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अज्ञात
पेज-24 अगले दिन सुबह का सूरज उगने को है... पंछियों का कलरव कोई सुखद ख़बर आने का संकेत दे रहा है तभी कथाकार की पहली दृष्टि अचानक "बिजली" पर पड़ी.. ! बिजली.. ! कौन बिजली..? वही जो ताऊ जी के साथ सुधा के घर आ धमकी...! गांव की छोरी..छैल छबीली...आँगन में मुख चमका रही है..!अपने घर से श्रृंगार पेटी लाई है.. श्रृंगार पेटी.. एक टिन चादर की छोटी सी संदूक..! संदूक में ताला..! ताले के अन्दर बोरोप्लस, सरसों का तेल, मुरदाशंख, बड़ी कंधी, ककई, पॉन्ड्स पाउडर, मोंगरा इत्र की शीशी...! छोटा सा आईना..! मटमैले रंग की घाघरा चोली में केशरिया दुप्पटा कमर में कसा हुआ... दाहिने हाथ में गुदना गुदा... " कजरी मेरी मइया ".. बाएं हाथ में बिजली... ! नैलपॉलिस कत्थाई रंग लग रहा है ... मुख में बोरोप्लस लिपा पुता सा दिखता है.. दो चोटी लाल फीते में कान के ऊपर दो गोले बनाये हुये...बालों में मन भर सरसों का तेल चुपड़ा हुआ कानों के पास से बूंद बूंद रिस रहा है... सामने बालकनी में हमारी पुष्पा जी अपने दांतों की परवरिश में लगी बड़े गौर से बिजली का श्रृंगार देख रही हैं.. तभी इतने में जे.एल.फेमिली पुष्पा जी के घर से गुजरते हुये मंदिर की ओर बढ़ रहे हैं..पुष्पा जी बालकनी में मुखमंजन करते हुये तीनों को बड़े गौर से देखती हुई और..तभी उनका ब्रश दांतों की पकड़ से छूटकर नीचे गिर जाता है.. और अचानक पुष्पा जी के ज्ञान चक्षु जाग्रत होते ही... आगे पेज-25 ©R. Kumar #रत्नाकर कालोनी पेज-24 अगले दिन सुबह का सूरज उगने को है... पंछियों का कलरव कोई सुखद ख़बर आने का संकेत दे रहा है तभी कथाकार की पहली दृष्टि अ