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Divyanjli Verma
शीर्षक- सावन का त्योहार शुरू हो गया है सावन का त्योहार, सोने पर सुहागा है ये मंगलवार, शिव शंकर के दोनों रूपों का होगा श्रींगार, रखेगी महिलाये व्रत सोलह सोमवार, हरी हरी चूडिय़ां खनकेगी हर हाथ, हर हर महादेव से गूंजेगा सारा संसार, अमरनाथ की यात्रा के लिए हो जाओ तैयार, शुरू हो गया है सावन का त्योहार, बेल पत्र और भांग धतुरे का होगा अम्बार, दूध, शहद, चावल, माखन, मिश्री, लेके जायेगे भोले के द्वार, पढ़ेगे शिव तांडव शिव चालीसा, पहनाएंगे फ़ूलो का हार , शुरू हो गया है आज, सावन का पावन त्योहार, कुंवारी कन्याएं रखेगी व्रत सोलह सोमवार, पाने को भोलेनाथ सा सुन्दर कोई वर। जय भोलेनाथ स्वरचित मौलिक रचना Divyanjli Verma ©Divyanjli Verma सावन का त्योहार
SG
काश एक त्योहार खुशी का भी होता जिसमे एक दिन के लिए भूखे को रोटी, निर्धन को धन, दुखी को सुख, अशांत को शांति आदि मिलता । लोगो के हित मे सब होता ,अहित नही,हित को पूर्ति होती काश इच्छापूर्ति का भी एक त्योहार होता, ©❤SG❤ खुशी का त्योहार
Sanjeev tohana
ईद हम सभी हिन्दू मुस्लिम जैसे अनेक प्रकार के धार्मिक समूहों को एक साथ मिल जुलकर रहने का संदेश देती है "संजीव टोहाना' ईद का त्योहार.....
sunny pal
दिवाली का त्योहार है हमें रोको मत हम पर पटाखों का खुमार है sunny###pal खाएंगे बहुत सारी हमें मिठाईयो से प्यार है आज दिवाली का त्योहार है दिवाली का त्योहार
Anwar babu
आओ दीप जलायें खुशियां है दिवाली की मस्ती माहौल में छाया है, पर यह जो हमने घर में अपने बत्ती चाइनीस लगाया है और खुद अपनी ज्योतिमय दिए की ज्वाला से अनभिज्ञ होकर, कितने दिवाली कर जेब खाली चीन को प्रचुर बनाया है पर वह जो दिया था मिट्टी का उस मिट्टी की सौंधी खुशबू, सोंधी खुशबू का था बहार; और हम सब देख रहे हैं कि, यह कुम्हारों के हाथों से भी, अब छीन लिया रोजगार कर दो बहिष्कार इस लाइट को अब सब, मैं करता हूं गुहार; बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्योहार बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्योहार/ जगमग जगमग उस दिए की दृश्य बहुत ही प्यारी थी, नंगे पांव नन्हे बच्चों की होठों पर किलकारी थी; वो दिन बहुत ही मनमोहक था खुशियां थी अपार; बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्योहार, बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्योहार/ अब तो हम मिट्टी से बने ना घी के दिएजलाते हैं, ना ही अमावस्या की रात आंखों में काजल लगवाते हैं; भूल गए सब रीति रिवाज संस्कृति और परंपरा को, आधुनिकता की चाहत में महक ना पाए वसुंधरा को; ना जाने अब फिर वह कब होगा दौर सकार, बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्यौहार; बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्योहार/ दीपों का त्योहार.....
Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......