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Ashoka The Shayar

बालिके तेरा भविष्य अति उज्जवल है---- #शायरी

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आशिक मिजाज बाबा

©Ashoka The Shayar बालिके तेरा भविष्य अति उज्जवल है----

Ashoka The Shayar

बालिके तेरा भविष्य अति उज्ज्वल है---- #लव

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बालिके तेरा भविष्य------

©Ashoka The Shayar बालिके तेरा भविष्य अति उज्ज्वल है----

Gautam

दुखी माँ बाबा से: बाबा जी मेरे 1000/- रुपये वापस करो। बाबा: क्यों बालिके? माँ: आप ने कहा था सब शनि का दोष है, इसलिए बेटा नहीं पढ़ता। मैंने श

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दुखी माँ बाबा से: बाबा जी मेरे 1000/- रुपये वापस करो। बाबा: क्यों बालिके? माँ: आप ने कहा था सब शनि का दोष है, इसलिए बेटा नहीं पढ़ता। मैंने श

yogesh atmaram ambawale

शुभ संध्या मित्रहो आताचा विषय आहे पोरी जरा जपून.. harshala patil यांचा हा विषय आहे #पोरीजराजपून #Collab #yqtaai Best YQ Marathi Quotes पेज ल #YourQuoteAndMine

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खूप खुश होतो,गगनात मावेनासा आनंद झाला होता,
कारणच तसे  होते,बाप झालो होतो मी,घरी कन्यारत्न आला होता.
नंतर जशी जशी मुलगी मोठी होत गेली
आनंद कमी होत,काळजीच जास्त वाटू लागली.
काळजात धस्स होते जेव्हा स्त्री वरील अत्याचाराच्या बातम्या वाचतो,
कित्येक नराधम लोकांनी भरली आहे ही दुनिया हे चांगलंच समजतो.
साठ वर्षाच्या वृद्धेपासून ते सहा महिन्यांच्या बालिकेपर्यंत इथे कुणीच सुरक्षित नाही,
समजत नाही मुलीच्या सुरक्षेसाठी काय करावे नि काय नाही.
कसे सांगावे तिला पोरी जरा जपून,
बाहेरच्या ह्या जगात कित्येक नराधम बसलेत टपून.
ह्या बेभरवश्याच्या दुनियेत बहुतेकांच्या वागण्यात नुसतीच थाप आहे,
चांगलेपणाचा आव आणतात नि नजरेत लपवून पाप आहे. शुभ संध्या मित्रहो
आताचा विषय आहे
पोरी जरा जपून..
harshala patil यांचा हा विषय आहे
#पोरीजराजपून
#collab #yqtaai
Best YQ Marathi Quotes पेज ल

gudiya

#Travel हिम गिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह। एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह। नीचे जल था, ऊपर हिम था, #Poetry #nojotohindi #nojotoLove #nojotoenglish #nojotoshayari

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"कामायनी" - जयशंकर प्रसाद
(चिंता सर्ग)

©gudiya #Travel 

हिम गिरि के उत्तुंग शिखर पर, 
बैठ शिला की शीतल छाँह। 
एक पुरुष, भीगे नयनों से, 
देख रहा था प्रलय प्रवाह। 

नीचे जल था, ऊपर हिम था,

AB

Kavita chaudhary 🐣 🐤🐥🐣🐤🐥🐣🐤🐥🐣 दिन मुबारक हो,हो रात मुबारक तुमको, हो मुबारक ये सहर-ओ-शाम तुमको मेरे गट्टू 🤭😉, तुम रहो आदतन गुल-ए-बहार बनके,

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Come to her like happiness,
Come to her like prosperity
Come to her like promises
Come to her like success
Come to her like cheers
Come to her like peace
Come to her like angel
Come to her like bliss 
Come to her like love  
 Kavita chaudhary 🐣
🐤🐥🐣🐤🐥🐣🐤🐥🐣

दिन मुबारक हो,हो रात मुबारक तुमको, हो मुबारक ये सहर-ओ-शाम
तुमको मेरे गट्टू 🤭😉, तुम रहो आदतन गुल-ए-बहार बनके,

