Find the Latest Status about निषादराज from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, निषादराज.
N S Yadav GoldMine
जाने जब भरत व निषादराज का मिलन हुआ तब क्या हुआ !! 📌📌 {Bolo Ji Radhey Radhey} {Bolo Ji Radhey Radhey} भरत व निषादराज का मिलन :- 🌄 निषादराज गुह श्रृंगवेरपुर के आदिवासी राजा थे जो बचपन में महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में भगवान राम व उनके भाइयों के साथ ही पढ़े थे। जब भगवान श्रीराम वनवास पर गए थे तब रास्ते में उनकी अपने मित्र निषादराज से भी भेंट हुई थी। इसके बाद प्रभु गंगा पार करके चित्रकूट के लिए निकल गये थे। भरत राम के छोटे भाई व माता कैकेयी के पुत्र थे। उनकी माता के द्वारा ही सब षड़यंत्र रचा गया था जिस कारण भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का कठोर वनवास मिला था। जब भरत को अपने अयोध्या आगमन के पश्चात सब घटना का पता चला तो वे अपने भाई श्रीराम को लेने के लिए चित्रकूट निकल पड़े। उनके साथ अयोध्या का पूरा राज परिवार, मंत्रीगण, गुरुजन व अयोध्या की प्रजा भी थी। निषादराज का भरत पर संदेह :- 🌄 जब भरत अपनी सेना के साथ श्रृंगवेरपुर नगरी की सीमा पर पहुंचे तो श्रृंगवेरपुर के सैनिकों ने यह सूचना जाकर राजा गुह को दी। गुह ने सोचा कि जिसकी माता के कारण सब षड़यंत्र रचा गया हो तो उसका पुत्र भी वैसा ही होगा। वैसे भी अब भरत अयोध्या के राजा हैं और वह अपने साथ सेना का एक बड़ा दल लेकर आ रहा थे। निषादराज के अनुसार भरत ने सेना सहित श्रीराम व लक्ष्मण को वन में ही मारने का निश्चय किया ताकि किसी भी प्रकार के विद्रोह को दबाया जा सके। यह सोचकर निषादराज ने अपनी नगरी में ढोल पिटवा दिया व सभी को अयोध्या की सेना से लड़ने के लिए तैयार होने को कहा। नगरवासी ने निषादराज को समझाया :- 🌄 जब निषादराज सभी को लड़ने के लिए तैयार कर रहे थे उसी समय एक नगरवासी ने पहले उन्हें भरत से बातचीत करने को कहा ताकि उनके यहाँ आने का असली उद्देश्य जाना जा सके। उनका यह परामर्श निषादराज को पसंद आया व उन्होंने पहले भरत से बात करने की ठानी। भरत व निषादराज गुह का मिलन :- 🌄 इसके बाद निषादराज ने अपने सैनिकों को झाड़ियों में छुपने को कहा व स्वयं उनसे मिलने गए। अयोध्या के मंत्री सुमंत जो पहले भगवान श्रीराम को यहाँ तक छोड़ने आये थे वे निषादराज को जानते थे इसलिये उन्होंने उनका परिचय भरत को दिया। भरत को जब यह ज्ञात हुआ कि निषादराज भगवान श्रीराम के मित्र हैं तो वे उनके चरणों में गिर पड़े। अयोध्या नरेश के अपने चरणों में गिरते देखकर निषादराज की आँखें भर आई व उन्हें स्वयं पर पछतावा हुआ। उसके बाद भरत ने उन्हें अपने यहाँ आने का औचित्य बताया। तब निषादराज ने ही भरत व उनकी सेना को आगे का मार्ग दिखाया व साथ ही जब श्रीराम यहाँ आये थे तब कैसे अपना जीवन व्यतीत किया था व कहाँ सोये थे वह सब भी बताया। भरत यह सुनकर बहुत भावुक हो गए थे व उन्होंने आगे का मार्ग भगवान श्रीराम के भांति नंगे पैर पैदल पार करने का निर्णय किया था। इसके बाद निषादराज भरत व उनकी पूरी सेना को चित्रकूट तक लेकर गये थे।l ©N S Yadav GoldMine #Pattiyan जाने जब भरत व निषादराज का मिलन हुआ तब क्या हुआ !! 📌📌 {Bolo Ji Radhey Radhey} {Bolo Ji Radhey Radhey} भरत व निषादराज का मिलन :- 🌄
Ravishankar Nishad
N S Yadav GoldMine
आज हम भगवान राम ने अपने वनवास के 14 वर्ष कहाँ-कहाँ बिताएं इसके बारें में विस्तार से जानेंगे !!💥💥{Bolo Ji Radhey Radhey} वनवास के 14 वर्ष कहाँ-कहाँ बिताएं :- 🔆 भगवान श्रीराम को चौदह वर्षों का कठोर वनवास मिला था जिसके अनुसार उन्हें केवल वनों में रहना था तथा किसी भी नगर में जाना प्रतिबंधित था। श्रीराम ने अपने वचन का भलीभांति पालन किया तथा चौदह वर्षों तक अपनी पत्नी सीता तथा भाई लक्ष्मण के साथ वनवासियों की भांति जीवन व्यतीत किया। इस दौरान वे भारत के उत्तरी तट से लेकर दक्षिणी तट तक गए। इसलिये आज हम भगवान श्रीराम के वनवास का मार्ग तथा इस दौरान वे कहाँ-कहाँ रुके और क्या-क्या कार्य किये, इसके बारें में विस्तार से जानेंगे। भगवान श्रीराम के वनवास का मार्ग :- तमसा नदी के तट पर :- 🔆 सबसे पहले अयोध्या से विदा लेने के पश्चात भगवान राम रथ में बैठकर आर्य सुमंत के साथ तमसा नदी के तट तक पहुंचे। वहां तक अयोध्या की