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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक  :- चंचल मन मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता । फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता । शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुं #कविता

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मुक्तक  :- 

मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता ।
फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता ।
शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है -
यूँ मानों अब देख उसे मुझको मिलती शीतलता ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक  :- चंचल मन


मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता ।

फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता ।

शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुं

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मिटेगा नहीं ये कभी रोग दिल का । यहाँ लोग करना दगा जानते हैं ।। महेन्द्र सिंह प्रखर #शायरी

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White मिटेगा नहीं ये कभी रोग दिल का ।
यहाँ लोग करना दगा जानते हैं ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मिटेगा नहीं ये कभी रोग दिल का ।
यहाँ लोग करना दगा जानते हैं ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मिटेगा नहीं ये कभी रोग दिल का । यहाँ लोग करना दगा जानते हैं ।। महेन्द्र सिंह प्रखर #शायरी

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White मिटेगा नहीं ये कभी रोग दिल का ।
यहाँ लोग करना दगा जानते हैं ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मिटेगा नहीं ये कभी रोग दिल का ।
यहाँ लोग करना दगा जानते हैं ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

शेर:- नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों । जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर #शायरी

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शेर:-
नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों ।
जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR शेर:-
नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों ।
जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को । मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१ चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी । झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२ हिदा #शायरी

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ग़ज़ल :-
बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को ।
मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१

चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी ।
झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२

हिदायत तो यही सबको मिली है ।
कि भूलोगे न फिर अपने वतन को ।।३

न जाने पाये वो बचकर इधर से ।
डगर में आज बैठा दो  नयन को ।।४

नहीं आती हमें है नींद तुम बिन ।
करूँ क्या मैं भला जाके शयन को ।।५

उठी आवाज है दिल से अभी ये ।
निभाना है हमें सारे वचन को ।।६

वफ़ा का नाम मत लेना प्रखर तुम ।
तरसते रह गये वह सब कफ़न को ।।७

१२/०४/२०२४   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
बढ़ाकर हाथ को छू लो गगन को ।
मिटा दो दिल से तुम अब हर शिकन को ।।१
चलोगे नेक पथ पर जब कभी भी ।
झुकेंगें फिर वो सिर तेरे नमन को ।।२
हिदा

M R Mehata(रानिसीगं )

जस्बातो को.... #लव

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जय माता दी 
💙💙💙

©M R Mehata(रानिसीगं ) जस्बातो को....

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह । भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।। कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता मंदिर मस्जि #कविता

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कुण्डलिया :-
रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह ।
भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।।
कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता
मंदिर मस्जिद देख , दुवाएं में है झुकता ।।
दीन-हीन को कष्ट , दिलाने आगे बढ़ना ।
चाहे फिर भी आज , स्वयं को सुख में रखना ।।

०५/०४/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-
रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह ।
भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।।
कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता
मंदिर मस्जि

MONU KUMAR CHAUDHARY

सभी को साथियों को राम राम 🚩🚩🚩 #विचार

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Health Is Wealth DK

##भूलो सभी को मगर ##मां-बाप को भूलना नहीं###

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Vivek

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