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priya sharma
( विद्यार्थी जीवन ) रात का सन्नाटा विचारों का शोर, असंख्य सवाल,कुछ किताबें, और एक कप चाय. --प्रिया शर्मा ©priya sharma # विद्यार्थी जीवन
Shreya Dikshit
जब हमारे विद्यार्थी जीवन की शुरुआत होती है आँखों में नन्हें सपने, दिल में निश्छल भाव कुछ करने का जुनून सा होता है हर कठिन परिक्षा से गुज़रते हैं हर संघर्ष को जीत में बदलने की कोशिश होती है हर किसी के मन में कुछ हासिल करने की ख़्वाहिश होती है ©Shreya Dikshit #विद्यार्थी जीवन
Rahul Chaudhary
इस पंखे औऱ बल्ब के सामने हमारी जवानी निकल जाती है इसी के सामने कोयले से हीरे का जन्म होता है।। विद्यार्थी जीवन
Raone
विद्यार्थी जीवन तसव्वुर रख़ वह वक्त भी जरूर आयेगा । जिसकी तलाश में तू दर-बदर भटकता फिर रहा।। तू बस चलता जा बेपरवाह, बेझिझक, फिर देख । तेरा मुकम्मल मुकाम भी तुझसे मिलने जरूर आयेगा ।। यूँ तो बेवजह की हँसी को दुनियाँ पागल समझती है । फ़िर भी दर्द को छुपाने के लिए हमें हँसी दिखानी पड़ती है ।। अरे विद्यार्थी हैं हम, हम में लक्ष्य तक पहुँचने का जूनून होता है । पर नेता, धाँधली, अमीर, पैसा राह में इक रोड़ा बन खड़ा होता है।। क्या करें साहब इक जिम्मेदारी होती है घर की । कितनी भी मुश्किलें आयें, इक जुनून होती है मंजिल छूने की ।। इसलिए हम भी वजह की तलाश में वक्त जाया नहीं करते । बेवजह, बेपरवाह, बेझिझक मुस्कुराया हैं करते ।। राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी विद्यार्थी जीवन
priya sharma
( विद्यार्थी जीवन ) सर्द ठिठुरती रातों में... जब वो कंबल को नजर अंदाज कर... किताबों को चुनता है.... सुनो I ऐसा ही शख्स आगे चल कर... इतिहास बदलता है. --प्रिया शर्मा ©priya sharma #विद्यार्थी जीवन...
Simmi Pandey
विद्यार्थी जीवन का सुखमय होना ही उसके लिए सबसे बड़ा श्राप हैं 📖✍️ #विद्यार्थी जीवन
पूर्वार्थ
ये सपने ये चमक ये चकाचौंध ये प्रयास ये परीक्षा ये परिणाम और ये हुए धड़ाम हाय!!! ये दुःख पीढ़ा उदासी आत्मा भी थोडी रुआंसी फिर...? फिर नई रात लड़खड़ाए कदम घंटों दौड़ती कलम हाथ बेदम अंगड़ाई फिर नई सुबह नई उम्मीद पर परीक्षा वही फिर से वही हाय!! कितना वृताकार है विद्यार्थी जीवन ©पूर्वार्थ #विद्यार्थी #जीवन
Shishpal Chauhan
इस फैशन के दौर से अस्थिर मन से विद्यार्थी कक्षा में जाता है, किताबों के बोझ से वह दब जाता है। दिन रात वह परेशान रहता है, अपने मन की बात किसी से नहीं कहता है। अच्छे अंको का दबाव उन पर सदा रहता है, सभी के तानों को वह सहता है। अभिभावक उनके अंकों की तुलना दूसरों से करते हैं, वे बच्चों के मासूम दिल में भय पैदा करते हैं। संघर्ष उनके पढ़ाई का चलता जाता है, मंजिल की और वह बढ़ता जाता है। कुछ बच्चे आगे बढ़ जाते हैं, तो कुछ पीछे रह जाते हैं। कुछ विद्यार्थी मानसिक दबाव सहन कर जाते हैं, कुछ दबाव के कारण मृत्यु को गले लगा लेते हैं। जो विद्यार्थी समय और परिश्रम का महत्व समझता है, वही अपनी किस्मत बदलता है। जो विद्यार्थी किताबें संग खेलता है, वही बोझ को अपने आसानी से झेलता है। सफर बड़ी मुश्किल से कटता है, वह किसी की रोके से नहीं रुकता है। