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Sandip Kumar
White दीपक इसलिए वंदनीय हैं क्योंकि वह दूसरो के लिए जलता हैं, दूसरों से कभी नहीं जलता... ©Sandip Kumar दिमाग को ❤️सुकून पहुचाने वाला shayari in hindi❤️❤️🙏🙏
दिमाग को ❤️सुकून पहुचाने वाला shayari in hindi❤️❤️🙏🙏
read moreNurul Shabd
मेरे पास दिल भी है और दिमाग भी – जहां ज़रूरत हो, वहाँ दोनों का इस्तेमाल करना मुझे बखूबी आता है। लोग कहते हैं कि मैं मुश्किल हूँ, पर असल में मैं सिर्फ अपनी सच्चाई पर जीती हूँ। ©Nurul Shabd #Light #मेरे #पास #दिल भी है #और दिमाग भी शायरी मोटिवेशनल
Health Is Wealth DK
Health is wealth dk ©Health Is Wealth DK महान दिमाग विचारों पर चर्चा करते है,
महान दिमाग विचारों पर चर्चा करते है,
read moreGhumnam Gautam
White कुछ दिनों से है मेरे दिल का दिमाग ख़राब हर घड़ी बस तेरे ही बारे में सोचे है ©Ghumnam Gautam #sad_quotes #हर_घड़ी #दिमाग #दिन #ghumnamgautam
#sad_quotes #हर_घड़ी #दिमाग #दिन #ghumnamgautam
read moreF M POETRY
a-person-standing-on-a-beach-at-sunset समंदर के किनारे आ के अक्सर बैठ जाता हूँ.. सुना है दिल के दर्द-ओ-ग़म समंदर सोख लेता है.. यूसुफ़ आर खान... ©F M POETRY #समंदर के किनारे आ के अक्सर..
#समंदर के किनारे आ के अक्सर..
read moreDR. LAVKESH GANDHI
दिल किसका एक प्रेमिका के कहने पर जब प्रेमी ने अपनी जन्म देने वाली माता का दिल कलेजे से बेध कर निकाला और अपनी प्रेमिका के पास जा पहुंँचा तो प्रेमिका ने अपने प्रेमी को धिक्कारते हुए कहा जा जा... जो पुरुष जन्म देने वाली मांँ का नहीं हुआ वह अनजान प्रेमिका का क्या होगा... ©DR. LAVKESH GANDHI #दिल # # दिल का रोग #
दिल # # दिल का रोग #
read moreRameshkumar Mehra Mehra
a-person-standing-on-a-beach-at-sunset अजाद कर दिये मैने मन पंसद लोग..! अब ना चाहत रही ना ही कोई रोग...!! ©Rameshkumar Mehra Mehra # अजाद कर दिये मैने मन पंसद लोग,ना अब कोई ख्वाईश रही ना कोई रोग....
# अजाद कर दिये मैने मन पंसद लोग,ना अब कोई ख्वाईश रही ना कोई रोग....
read moreRV Chittrangad Mishra
green-leaves Word can change our world. ©RV Chittrangad Mishra दिमाग पर जोर डालकर गिनते हो गलतियां मेरी कभी दिल पर हाथ रखकर पूछना कसूर किसका था
दिमाग पर जोर डालकर गिनते हो गलतियां मेरी कभी दिल पर हाथ रखकर पूछना कसूर किसका था
read moreचाँदनी
White जाने कौन सा रोग मेरे कविताओं को लगा है शब्दों का एक कतरा जिस्म पर गिरते ही कविताएँ अपने एक अंग को खा जाती है मै एक कोने मे बैठ कर खूब रोती हूँ और मेरे कविता के बहते नासूर से फिर एक जिस्म तैयार होता है हर बार हृदय काग़ज के आर पार बैठा राहगीरो से दूर अपने जख्म की तूरपाई मे कागज के सिलवटों को नोच देता है दर्द नासूर का नही, जिस्म का नही काग़ज का होता मौत तीनों को कैद करता है रूह अकेला चित्कारता है कविताएँ जहर या औषधि ही नही बनती बाकी तीन खण्डों का मूलभूत अधिकार जीवन - मरण तक स्थापित कर चुकी होती है ©चाँदनी #रोग