म साथ ही रहा कुछ उसका दिया कुछ किस्मत का दिया वो जो कहता था
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
दिल का दर्द कम नहीं होता वो रूठा है मुझसे ग़म ये सहन नहीं होता सच वो स्वीकारता ही नहीं तोहमतों का व्यापार बन्द क्यूँ नहीं होता बता दिया हाल-ए-दिल उसको लेकिन उसको मेरा यकीन नहीं होता एक बार बात तो करे वो उसका चुप रहना मुझसे सहन नहीं होता दिल चीर कर रख दे 'निर्झरा' बेदर्दी को कभी दर्द महसूस नहीं होता! 🌹 दिल का दर्द कम नहीं होता वो रूठा है मुझसे ग़म ये सहन नहीं होता सच वो स्वीकारता ही नहीं तोहमतों का व्यापार बन्द क्यूँ नहीं होता बता दिया हाल
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
यकायक हुआ वह सब जो हुआ आहट भी न हुई जब वो गया बड़ी हसरत थी उसकी चाहत की अनजान बन गया जब वो गया भूल भी जाऊँ तो कैसे उसको मन जो मेरा उसके साथ हो गया कहना तब आसान ही कहाँ था अनसुना वो करता ही जो गया छोड़ दे उसकी आस अब 'निर्झरा' वो पराया था गया सो गया..! 🌹 यकायक हुआ वह सब जो हुआ आहट भी न हुई जब वो गया बड़ी हसरत थी उसकी चाहत की अनजान बन गया जब वो गया भूल भी जाऊँ तो कैसे उसको मन जो मेरा उसके साथ
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
उसकी यादों की क़ैद से फ़रार होना चाहती हूँ उसको भी अपने लिए तड़पते देखना चाहती हूँ नहीं पता क्या कर रही क्या करना चाहती हूँ उस बेदर्द के दिल में दर्द जगाना चाहती हूँ वो भी तो जाने बेरुख़ी किसे कहते हैं उसको भी मज़ा-ए-मोहब्बत देना चाहती हूँ बनता रहा जो 'पत्थर-ए-दिल' सनम मोम-सा उसको अब पिघलते देखना चाहती हूँ क्या होता है इश्क़ होना और बस रोना 'हालात-ए-मोहब्बत' का नज़ारा देखना चाहती हूँ वो जो नकारता रहा पाकीज़ा एहसास को मेरे उसको कसमें-वादे उठाते देखना चाहती हूँ डूबी जिसके प्रेम में सिर से पैर तक 'निर्झरा' उसे आग के दरिया को लाँघते देखना चाहती हूँ! 🌹 ग़नुक (बहर की परिधि से मुक्त ग़ज़ल) उसकी यादों की क़ैद से फ़रार होना चाहती हूँ उसको भी अपने लिए तड़पते देखना चाहती हूँ नहीं पता क्या कर रही और
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
चाहती हूँ तुम बिन कहे ही जान लो जो कहा नहीं मैंने तुमसे वह सुन लो साथ तुम्हारा और मेरा बेसबब नहीं है वज़ह है ज़रूर इतना तुम पहचान लो अच्छे लगते हो मेरे नादान दिल को तुम जिद्दी बहुत है दिल भी मेरा यह जान लो मौसम का दस्तूर है बदलना एक दिन पर तुम न बदलना कभी इतना मान लो सुनो कुछ कहना चाहती है 'निर्झरा' तुम बिल्कुल मेरे से हो यह पहचान लो! 🌹 चाहती हूँ तुम बिन कहे ही जान लो जो कहा नहीं मैंने तुमसे वह सुन लो साथ तुम्हारा और मेरा बेसबब नहीं है वज़ह है ज़रूर इतना तुम पहचान लो अच्छे ल
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
उमस धरती की मिटाने को बारिश का आना ज़रूरी है दिल में गर मोहब्बत है उसका इज़हार ज़रूरी है वो लाख कहें हम तुम्हारे हैं अपनेपन का एहसास ज़रूरी है यह दुनिया है अजीब ख़्यालों की इसकी फितरत समझना बहुत ज़रूरी है वादे-इरादे बहुत होते दिलों के यहाँ'निर्झरा' किरदार की पहचान निहायत ज़रूरी है 🌹 उमस धरती की मिटाने को बारिश का आना ज़रूरी है दिल में गर मोहब्बत है उसका इज़हार ज़रूरी है वो लाख कहें हम तुम्हारे हैं अपनेपन का एहसास ज़रूरी है
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
फ़रोज़ाँ है शख़्शियत उसकी कब तक नज़रें फेर सकेगी 'निर्झरा'..! बना ही लेगा तुझे वो अपना कब तक गुमान-ए-सब्र में रहेगी..!! 🌹 फ़रोज़ाँ-सी है शख़्शियत उसकी कब तक नज़रें फेर सकेगी 'निर्झरा'! बना ही लेगा तुझे वो अपना कब तक गुमान-ए-सब्र में रहेगी..!! 🌹 #mनिर्झरा
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
तुम आये कहाँ सम्पूर्ण रूप में उससे पहले ही चले गये... सामने थे जब तब भी ओझल ही रहे कहती रही बहुत कुछ तुम बधिर बने रहे... क्या थी मैं क्या कर गये 'निर्झरा' को 'निर्झर' बना गये... 🌹 तुम आये कहाँ सम्पूर्ण रूप में उससे पहले ही चले गये... सामने थे जब तब भी ओझल ही रहे कहती रही बहुत कुछ तुम बधिर बने रहे...
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
क्या कहूँ और कैसे कहूँ मैं तेरा आना लिखूँ या जाने की बात कहूँ मैं कैसे बीत रहे दिन-रात तेरे बिन 'निर्झरा' किस काग़ज़ पर न ख़त्म होने वाली कहानी लिखूँ मैं...! 🌹 क्या कहूँ और कैसे कहूँ मैं तेरा आना लिखूँ या जाने की बात कहूँ मैं कैसे बीत रहे दिन-रात तेरे बिन 'निर्झरा' किस काग़ज़ पर न ख़त्म होने वाली कहान