प्रजा भी उनके साथ आयी जो उन्हें अकेले जाने देने को लेकर तैयार नही थी तथा उनके साथ चलने की जिद्द लिए बैठी थी। इसलिये उस रात श्रीराम ने अपना डेरा तमसा नदी के तट पर ही डाला तथा सूर्योदय से पहले अयोध्या की प्रजा को बिना जगाये सीता, लक्ष्मण तथा सुमंत के साथ कोशल देश की नगरी से बाहर निकल गए। श्रृंगवेरपुर नगरी :- 🔆 इसके पश्चात वे अपने मित्र निषादराज गुह की नगरी श्रृंगवेरपुर के पास के वनों में पहुंचे तथा वही एक दिन के लिए विश्राम किया। उनके मित्र गुह ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। अगले दिन उन्होंने सुमंत को रथ लेकर अयोध्या लौट जाने का आदेश दिया तथा वहां से आगे पैदल ही यात्रा करने का निर्णय किया। फिर उन्होंने केवट के सहारे गंगा नदी को पार किया तथा उस पार कुरई गाँव उतरे। प्रयाग :- 🔆 गंगा पार करके श्रीराम माता सीता, लक्ष्मण तथा निषादराज गुह के साथ प्रयाग चले गए। वहां उन्होंने त्रिवेणी की सुंदरता को देखा तथा आगे मुनि भारद्वाज के आश्रम पहुंचे। यहाँ उन्होंने मुनि भारद्वाज से अपने रहने के लिए उत्तम स्थान पूछा जिन्होंने यमुना पार चित्रकूट को उत्तम बताया। चित्रकूट :- 🔆 इसके पश्चात श्रीराम ने अपने मित्र निषादराज गुह को भी वहां से वापस अपनी नगरी लौट जाने का आदश दिया तथा माता सीता व लक्ष्मण के साथ यमुना पार करके चित्रकूट चले गए। चित्रकूट पहुँचते ही उन्होंने वाल्मीकि आश्रम में उनसे भेंट की तथा गंगा की धारा मंदाकिनी नदी के किनारे अपनी झोपड़ी बनाकर रहने लगे। यही पर उनका भरत से मिलन हुआ था जब भरत अयोध्या के राजपरिवार, सभी गुरुओं, मंत्रियों के साथ श्रीराम को वापस लेने पहुंचे थे लेकिन श्रीराम ने वापस लौटने से मना कर दिया था। इसके कुछ समय पश्चात श्रीराम चित्रकूट भी छोड़कर चले गए थे क्योंकि उन्हें डर था कि अब अयोध्या की प्रजा यहाँ निरंतर आती रहेगी जिससे ऋषि मुनियों के ध्यान में बाधा पहुंचेगी। दंडकारण्य :- 🔆 दंडकारण्य के वनों में पहुंचकर सर्वप्रथम उन्होंने ऋषि अत्री तथा माता अनुसूया से उनके आश्रम में जाकर भेंट की। माता अनुसूया से माता सीता को कई बहुमूल्य रत्न, आभूषण तथा वस्त्र प्राप्त हुए। ऋषि अत्री से ज्ञान पाकर वे आगे बढ़ गए। इसके पश्चात उनका विराध राक्षस से सामना हुआ जिसका उन्होंने वध किया। तब वे शरभंग ऋषि से मिले जिनकी मृत्यु समीप ही थी। श्रीराम से भेंट के पश्चात ऋषि शरभंग ने अपने प्राण त्याग दिए तथा प्रभु धाम में चले गए। इसके पश्चात भगवान राम दंडकारण्य के वनों में घूम-घूमकर राक्षसों का अंत करने लगे। प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल का ज्यादातर समय दंडकारण्य के वनों में ही बिताया था। जब दंडकारण्य के वनों में प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल के 10 से 12 वर्ष बिता दिए तब उनकी भेंट महान ऋषि अगस्त्य मुनि से हुई। अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को उनका अगला पड़ाव दक्षिण में गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में बनाने को कहा। अगस्त्य मुनि से आज्ञा पाकर श्रीराम पंचवटी के लिए निकल गए। पंचवटी :- 🔆 अब श्रीराम गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे जहाँ उनकी भेंट जटायु से हुई। जटायु उनकी कुटिया की रक्षा में प्रहरी के तौर पर तैनात रहते थे। इसी स्थल पर शूर्पनखा ने श्रीराम को देखा था तथा माता सीता पर आक्रमण करने का प्रयास किया था। तब लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी थी। तब उनका रावण के भाई खर व दूषण से युद्ध हुआ व श्रीराम ने उनका राक्षसी सेना समेत वध कर डाला। उसके कुछ समय पश्चात रावण ने अपने मामा मारीच की सहायता से माता सीता का अपहरण कर लिया। रावण ने उनकी सुरक्षा में तैनात जटायु का भी वध कर डाला। भगवान श्रीराम तथा लक्ष्मण माता सीता को ढूंढते हुए वहां से निकल गए। ©N S Yadav GoldMine #phool आज हम भगवान राम ने अपने वनवास के 14 वर्ष कहाँ-कहाँ बिताएं इसके बारें में विस्तार से जानेंगे !!💥💥{Bolo Ji Radhey Radhey} वनवास के 14 व
एक इबादत
जब "kavi "अपनी कविता के लिए शब्द ढूंढने निकला.......✍️ (read in caption...) #kavi_ka_pyar_ho_tum_ladli #kavi_ki_klm_se_likhi_kahani #kavi_ki_mohabbat #kavi_ke_alfaaz_nir_k_jazbat कलम लियें हाथो में हर रोज़ निकल जाते