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से अपना सपना साकार कर सकता है, अपने अध्यापकों में साथियों के सहयोग से आगे बढ़ सकता है। ©Shishpal Chauhan #विद्यार्थी जीवन
वो SabnamKhatoon
अपने जीवन को संवारने के लिए हम लोग ना जाने कितने परिश्रम करते हैं। जीवन में खुशियां हो या ना हो यह तो दो पहलू पर निर्भर करता है। एक तो कर्म और दूसरा समय। मेरे हिसाब से यह दो पहलू ही अहम है जीवन के लिए। ©वो SabnamKhatoon जीवन पर कविता
Rajveer Salvi
Alone दासता–ए–बेरोजगार चार बायीं छ: फ़ीट के बन्द कमरे में, बैठ स्कूल लेक्चरार की तैयारी में, जुटा है एक किशोर| कुछ बनने की ख्वाहिश लेकर चन्द सालों पहले अपना घर छोड़, कई मिलों दूर चला आया है, एक किशोर| बीते साल रीट में कुछ पॉइंट से रह गया था वो, इस अवसाद के साथ एक अनसुलझी, ख़ामोश ज़िन्दगी से बहुत कुछ ना कहते हुए भी, बहुत कुछ कह रहा है, एक किशोर| रोज़ इस फ़िराक से की कही पीछे ना छूट जाऊ मंझिल की राहों से, इस कम्पा देने वाली सर्दी में भी जल्दी उठ जाता है, एक किशोर| रुपयों की अहमियत और मेहनत की कमाई से जोड़ें पैसों की क़द्र समझ, कई किलोमीटर दूर कोचिंग तक पैदल अपने हौसले भरे पैरों से बढ़ा जा रहा है , एक किशोर| सर्दी आ रही है, मम्मी ने अपने हाथों की गर्म नरमाहट, प्यार और आशीर्वाद से भेजें स्वेटर को पहनकर, इस ढलती शाम में भागते वाहनों को चीरते हुए, अपने कमरे की ओर बढ़ रहा है, एक किशोर| पापा कह रहे थे, बेटा इस बार फसल अच्छी हो जाए तो, कुछ पैसे ज्यादा भेजूँगा, तू एक अच्छा नया स्वेटर ले लेना और पाव भर दूध भी लाकर पी लेना, बीते महीने तू आया था तो बड़ा कमज़ोर दिख रहा था, पापा के दुलार को बढ़ाने में दिन रात जुटा हुआ है, एक किशोर | पर यह क्या था , इस बार तो बारिश बहुत हुई पक्क चुकी फसलें पानी से भर गई चारों ओर खेत में पानी ही पानी था , पापा के इस दुःख पर अपनी ज़िंदगी से कई शिकायतों के सवालों, के सैलाब से जूझ रहा है, एक किशोर | छुटकी बोल रही थी, फ़ोन पे भैया महीनों हो गये आपको देखे, दीवाली भी आ रही है, आओगे ना आप इस बार , ना जाने बदलतीं सरकारें और सत्ता पाकर बेसुध हुए दो-दो शहनशाहो का, कब परीक्षा फ़रमान जारी हो जाये इस डर से इस बार दीवाली पर जाने से कुछ नरवश सा हो गया है, एक किशोर | बदलती सरकारों और बदलतें फैसलों महँगाई के चंगुल तथा शिक्षामंत्री जी की, चिड़िया उड़ कोवा उड़ खेल में बुरी तरह फंस चुका है, आज का हर एक किशोर | इस उम्मीद से की एक दिन नई सुबह आएगी उसकी जिंदगी में यही सोच रूखी सुखी रोटी खा कर चंद बिस्तर लिपटकर सो रहा है, एक किशोर | लेखक – कैलाश चंद्र सालवी #alone मेरी पहली कविता मेरे जीवन पर...