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Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 9 रावण को क्रोध आता है आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥ सीता के मुख से कठोर वचन अर्थात अपनेको खद्योत के (जुगनूके) तुल्य औररामचन्द्रजी को सुर्य के समान सुनकर रावण को बड़ा क्रोध हुआ जिससे उसने तलवार निकाल कर, बड़े गुस्से से आकर ये वचन कहे ॥9॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम रावण सीताजी को कृपाण से भय दिखाता है सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥ नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी॥ हे सीता! तूने मेरा मान भंग कर दिया है।इस वास्ते इस कठोर खडग (कृपान) से मैं तेरा सिर उड़ा दूंगा॥हे सुमुखी, या तो तू जल्दी मेरा कहना मान ले,नहीं तो तेरा जी जाता है,(नही तो जीवन से हाथ धोना पड़ेगा)॥ माता सीता के कठोर वचन स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥ सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥ रावण के ये वचन सुनकर सीताजी ने कहा,हे शठ रावण, सुन,मेरा भी तो ऐसा पक्का प्रण है की या तो इस कंठ पर श्याम कमलो की मालाके समान सुन्दर और हाथिओ के सुन्ड के समान (पुष्ट तथा विशाल) रामचन्द्रजी की भुजा रहेगी या तेरी यह भयानक तलवार।अर्थात रामचन्द्रजी के बिना मुझे मरना मंजूर है,पर अन्य का स्पर्श नहीं करूंगी॥ माता सीता तलवार से प्रार्थना करती है चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं॥ सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा॥ सीता उस तलवार से प्रार्थना करती है कि हे तलवार!तू मेरे संताप को दूर कर,क्योंकि मै रामचन्द्र जी की विरहरूप अग्निसे संतप्त हो रही हूँ॥ सीताजी कहती है, हे चन्द्रहास (तलवार)!तेरी शीतल धारासे (तू शीतल, तीव्र और श्रेष्ठ धारा बहाती है, तेरी धारा ठंडी और तेज है) मेरे भारी दुख़ को दूर कर॥ मंदोदरी रावण को समझाती है सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥ कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥ सीता जीके ये वचन सुन कर,रावण फिर सीताजी को मारने को दौड़ा। तब मय दैत्य की कन्या मंदोदरी ने निति के वचन कह कर उसको समझाया॥फिर रावण ने सीता जी की रखवारी सब राक्षसियों को बुलाकर कहा कि –तुम जाकर सीता को अनेक प्रकार से भय दिखाओ॥ रावण राक्षसियों को आदेश देता है मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥ यदि वह एक महीने के भीतर मेरा कहना नहीं मानेगी,तो मैं तलवार निकाल कर उसे मार डालूँगा॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 395 से 406 नाम 395 विरामः जिनमे प्राणियों का विराम (अंत) होता है 396 विरजः विषय सेवन में जिनका राग नहीं रहा है 397 मार्गः जिन्हे जानकार मुमुक्षुजन अमर हो जाते हैं 398 नेयः ज्ञान से जीव को परमात्वभाव की तरफ ले जाने वाले 399 नयः नेता 400 अनयः जिनका कोई और नेता नहीं है 401 वीरः विक्रमशाली 402 शक्तिमतां श्रेष्ठः सभी शक्तिमानों में श्रेष्ठ 403 धर्मः समस्त भूतों को धारण करने वाले 404 धर्मविदुत्तमः श्रुतियाँ और स्मृतियाँ जिनकी आज्ञास्वरूप है 405 वैकुण्ठः जगत के आरम्भ में बिखरे हुए भूतों को परस्पर मिलाकर उनकी गति रोकने वाले 406 पुरुषः सबसे पहले होने वाले 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 9 रावण को क्रोध आता है आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥ सीता के मुख से