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AJAY NAYAK
Autumn पूर्णता अपूर्णता की उम्र एक कतार में खड़े हुए तो देखा उस कतार में एक गरीब बुढ़िया उसके आगे एक अमीर बुढ़िया मैं भी अपना दुःख लिए खड़ा वे भी खड़ी अपना लिए दुखड़ा पहले तो ख़ुद का ही दुखड़ा भारी लगा जैसे जैसे कतार आगे बढ़ती चली गई जैसे जैसे समय बीतता चला गया धीरे धीरे, बस यही समझ में आया तुम जितना सोचते हो उससे ज्यादा सोचने वाले हैं लोग तुम जितना चाहते हो उससे ज्यादा चाहने वाले हैं लोग तुम जितना लूटना जानते हो उससे ज्यादा लूटना जानने वाले हैं लोग तुम जितना असंतोषी हो उससे ज्यादा असंतोषी वाले हैं लोग सबकी अपनी अपनी बातें हैं सबकी अपनी अपनी इच्छाएं हैं बस नही है तो उसकी पूर्णता अपूर्णता की कोई उम्र। एक कतार में खड़े हुए तो देखा उस कतार में एक गरीब बुढ़िया उसके आगे एक अमीर बुढ़िया। –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #पूर्णता #अपूर्णता पूर्णता अपूर्णता की उम्र एक कतार में खड़े हुए तो देखा उस कतार में एक गरीब बुढ़िया उसके आगे एक अमीर बुढ़िया मैं भी अपना
Thakur Rajan Singh
देखती थी राह जो कि लौट कर घर आएंगे उसकी पूरी ज़िंदगी इंतज़ार में ही गुज़र गई एक दुनिया को बना के एक बुढ़िया खुश रही फ़िर रफ़्ता रफ़्ता सारी खुशियां भी बिखर गई हम गांव को छोड़ कर शहर आ गए और फ़िर यूं हुआ कि गांव में अम्मा तड़प के मर गई : राजन सिंह 🥺🥺 .... ©Thakur Rajan Singh देखती थी राह जो कि लौट कर घर आएंगे उसकी पूरी ज़िंदगी इंतज़ार में ही गुज़र गई एक दुनिया को बना के एक बुढ़िया खुश रही फ़िर रफ़्ता रफ़्ता सारी
vandana,s hobby & crafts
vandana sahu ©vandana,s hobby & crafts ##jai बुढ़िया शीतला माता की ##nojoto #
सुसि ग़ाफ़िल
कहीं आजादी का जश्न था और कहीं गुलामी का मातम | किसी को घर मिलने की खुशी थी और किसी को घर छिनने का गम| स्वतंत्र ही रहे हमारे विचार बस गुलाम होते जा रहे आज भी जिस्म| कैसा कलयुग आया है ये खून के छींटे लगे पड़े हैं हर दूसरे जिस्म| हुकूमत की है यह बहुत पुरानी रस्म खून के बदले खून जिस्म के बदले जिस्म| आंखें बंजर होगी आगे देखो क्या होगा छोटी बच्ची से बुढ़िया का जिस्म नंगा होगा| अब तक कोई बचाने नहीं आया होगा जब निकलेगी चीख़ें खुदा चीख़ों में ही दफन होगा| "सुशील" लिख सकता है किस्से उसे क्या दर्द महसूस होगा, उसे क्या दर्द महसूस होगा | कहीं आजादी का जश्न था और कहीं गुलामी का मातम | किसी को घर मिलने की खुशी थी और किसी को घर छिनने का गम| स्वतंत्र ही रहे
Sarita Shreyasi
ये ठनके की आवाज से डर कर, मेरे सीने से चिपक जाने वाली गुड़िया, आज मेरा ही डर भगाने वाली, अदम्य साहस की पुड़िया हो गयी है, मेरी ही जन्मी बिटिया,मेरी दादी-नानी जैसी पकी बुढ़िया हो गयी है। बात है एक दिन की,तब वो दो साल की भी नहीं थी, जब डरती न थी,अपितु मेरा डर भगाती थी। रात दबे पाँव बढ़ रही थी, आँखों की पुतलियाँ चढ़ रही थी, पूर