N S Yadav GoldMine

कुरु वन्स की उतपत्ति:- पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध, और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुर #Travel #पौराणिककथा

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कुरु वन्स की उतपत्ति:- पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध, और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुरूरवा से आयु, आयु से राजा नहुष, और नहुष से ययाति उत्पन्न हुए। ययाति से पुरू हुए। पूरू के वंश में भरत और भरत के कुल में राजा कुरु हुए। 

कुरु के वंश में शान्तनु का जन्म हुआ। शान्तनु से गंगानन्दन भीष्म उत्पन्न हुए। उनके दो छोटे भाई और थे – चित्रांगद और विचित्रवीर्य। ये शान्तनु से सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। शान्तनु के स्वर्गलोक चले जाने पर भीष्म ने अविवाहित रह कर अपने भाई विचित्रवीर्य के राज्य का पालन किया।
 
भीष्म महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। ये महाराजा शांतनु के पुत्र थे। अपने पिता को दिये गये वचन के कारण इन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। 

 एक बार हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत आखेट खेलने वन में गये। जिस वन में वे शिकार के लिये गये थे उसी वन में कण्व ऋषि का आश्रम था। कण्व ऋषि के दर्शन करने के लिये महाराज दुष्यंत उनके आश्रम पहुँच गये। पुकार लगाने पर एक अति लावण्यमयी कन्या ने आश्रम से निकल कर कहा, हे राजन् महर्षि तो तीर्थ यात्रा पर गये हैं, किन्तु आपका इस आश्रम में स्वागत है। 
 
 उस कन्या को देख कर महाराज दुष्यंत ने पूछा, बालिके आप कौन हैं? बालिका ने कहा, मेरा नाम शकुन्तला है और मैं कण्व ऋषि की पुत्री हूँ। उस कन्या की बात सुन कर महाराज दुष्यंत आश्चर्यचकित होकर बोले, महर्षि तो आजन्म ब्रह्मचारी हैं फिर आप उनकी पुत्री कैसे हईं? 
 
 उनके इस प्रश्न के उत्तर में शकुन्तला ने कहा, वास्तव में मेरे माता-पिता मेनका और विश्वामित्र हैं। मेरी माता ने मेरे जन्म होते ही मुझे वन में छोड़ दिया था जहाँ पर शकुन्त नामक पक्षी ने मेरी रक्षा की। इसी लिये मेरा नाम शकुन्तला पड़ा। 
 
 उसके बाद कण्व ऋषि की दृष्टि मुझ पर पड़ी और वे मुझे अपने आश्रम में ले आये। उन्होंने ही मेरा भरन-पोषण किया। जन्म देने वाला, पोषण करने वाला तथा अन्न देने वाला – ये तीनों ही पिता कहे जाते हैं। इस प्रकार कण्व ऋषि मेरे पिता हुये। 
 
 शकुन्तला के वचनों को सुनकर महाराज दुष्यंत ने कहा, शकुन्तले तुम क्षत्रिय कन्या हो। यदि तुम्हें किसी प्रकार की आपत्ति न हो तो मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ। शकुन्तला भी महाराज दुष्यंत पर मोहित हो चुकी थी, अतः उसने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। दोनों नें गन्धर्व विवाह कर लिया। कुछ काल महाराज दुष्यंत ने शकुन्तला के साथ विहार करते हुये वन में ही व्यतीत किया। 
 
 फिर एक दिन वे शकुन्तला से बोले, प्रियतमे मुझे अब अपना राजकार्य देखने के लिये हस्तिनापुर प्रस्थान करना होगा। महर्षि कण्व के तीर्थ यात्रा से लौट आने पर मैं तुम्हें यहाँ से विदा करा कर अपने राजभवन में ले जाउँगा।

 इतना कहकर महाराज ने शकुन्तला को अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में अपनी स्वर्ण मुद्रिका दी और हस्तिनापुर चले गये। 

