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New भूलूंगी Quotes, Status, Photo, Video

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Sneh Prem Chand

मैं न भूलूंगी

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Sneh Prem Chand

मैं न भूलूंगी

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Pooja Sankalp

#मंजिल नहीं भूलूंगी #HeartfeltMessage #कविता

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Dhingali❤

मैं बन जाऊँ साँस आखरी, तू जीवन बन जा जीवन से साँसों का रिश्ता, मैं ना भूलूंगी.......❤️❤️❤️ True love never has ending 😍

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હું ઈંતજારમાં અને તમે છો વિચારમાં ....... 
આ તો છે શરૂઆત હજી .... કંઈ આખરી પ્રલય નથી ....... 

તમને સમય નથી અને મારો સમય નથી ,
કોણે કહ્યુ કે આપણી વચ્ચે પ્રણય નથી ! मैं बन जाऊँ साँस आखरी, तू जीवन बन जा 
जीवन से साँसों का रिश्ता, मैं ना भूलूंगी.......❤️❤️❤️ 

True love never has ending 😍

Dhingali❤

मैं बन जाऊँ साँस आखरी, तू जीवन बन जा जीवन से साँसों का रिश्ता, मैं ना भूलूंगी.......❤️❤️❤️ True love never has ending😍

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છબી જેવી હોય તેવી સમાવી લે તે ફ્રેમ , 
વ્યક્તિ જેવી હોય તેવી સંભાળી લે તે પ્રેમ❤️ ..... मैं बन जाऊँ साँस आखरी, तू जीवन बन जा 
जीवन से साँसों का रिश्ता, मैं ना भूलूंगी.......❤️❤️❤️ 

True love never has ending😍

amar gupta

पूर्ण जीवन, केवल मानवता की दुहाई देती रहूंगी, बिलखती रहूंगी, घृणा करूंगी। दिन-रात ध्यान करूंगी के मैं मानव कैसे बनूं? क्षण क्षण यह भूलूंगी #Human #yqbaba #yqdidi #vyangya #bestyqhindiquotes #keralaelephantcase #kerelaelephant #yomowripo

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पूर्ण जीवन,
केवल मानवता की दुहाई देती रहूंगी,
बिलखती रहूंगी, घृणा करूंगी।
दिन-रात ध्यान करूंगी के मैं 
मानव कैसे बनूं?
क्षण क्षण यह भूलूंगी के मैं
मानव ही तो हूं!

हर बार सुखद राहों का
चयन स्वयं करूंगी!
पर लेखिका हूं! 
लिखना तो मुझको 
दुर्गम राहों पर ही है।
औरों को सीख मिलेगी,
अपराध किसे कहते हैं
और स्वयं यहां प्रेमी के 
विरह की गीत लिखूंगी।

Read the caption for full poem पूर्ण जीवन,
केवल मानवता की दुहाई देती रहूंगी,
बिलखती रहूंगी, घृणा करूंगी।
दिन-रात ध्यान करूंगी के मैं 
मानव कैसे बनूं?
क्षण क्षण यह भूलूंगी

Shruti Gupta

पूर्ण जीवन, केवल मानवता की दुहाई देती रहूंगी, बिलखती रहूंगी, घृणा करूंगी। दिन-रात ध्यान करूंगी के मैं मानव कैसे बनूं? क्षण क्षण यह भूलूंगी #Human #yqbaba #yqdidi #vyangya #bestyqhindiquotes #keralaelephantcase #kerelaelephant #yomowripo

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पूर्ण जीवन,
केवल मानवता की दुहाई देती रहूंगी,
बिलखती रहूंगी, घृणा करूंगी।
दिन-रात ध्यान करूंगी के मैं 
मानव कैसे बनूं?
क्षण क्षण यह भूलूंगी के मैं
मानव ही तो हूं!

हर बार सुखद राहों का
चयन स्वयं करूंगी!
पर लेखिका हूं! 
लिखना तो मुझको 
दुर्गम राहों पर ही है।
औरों को सीख मिलेगी,
अपराध किसे कहते हैं
और स्वयं यहां प्रेमी के 
विरह की गीत लिखूंगी।

Read the caption for full poem पूर्ण जीवन,
केवल मानवता की दुहाई देती रहूंगी,
बिलखती रहूंगी, घृणा करूंगी।
दिन-रात ध्यान करूंगी के मैं 
मानव कैसे बनूं?
क्षण क्षण यह भूलूंगी

