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Sam
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला ©Sam #Dikhawa e mohabbat
#dikhawa e mohabbat
read moreShilpa Priya Dash
Unsplash हाँ, मोहब्बत करती थी मैं तुझसे, पर अब बची है सिर्फ शिकायत। हाँ, अपना मानती थी तुझे, पर अब रह गई है सिर्फ नफ़रत। तेरी रूह, तेरी परछाई, तेरा जिस्म, तेरी रुसवाई, सबने दिखाया है अपना-अपना वाहवाही, अब टूट चुकी हूँ तेरी वफ़ा के हर धोखे से, अब बस सुकून चाहिए तेरे साये के फ़ासले से। ©psshhh...it's me #pyar-e-badnam
#Pyar-e-badnam
read moreSam
रस्म-ए-ताज़ीम न रुस्वा हो जाए इतना मत झुकिए कि सज्दा हो जाए ©Sam #Rashm e tazim
#rashm e tazim
read moreAvinash Jha
कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha #संशय #Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
#संशय Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
read moreSam
Red sands and spectacular sandstone rock formations सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया ©Sam #kasmakash e dehar
#kasmakash e dehar
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