 एक दिन उसके आश्रम में दुर्वासा ऋषि पधारे। महाराज दुष्यंत के विरह में लीन होने के कारण शकुन्तला को उनके आगमन का ज्ञान भी नहीं हुआ और उसने दुर्वासा ऋषि का यथोचित स्वागत सत्कार नहीं किया। दुर्वासा ऋषि ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित हो कर बोले, बालिके मैं तुझे शाप देता हूँ कि जिस किसी के ध्यान में लीन होकर तूने मेरा निरादर किया है, वह तुझे भूल जायेगा। 
 
 दुर्वासा ऋषि के शाप को सुन कर शकुन्तला का ध्यान टूटा और वह उनके चरणों में गिर कर क्षमा प्रार्थना करने लगी। शकुन्तला के क्षमा प्रार्थना से द्रवित हो कर दुर्वासा ऋषि ने कहा, अच्छा यदि तेरे पास उसका कोई प्रेम चिन्ह होगा तो उस चिन्ह को देख उसे तेरी स्मृति हो आयेगी। 
 
 महाराज दुष्यंत से विवाह से शकुन्तला गर्भवती हो गई थी। कुछ काल पश्चात् कण्व ऋषि तीर्थ यात्रा से लौटे तब शकुन्तला ने उन्हें महाराज दुष्यंत के साथ अपने गन्धर्व विवाह के विषय में बताया। इस पर महर्षि कण्व ने कहा, पुत्री विवाहित कन्या का पिता के घर में रहना उचित नहीं है। 
 
 अब तेरे पति का घर ही तेरा घर है। इतना कह कर महर्षि ने शकुन्तला को अपने शिष्यों के साथ हस्तिनापुर भिजवा दिया। मार्ग में एक सरोवर में आचमन करते समय महाराज दुष्यंत की दी हुई शकुन्तला की अँगूठी, जो कि प्रेम चिन्ह थी, सरोवर में ही गिर गई। उस अँगूठी को एक मछली निगल गई। 
 
 महाराज दुष्यंत के पास पहुँच कर कण्व ऋषि के शिष्यों ने शकुन्तला को उनके सामने खड़ी कर के कहा, महाराज शकुन्तला आपकी पत्नी है, आप इसे स्वीकार करें। महाराज तो दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण शकुन्तला को विस्मृत कर चुके थे। अतः उन्होंने शकुन्तला को स्वीकार नहीं किया और उस पर कुलटा होने का लाँछन लगाने लगे। शकुन्तला का अपमान होते ही आकाश में जोरों की बिजली कड़क उठी और सब के सामने उसकी माता मेनका उसे उठा ले गई। 
 
 जिस मछली ने शकुन्तला की अँगूठी को निगल लिया था, एक दिन वह एक मछुआरे के जाल में आ फँसी। जब मछुआरे ने उसे काटा तो उसके पेट अँगूठी निकली। मछुआरे ने उस अँगूठी को महाराज दुष्यंत के पास भेंट के रूप में भेज दिया। अँगूठी को देखते ही महाराज को शकुन्तला का स्मरण हो आया और वे अपने कृत्य पर पश्चाताप करने लगे। महाराज ने शकुन्तला को बहुत ढुँढवाया किन्तु उसका पता नहीं चला।
 
 कुछ दिनों के बाद देवराज इन्द्र के निमन्त्रण पाकर देवासुर संग्राम में उनकी सहायता करने के लिये महाराज दुष्यंत इन्द्र की नगरी अमरावती गये। संग्राम में विजय प्राप्त करने के पश्चात् जब वे आकाश मार्ग से हस्तिनापुर लौट रहे थे तो मार्ग में उन्हें कश्यप ऋषि का आश्रम दृष्टिगत हुआ। उनके दर्शनों के लिये वे वहाँ रुक गये। आश्रम में एक सुन्दर बालक एक भयंकर सिंह के साथ खेल रहा था। मेनका ने शकुन्तला को कश्यप ऋषि के पास लाकर छोड़ा था तथा वह बालक शकुन्तला का ही पुत्र था। उस बालक को देख कर महाराज के हृदय में प्रेम की भावना उमड़ पड़ी। 
 
