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ARTI DEVI(Modern Mira Bai)

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GoluBabu

वेदों में प्रमाण है, कबीर साहेब भगवान हैं। पवित्र कुरान प्रमाणित करती है अल्लाह कबीर साहेब ही हैं। सुरत-फुर्कानि नं. 25 आयत 52 कबीर ही पूर् #Bhakti #SaintRampalJi #santrampaljimaharaj

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Bharat Bhushan pathak

#oddone सिक्त अंगार,अब यौवन,अधर उपमा,नहीं होगी। नयन से बह,चुकी गंगा,न नारी प्राण सुन देगी।। पुरानी रीत होती थी,बहाए चोट पर आँसू। संभल के सु #Motivational

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सिक्त अंगार,अब यौवन,अधर उपमा,नहीं होगी।
नयन से बह,चुकी गंगा,न नारी प्राण सुन देगी।।
पुरानी रीत होती थी,बहाए चोट पर आँसू।
संभल के सुन, रहो पापी,लगेगी मार अब धाँसू।।

©Bharat Bhushan pathak #oddone 
सिक्त अंगार,अब यौवन,अधर उपमा,नहीं होगी।
नयन से बह,चुकी गंगा,न नारी प्राण सुन देगी।।
पुरानी रीत होती थी,बहाए चोट पर आँसू।
संभल के सु

theunnamedpoet99

तुम बनारस सा इश्क तो दिखाना अगर मैं गंगा घाट ना हो जाऊं तो फिर कहना। #विचार

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तुम बनारस सा इश्क तो दिखाना
अगर मैं गंगा घाट ना हो जाऊं तो फिर कहना।

©theunnamedpoet99 तुम बनारस सा इश्क तो दिखाना
अगर मैं गंगा घाट ना हो जाऊं तो फिर कहना।

Sangeeta Kalbhor

#hibiscussabdariffa काळीज तुटता तुटता तुटून जातो माणूस का अन् कशासाठी प्रश्नात अडकतो माणूस वहायचे असते आत्मफूल आत्मा नाही सापडत अंधार करुन #शायरी

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Dk Patil

*॥ धर्मवीर बलिदान मास ॥* *श्लोक क्रमांक. १३* ************************** *#श्रीसंभाजीसुर्यहृदय* ⛳ गंगाजलांत नसतो मळवा विषार । सुर्थात #पौराणिककथा #धर्मवीर_बलिदान_मास

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Shivkumar

BROKENBOY

#Tulips तराशे गये किसी वचन की तरह। मोहब्बत करी हमने फ़न की तरह।। मिट जाते थे गिले शिकवे मिलते ही- वो थी गंगा के आचमन की तरह।। थकन को क्या #hunarbaaz

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तराशे गये किसी वचन की तरह।
मोहब्बत करी हमने फ़न की तरह।।

मिट जाते थे गिले शिकवे मिलते ही-
वो थी गंगा के आचमन की तरह।।

थकन को क्या खूब सुकून देती थी-
सोफ़े पर रखे हुए कुशन की तरह।

©BROKENBOY #Tulips 
तराशे गये किसी वचन की तरह।
मोहब्बत करी हमने फ़न की तरह।।

मिट जाते थे गिले शिकवे मिलते ही-
वो थी गंगा के आचमन की तरह।।

थकन को क्या

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

प्रदीप छन्द दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में । वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।। घर में बैठे मातु-पिता ही , सु #कविता

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प्रदीप छन्द

दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में ।
वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।।
घर में बैठे मातु-पिता ही , सुन रघुवर के रूप हैं ।
शरण चला जा उनके प्यारे , वह भी तेरे भूप हैं ।।

मन को अपने आज सँभालो , उलझ गया है बाट में ।
सारे तीरथ मन के होते , जो है गंगा घाट में ।।
तन के वस्त्र नहीं मिलते तो, लिपटा रह तू टाट में ।
आ जायेगी नींद तुझे भी , सुन ले टूटी खाट में ।।

जितनी मन्नत माँग रहे हो , जाकर तुम दरगाह में ।
उतनी सेवा दीन दुखी की , जाकर कर दो राह में ।।
सुनो दौड़ आयेंगी खुशियाँ , बस इतनी परवाह में ।
मत ले उनकी आज परीक्षा , वो हैं कितनी थाह में ।।

जीवन में खुशियों का मेला , आता मन को मार के ।
दूजा कर्म हमेशा देता , सुन खुशियां उपहार के ।।
जीवन की भागा दौड़ी में , बैठो मत तुम हार के ।
यही सीढ़ियां ऊपर जाएं ,  देखो नित संसार के ।।

२८/०२/२०२४       -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रदीप छन्द

दर-दर भटक रहा है प्राणी , जिस रघुवर की चाह में ।
वो तो तेरे मन में बैठे , खोज रहा क्या राह में ।।
घर में बैठे मातु-पिता ही , सु
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