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Divyanshu Pathak
व्यक्ति का कर्म ही भाग्य का निर्माण करता है। भविष्य में प्राप्त होने वाले कर्म-फल को ही भाग्य कहा जाता है। पिछले संचित कर्मो के फल, जो वर्तमान में भोगे जाते हैं, उन्हे प्रारब्ध कहते हैं। जीव ही सारे कर्म करता है और उनके फल भोगता है। जीव स्वयं में क्या है ईश्वर का अंश है। अत: सैद्धान्तिक दृष्टि से ईश्वर ही कर्ता है और भोक्ता भी है। मानव जीवन का कर्ता रूप है और शेष योनियां भोक्ता रूप होती हैं। अत: कर्म के सारे सिद्धान्त केवल मानव जीवन पर ही लागू होते हैं। जीवन कर्म से कभी मुक्त भी नहीं हो सकता। यह तो जीवन का पर्याय है। कर्म होगा तो फल भी मिलेगा। फल आने पर ही कर्म की समाप्ति होती है।..... कर्म का क्षेत्र उतना ही बडा है जितना कि एक सौ वर्ष का जीवन काल। कर्म ही मानव जीवन का मूल आधार भी है। पर्याय भी कह सकते हैं। हर कर्म का भी तो
Anil Siwach
Motivational indar jeet group
जीवन दर्शन 🌹 अपनी विशेषताएँ ही बाहरी सहयोग को आकर्षित करती है !.i. j ©Motivational indar jeet guru #जीवन दर्शन 🌹 अपनी विशेषताएँ ही बाहरी सहयोग को आकर्षित करती है !.i. j
Avinash Sharma
"वर्तमान में सहा गया कष्ट भविष्य में चेहरे पर मुस्कान की वजह बन जाती है।" दर्शन
शेष दर्शन
तेरा चेहरा दिन में एक बार भी दिख जाये सुकून आ जाता है़ मेरी मोहब्बत थोड़ी हट के है़ पगली तू जितनी दूर होती है़ ना ये दिल तुझे उतना ही चाहता है़ #दर्शन
HP
“संसार-दुख-सागर है,”-ऐसी मान्यता रखने वाले प्रायः वे ही लोग हुआ करते हैं, जो अपनी दुर्बलताओं के कारण संसार में सुख दर्शन नहीं कर पाते। दर्शन
shaun kabeer
फ़िर मूरत से बाहर आकर, चारो ओर बिखर जा झूठों की दुनिया मे सच को आसानी दे मौला दर्शन