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} गणेश जी विघ्न विनाशक व शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। अगर कोई सच्चे मन से गणोश जी की वंदना करता है, तो गौरी नंदन तुरंत प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं। वैसे भी गणेश जी जिस स्थान पर निवास करते हैं, उनकी दोनों पत्नियां ऋद्धि तथा सिद्धि भी उनके साथ रहती हैं उनके दोनों पुत्र शुभ व लाभ का आगमन भी गणेश जी के साथ ही होता है। कभी-कभी तो भक्त भगवान को असमंजस में डाल देते हैं। पूजा-पाठ व भक्ति का जो वरदान मांगते हैं, वह निराला होता है। काफ़ी समय पहले की बात है एक गांव में एक अंधी बुढ़िया रहती थी। वह गणेश जी की परम भक्त थी। आंखों से भले ही दिखाई नहीं देता था, परंतु वह सुबह शाम गणेश जी की बंदगी में मग्न रहती। नित्य गणेश जी की प्रतिमा के आगे बैठकर उनकी स्तुति करती। भजन गाती व समाधि में लीन रहती। गणेश जी बुढ़िया की भक्ति से बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा यह बुढ़िया नित्य हमारा स्मरण करती है, परंतु बदले में कभी कुछ नहीं मांगती। भक्ति का फल तो उसे मिलना ही चाहिए। ऐसा सोचकर गणेश जी एक दिन बुढ़िया के सम्मुख प्रकट हुए तथा बोले- ‘माई, तुम हमारी सच्ची भक्त हो। जिस श्रद्धा व विश्वास से हमारा स्मरण करती हो, हम उससे प्रसन्न हैं। अत: तुम जो वरदान चाहो, हमसे मांग सकती हो।’ बुढ़िया बोली- ‘प्रभो! मैं तो आपकी भक्ति प्रेम भाव से करती हूं। मांगने का तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। अत: मुझे कुछ नहीं चाहिए।’ गणेश जी पुन: बोले- ‘हम वरदान देने केलिए आए हैं।’ बुढ़िया बोली- ‘हे सर्वेश्वर, मुझे मांगना तो नहीं आता। अगर आप कहें, तो मैं कल मांग लूंगी। तब तक मैं अपने बेटे व बहू से भी सलाह मश्विरा कर लूंगी। गणेश जी कल आने का वादा करके वापस लौट गए।’ बुढ़िया का एक पुत्र व बहू थे। बुढ़िया ने सारी बात उन्हें बताकर सलाह मांगी। बेटा बोला- ‘मां, तुम गणेश जी से ढेर सारा पैसा मांग लो। हमारी ग़रीबी दूर हो जाएगी। सब सुख चैन से रहेंगे।’ बुढ़िया की बहू बोली- ‘नहीं आप एक सुंदर पोते का वरदान मांगें। वंश को आगे बढ़ाने वाला भी, तो चाहिए।’ बुढ़िया बेटे और बहू की बातें सुनकर असमंजस में पड़ गई। उसने सोचा- यह दोनों तो अपने-अपने मतलब की बातें कर रहे हैं। बुढ़िया ने पड़ोसियों से सलाह लेने का मन बनाया। पड़ोसन भी नेक दिल थी। उसने बुढ़िया को समझाया कि तुम्हारी सारी ज़िंदगी दुखों में कटी है। अब जो थोड़ा जीवन बचा है, वह तो सुख से व्यतीत हो जाए। धन अथवा पोते का तुम क्या करोंगी! अगर तुम्हारी आंखें ही नहीं हैं, तो यह संसारिक वस्तुएं तुम्हारे लिए व्यर्थ हैं। अत: तुम अपने लिए दोनों आंखें मांग लो।’ बुढ़िया घर लौट आई। बुढ़िया और भी सोच में पड़ गई। उसने सोचा- कुछ ऐसा मांग लूं, जिससे मेरा, बहू व बेटे- सबका भला हो। लेकिन ऐसा क्या हो सकता है? इसी उधेड़तुन में सारा दिन व्यतीत हो गया। बुढ़िया कभी कुछ मांगने का मन बनाती, तो कभी कुछ। परंतु कुछ भी निर्धारित न कर सकी। दूसरे दिन गणेश जी पुन: प्रकट हुए तथा बोले- ‘आप जो भी मांगेंगे, वह हमारी कृपा से हो जाएगा। यह हमारा वचन है।’ गणेश जी के पावन वचन सुनकर बुढ़िया बोली- ‘हे गणराज, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, तो कृप्या मुझे मन इच्छित वरदान दीजिए। मैं अपने पोते को सोने के गिलास में दूध पीते देखना चाहती हूं।’ बुढ़िया की बातें सुनकर गणेश जी उसकी सादगी व सरलता पर मुस्कुरा दिए। बोले- ‘तुमने तो मुझे ठग ही लिया है। मैंने तुम्हें एक वरदान मांगने के लिए बोला था, परंतु तुमने तो एक वरदान में ही सबकुछ मांग लिया। तुमने अपने लिए लंबी उम्र तथा दोनों आंखे मांग ली हैं। बेटे के लिए धन व बहू के लिए पोता भी मांग लिया। पोता होगा, ढेर सारा पैसा होगा, तभी तो वह सोने के गिलास में दूध पीएगा। पोते को देखने के लिए तुम जिंदा रहोगी, तभी तो देख पाओगी। अब देखने के लिए दो आंखें भी देनी ही पड़ेंगी।’ फिर भी वह बोले- ‘जो तुमने मांगा, वे सब सत्य होगा।’ यूं कहकर गणेश जी अंर्तध्यान हो गए। कुछ समय पाकर गणेश जी की कृपा से बुढ़िया के घर पोता हुआ। बेटे का कारोबार चल निकला तथा बुढ़िया की आंखों की रौशनी वापस लौट आई। बुढ़िया अपने परिवार सहित सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। ©N S Yadav GoldMine #lonelynight {Bolo Ji Radhey Radhey} गणेश जी विघ्न विनाशक व शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। अगर कोई सच्चे मन से गणोश जी की वंदना करता है,
Rupam Jha
मेरे सपनों के तहखाने में आती है एक बुढ़िया, झकझोरती है, जगाती है मुझे, मेरे तपते जज्बातों की भट्टी पर बनाती है खूब सारे लजीज व्यंजन, पड़ोसती है थाली मेरे लिए, और फिर सामने से खींच लेती है ! मेरे सपनों के तहखाने में आती है एक बुढ़िया, झकझोरती है, जगाती है मुझे, मेरे तपते जज्बातों की भट्टी पर बनाती है खूब सारे लजीज व्यंजन, पड़ोसत
Anonymous Avery
सोचा था साथ देगा वो मेरा हर फैसले में मेरे खुशियाँ में भी चाहे हो गम के घेरे पर वो तो सवाल है उठाता बदन पे मेरे है ये गलती मेरी जो लोग देखते मुझे दिखती मैं खराब कहता हर वक्त मुझे सुन्दरता उसको मेरी नजर न आती बस ऐब ही उसको दिखते सेक्सी कहते उसको जो कोई पहने मैं जो पहनूँ तो बुढ़िया है कहते समझ गया मन ये मेरा कोई नही है ऐसा जो लगे अपने दुनिया है झूठी सारे वादे भी उसके झूठे दुखता दिल मेरा जैसे सीने खंजर है चुभते बदल दू खुद को सब ऐसा ही चाहे मन मर गया मेरा अब दिल जीना ना चाहे। (व्यथा हर लड़की की ) सोचा था साथ देगा वो मेरा हर फैसले में मेरे खुशियाँ में भी चाहे हो गम के घेरे पर वो तो सवाल है उठाता बदन पे मेरे ह
भाग्य श्री बैरागी
मेरी पोटली कहानी का आख़िरी अंश है कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें। सुप्रभात,,🙏🏻🙏🏻 कहानी के बाकि भाग #मेरी_पोटली_कहानी पर पढ़ें। यह कहानी का आख़िरी अंश है, आख़िरी अंश है इसलिए थोड़ा बड़ा है कृपया समय निकालकर