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Ganesh Kumar Verma
मेरे ऑफिस की वो लड़की उसकी हँसती आँखों में, सारी खुशियाँ दिख जाती है, मेरे ऑफिस की वो लड़की, याद बहुत अब आती है। अपने मैडम की इज्जत वो हद से ज्यादा करती है, पर सच्ची बातों की खातिर, मैडम से भी लड़ती है। कल क्या होगा जाने कौन, अच्छा समय है सबको भाता , जिस दिन वो ऑफिस आ जाये, मेरा दिन अच्छा हो जाता। ऑफिस का काम हमेशा वो, घर से भीं कर जाती है, अच्छी सुन्दर बातें करती, मन को वो हर्षाती है, मेरे ऑफिस की वो लड़की, याद बहुत अब आती है। तन रम्भा, मन सरस्वती है, मनमोहक नवयौवन है, पहाड़ी नदी सी वो चलती, गजगामीनी चंचल मन है। सबके मन की भाषा समझे, अपनी बात छिपाती है। मेरे ऑफिस की वो लड़की याद बहुत अब आती है, पुष्प, धुप और दीप सजी, वो पूजा की एक थाली है, इससे ज्यादा क्या और बताऊं, नाम उसका दीपाली है। नहीं किसी को ऊँचा बोले सदा हँसती-खिलखिलाती है। मन की बात न बोले हमसे, जाने क्यों शर्माती है, मेरे ऑफिस की वो लड़की याद बहुत अब आती है।। मन की कलम से.................... जन्म दिन की अशेष शुभकामनाओं के साथ 💐💐 ©Ganesh Kumar Verma #जन्मदिन
Dr Wasim Raja
White मौर्य राज वंश के चक्रवर्ती सम्राट की जिंदगी रोचक है। वो रणभूमि में पराक्रम दिखाते दुश्मनों के संहारक है।। इनकी कीर्ति है विराट, मानवता के बने रहे द्योतक है। बौद्ध धर्म के संरक्षक रहे गरीबों बहुजनों के पोषक है।। भारत को विश्व गुरु बनाने वाले बौद्ध धर्म के संवाहक हैं। सदा सत्य ,दया ,करुणा, मैत्री भाव ,प्रेम के उपासक हैं।। सत कर्मों से हमेशा ऊंचा रहने वाला इनका मस्तक है। विश्व में बुद्मम शरणम गच्छामि का देते रहे दस्तक है।। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के यही समपोषक हैं। धर्म में बाह्य आडंबर का सदा बने रहे अवरोधक हैं।। वसीम राजा की है यही आरजू और है यही कथन। विश्व में गूंजे भाईचारे का स्वर हरसू हो बस अमन।। महान सम्राट अशोक की जयंती पर शत-शत नमन। ©Dr Wasim Raja सम्राट अशोक के जन्मदिन पर समर्पित
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
"Hare Krishna "(कवि/गीतकार)
गिर गिर कर उठने कोशिश करते रहना है । चलना ही जीवन है प्यारे चलते रहना है ।। ©"Hare Krishna "(कवि/गीतकार) कविता
Shahid0007
Autumn गुलों के रास्ते में, कांटे तो आयेंगे ही, चुभेंगे पावों में,और दिल को दहलाएंगे भी, हो सकता है डर भी लगे,और मन कहे घर लौटने को मगर, ये कांटे ही गुलों तक पहुंचाएंगे भी 🙂 ©Shahid0007 #कविता