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डॉ. बृजेश
छोर ही जब करता हो भ्रमित साध्य है कब उसकी निर्मिति एक हल मुझको सूझे यही समर्पण कर देना ही सही.. ज्ञान सीमित है अपना अहो असीमित से क्यों स्पर्धा कहो वही जब चाहे ले ले गोद.. मिलेगा इसमेंं सत्य प्रबोध.. सुना है होता वह भी क्रीत मूल्य बस उसका केवल प्रीति प्रीति को लेकिन खोजूँ कहाँ सम्मोहित कर रखा है जहाँ.. चलो हो जाते हैं गुम मीत राह में जिसकी अनुपम प्रीत जीत जाने देते हैं उसे हार सर्वस्व जीतना जिसे.. ©डॉ. बृजेश #तजें_सारी_स्पर्धा_मीत_जीत_लें_उसकी_अनुपम_प्रीत
Mohan Sardarshahari
नौ दिन , नवरूप सजे ऐसी देवी संसार भजे सच्चे मन से जो कोई ध्याये मन उसके सारे विकार तजे।। ©Mohan Sardarshahari मन सारे विकार तजे
Ratan Singh Champawat
हरदी में चूना मिले, भरम होत सब भंग निज रंग को दोऊ तजे,सहज सजे इकरंग हरदी में चूना मिले, भरम होत सब भंग। निज रंग को दोऊ तजे,सहज सजे इकरंग #dilkideharise
Kusum Sharma
#NationalEducationday बहुत जरुरी है अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश ही दूर कर सकता है पर सिर्फ़ डिग्रियां और अक्षर ज्ञान ही पर्याप्त नही है शिक्षा वह हो जो आपके पूरे व्यक्तित्व को निखारे मानवता जिसकी पहचान हो शिक्षा कभी ख़त्म नही होती हम ज़िन्दगी भर एक दूसरे से कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं शिक्षा का कोई जाति धर्म उम्र छोटा बड़ा आदि से संम्बंध नही होता ये तो जिससे भी कभी भी कहीं भी मिले ले लेना चाहिए उत्तम विद्द्या लीजिये यद्दपि नीच समान पड़े अपावन ठौर पर कंचन तजे न कोय (अज्ञात) #NationalEducationDay #शिक्षा #विचार #हिंदी
Sunita Bishnolia
Satya Prakash Upadhyay
बस यही सवाल बार बार घूमता है अंतकाल जब हे! हरि आए, माया का प्रकोप न छाए। विस्मृत न हो जाये छवि तेरी, कामना बस यही हो जाए पूरी। चाहे जितना लम्बा हो जीवन, स्मरण रहे तेरा हर पल हर क्षण। नाम दाम की इक्षा नहीं जग में, बस तेरा नाम बहे रग रग में। परोपकार के भाव हों मन में, परपीड़ा न हो किसी समय में। ऐसे हीं जब प्राण तजे हम, हे प्रभु!देना दर्श,न बनना निर्मम। बस यही सवाल बार बार घूमता है #अंतकाल जब हे! #हरि आए, #माया का #प्रकोप न छाए। #विस्मृत न हो जाये #छवि तेरी, #कामना बस यही हो जाए पूरी। चाहे
R.S. Meena
विवश तन्हाँ-तन्हाँ सी जिन्दगी, तन्हाँ-तन्हाँ सा है समाँ। गुम हैं सब अपनी दुनिया में, खुद को माने जहाँ।। कहीं दिखती हैं उदारता, तो कहीं झलकती है विवशता, बसे उदार मन, नश्वर तन में, ना रहें किसी मन में बर्बरता। अवसर मिले सभी जन को जग में, भाग्य आजमाने के, तजे ना कोई सुमार्ग अपना, देख के भव्य द्वार तहखाने के। काँटो से दामन भरे कोई, फूल समझ स्वीकार करे, महकेंगा काँटो से भी आँगन, प्रकृति को अंगीकार करे। नश्वर जीवन के लिए भटके मानव ना जाने कहाँ-कहाँ। तन्हाँ-तन्हाँ सी जिन्दगी, तन्हाँ-तन्हाँ सा है समाँ। गुम हैं सब अपनी दुनिया में, खुद को माने जहाँ।। प्रकृति के साथ रहे सब, ना छोड़े इसका साथ कभी, पेड़ो से जो मिले हैं ऊर्जा, ग्रहण करे उसे यहाँ सभी। भेद नहीं है जब प्रकृति में, मानव को ये हक किसने दिये, साँसे रोक दे भेदभाव यहाँ पर, लाखो लोगों के प्राण लिये। चाहे पुकारे किसी नाम से, शक्ति का स्रोत मात्र प्रकृति है, नर और मादा के अलावा, सब सोची समझी अनुकृति है। लिख दे नाम चाहे जहाँ, पर प्रकृति बिना ना मिले पनाहँ। तन्हाँ-तन्हाँ सी जिन्दगी, तन्हाँ-तन्हाँ सा है समाँ। गुम हैं सब अपनी दुनिया में, खुद को माने जहाँ।। विवश तन्हाँ-तन्हाँ सी जिन्दगी, तन्हाँ-तन्हाँ सा है समाँ। गुम हैं सब अपनी दुनिया में, खुद को माने जहाँ।। कहीं दिखती हैं उदारता, तो कहीं झलकत
sandy
📝✍️📚... एक पत्र तुझ्यासाठी प्रिय असावरी. एक मी आणि एक तू. झाल. संपल इथच आपल जग. कशाला कोण हव आपल्याला इथ ? या जगात लोक आली कि त्यांचा त्रा