 वे उसे गोद में उठाने के लिये आगे बढ़े तो शकुन्तला की सखी चिल्ला उठी, हे भद्र पुरुष आप इस बालक को न छुयें अन्यथा उसकी भुजा में बँधा काला डोरा साँप बन कर आपको डस लेगा। यह सुन कर भी दुष्यंत स्वयं को न रोक सके और बालक को अपने गोद में उठा लिया। अब सखी ने आश्चर्य से देखा कि बालक के भुजा में बँधा काला गंडा पृथ्वी पर गिर गया है। सखी को ज्ञात था कि बालक को जब कभी भी उसका पिता अपने गोद में लेगा वह काला डोरा पृथ्वी पर गिर जायेगा। 
 
 सखी ने प्रसन्न हो कर समस्त वृतान्त शकुन्तला को सुनाया। शकुन्तला महाराज दुष्यंत के पास आई। महाराज ने शकुन्तला को पहचान लिया। उन्होंने अपने कृत्य के लिये शकुन्तला से क्षमा प्रार्थना किया और कश्यप ऋषि की आज्ञा लेकर उसे अपने पुत्र सहित अपने साथ हस्तिनापुर ले आये। महाराज दुष्यंत और शकुन्तला के उस पुत्र का नाम भरत था। 
 बाद में वे भरत महान प्रतापी सम्राट बने और उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष हुआ।

©N S Yadav GoldMine कुरु वन्स की उतपत्ति:- पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध, और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुर

Swatantra Yadav

सुशील कुमारी "सांँझ" miss Happiness🌺🌺 सुमित ओझा सुचि (सनाज़) @Neha Rupali Lakhani Reena yadav Vijay Laxmi rajput

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तस्वीरों  में तो  हर कोई  मुस्कुराता है,
स्वतंत्र तो हंसता है हकीक़त में हरदम।

आपकी मोहब्बतों ने  कर दिया मगर,
मेरी इन मुस्कुराती आंखों को भी नम।

मिला दोस्तों का ऐसा कारवां मुझको,
जो बांट  लेते हैं मेरे, खुशी और गम। सुशील कुमारी "सांँझ" 
miss Happiness🌺🌺
सुमित ओझा
सुचि (सनाज़) 
@Neha
Rupali Lakhani 
Reena yadav 
Vijay Laxmi rajput

स्वतन्त्र यादव

सुशील कुमारी "सांँझ" miss Happiness🌺🌺 सुमित ओझा सुचि (सनाज़) @Neha Rupali Lakhani Reena yadav Vijay Laxmi rajput

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तस्वीरों  में तो  हर कोई  मुस्कुराता है,
स्वतंत्र तो हंसता है हकीक़त में हरदम।

आपकी मोहब्बतों ने  कर दिया मगर,
मेरी इन मुस्कुराती आंखों को भी नम।

मिला दोस्तों का ऐसा कारवां मुझको,
जो बांट  लेते हैं मेरे, खुशी और गम। सुशील कुमारी "सांँझ" 
miss Happiness🌺🌺
सुमित ओझा
सुचि (सनाज़) 
@Neha
Rupali Lakhani 
Reena yadav 
Vijay Laxmi rajput

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रचना:-02 विधा:- कहानी(काल्पनिक) विषय:-(पाप और पुण्य) मन कर्म और वचन रखना शुद्ध सदा, इसी से ही तुम्हें प्राप्त होगा पुण्य अदा, पाप ले जायेगे #कोराकागज #कोरकागज #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #KKकविसम्मेलन #collabwithकोराकागज #kknishakamwal

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विधा:- कहानी(काल्पनिक)
विषय:-(पाप और पुण्य)

मन कर्म और वचन रखना शुद्ध सदा,
इसी से ही तुम्हें प्राप्त होगा पुण्य अदा,
पाप ले जायेगें अनचाही सी राहों पर,
न आये अहम रहना ऐसी पनाहों पर।

सम्पूर्ण कहानी अनुशीर्षक में पढ़ियेगा🙏 रचना:-02
विधा:- कहानी(काल्पनिक)
विषय:-(पाप और पुण्य)

मन कर्म और वचन रखना शुद्ध सदा,
इसी से ही तुम्हें प्राप्त होगा पुण्य अदा,
पाप ले जायेगे
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