Himanshu Prajapati

तो देखा कोई एक शायद मेरी पीछे-पीछे आ रही है फिर भी मैं आगे मुड़ा और चलता गया मुझे लगा क्या पता वह भी इसी रास्ते से अपने घर की तरफ जा रहा ह #विचार

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AB

भव्या, यही नाम दिया है ना मैंने तुम्हें, क्या तुम जानती हो मैंने तुम्हें यह नाम क्यों दिया,!? क्योंकि तुम भव्य भावना हो भव्य मतलब शानदार

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मेरी  " भव्या " भव्या,

 यही नाम दिया है ना मैंने तुम्हें, क्या तुम जानती हो मैंने तुम्हें यह नाम क्यों दिया,!?

क्योंकि तुम भव्य भावना हो भव्य मतलब शानदार

Pratibha Tiwari(smile)🙂

ये कविता मेरी कल्पना मात्र है सविनय निवेदन है कोई नकारात्मक कमेंट ना करें। 🙏😊 तेरे कंगन कंगन बोलते हैं हाँ कुछ तो कहते हैं मैं भी सजीव हूँ

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तेरे कंगन 

कंगन बोलते हैं , हां कुछ तो कहते हैं,
मैं भी सजीव हूँ तुम दोनों के प्रेम निवेदन की बतियां सुनती हूँ
तेरे प्रेमी से अंक लगाने पर मैं भी मूक धारण कर जाती हूँ
तब कह तो न पाती बस दोनों के दरमियाँ छुप  सी जाती हूँ
इसी बहाने प्रेमी से अपने मैं भी लिपट प्रसन्न हो जाती हूँ

देतीं हूँ दुवाएं तुम दोनों को जो मिलन हमारा कराते हो
बस बने रहे साथ तुम्हारा यही प्रभु से प्रार्थना करती हूं
जो तुम न होते हम मिल न पाते एकांत में सोचा करती हूं
तुम दोनों के प्रेम से सीख मैं प्रतिपल प्रेमी से प्रेम जताती हूँ

प्रेमी प्रेमिका से कहता है,
दौड़ के जो आती हो ये कंगन प्रथम शुभ समाचार सुनाते हैं
तेरे कंगन भी बोल उठते हैं और गीत मिलन के गाते हैं
जब तुम अपने श्रम बिंदुओं को भाल से अपने हटाती हो
ये कंगन अपनी आभा से मुझे दूरी का आभास कराते हैं

मैं भी अगर तेरे कंगन होता हाथों में पड़ा बतियाता
कुछ तुम कहती कुछ मैं कहता बीच न कोई दूजा होता
पहना था जब कंगन तुमने ये तब बहुत इठलाया था
अब समझ पाया ये तुझसे नजदीकी पर इतराया था

खनखन कर के जब तुम अपनी बातों को समझाती हो
मानो जैसे उर में मेरे सैकड़ो सरगम की ध्वनि बज जाती हो
मैंने तो चाहा था तुझको ये बैरी कंगन हीं सब कहता जाता है
जो तुम बोलो मुख से अपने तो कवि हृदय पिघलता जाता है 

प्रेमिका कहती है
री कंगन कुछ बोलो ना भेद मेरे सारे खोलो ना
मैं शर्म से सिमटी जाती हूँ कानों में मिश्री घोलो ना
मैं शब्दों में कह सकती नही उस भाव को भी बोलो ना
मैने तुझसे रात जो बोला बस प्रगट करो कुछ तोलो ना

कितनी प्रतीक्षा करवाती हो बोलो, उनसे कुछ न संकोच करो
जो हृदयतल में बैठे हैं मेरे समक्ष उनके प्रेम निवेदन को स्पष्ट धरो
एकांत मुझे न भाता है उनके साथ आने का कुछ जतन करो
अपने मधुर संगीत सुना दोनों के हृदय में प्रेमरस धार भरो

एक तुम ही साथी हो मेरी जो अनकहा भी कह सकती हो
हमारे मिलन की तुम एकमात्र साक्षी क्यो नही बन जाती हो
तुम भी अपने साथी से मिलना उस पल मैं भी कुछ न बोलूंगी
जब तुम अपने-प्रेमी मैं अपने-प्रेमी के साथ मे सब कुछ भूलूंगी ये कविता मेरी कल्पना मात्र है सविनय निवेदन है कोई नकारात्मक कमेंट ना करें।
🙏😊
तेरे कंगन

कंगन बोलते हैं
हाँ कुछ तो कहते हैं
मैं भी सजीव हूँ
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