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baria. naresh
barian.aresh मने लई जाने तारि संगात तारा वरना गमतु नथी
Mr Stranger
तेरा हौसला कमाल था, तेरी जुर्रत भी कमाल थी ! समझ न पाए हम अब तक,तू खुद ही एक सवाल थी क्या लिखूँगा तुझपे मैं, मेरे कलम में इतना ज़ोर नहीं हाँ, मगर यह याद रहे, मेरे हौसले कमजोर नहीं ! अंग्रेजों के खैमः में तेरे नाम से लरज़ह तारी था ! हर सिम्त तुम को हराने की, साज़िश रचना जारी था तुम कहाँ डरने वाली थी, दुशमनों की साज़िश से तुम निडर ही आगे बढ़ती रही, खुदा की नवाज़िश से फख्र है इस बात पे कि तू देश की शाबाशी थी तुम एक नारी होकर, इक मुजाहिद-ए-आज़ादी थी उपनाम भी तूने सच में,क्या खूब ही पाया था ! प्यार से तुम को लोगों ने, रानी कह के पुकारा था मर कर भी अमर हो तुम, शहर शहर तेरा नाम है! इस नाचीज़ "रिफ्अत" की तरफ से तुम को सलाम है ©Abdullah Rifat प्रीतिलता वादेदार (बांग्ला : প্রীতিলতা ওয়াদ্দেদার) (5 मई 1911 – 23 सितम्बर 1932) भारतीय स्वतंत्रता संगाम की महान क्रान्तिकारिणी थीं। वे एक
Vibhor VashishthaVs
भावार्थ- पवन के संग से धूल आकाश पर चढ़ जाती है और वही नीच(नीचे की ओर बहने वाले) जल के संग से कीचड़ में मिल जाती है। साधु के घर के तोता-मैना राम-राम सुमिरते हैं और असाधु के घर के तोता-मैना गिन-गिनकर गालियाँ देते हैं॥5॥ 🚩🙏जय जय श्री राम🙏🚩 ✍️Vibhor vashishtha Vs Meri Diary #Vs❤❤ गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा॥ साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं॥5॥ भावार्थ- पवन क
Peeyush Umarav
तू रणभूमि में खड़ा रक्षक है, मेरा प्रहरी, शत्रु भक्षक है, नतमस्तक हो शीश झुकाऊं, मैं एक दीप तेरे नाम का जलाऊं , तू चल रहा, हल सा खेत में, य
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हर रिश्ते के साथ जिंदगी का नया एक मोड़ यही तो है इस जीवन का बड़ा एक जोल। कुछ खट्टे है,कुछ मीठे है कुछ पुराने है ,कुछ नए है कुछ खून से है ,कुछ दिल से है कुछ दूर है,कुछ नजदीक है कुछ साथ रहते है,कुछ छूट जाते है हर एक अपनी पहेचान छोड़ जाते है। विश्वास और सच्चाई से बंधी इसकी है डोर जिसे ना कर पाए आंधी या तूफान कमजोर हर रिश्ते के साथ जिंदगी का नया एक मोड़ यही तो है इस जीवन का बड़ा एक जोल। कभी प्यार ,कभी तकरार रूठना मनाना इसकी एक पहेचान कभी सच होते हुए इसमें ख्वाब कभी आंखो को मिला पानी का सैलाब। हर रिश्ते के साथ जुड़ी है एक चाह, आसान है राह से मंजिल की सफर इसके संगाथ निभाते हुए फ़र्ज़ के साथ लेने है अधिकार इससे ही मिलता ये छोटे से सफर को आधार। हर जोल से मिला जिंदगी को नया एक मोड़ रिश्ते ही है इस आशियाने में बड़े अनमोल।। हर रिश्ते के साथ जिंदगी का नया एक मोड़ यही तो है इस जीवन का बड़ा एक जोल। #gif एक सोच में। हर रिश्ते के साथ जिंदगी का नया एक मोड़ यही तो है इस जीवन का बड़ा एक जोल। कुछ खट्टे है,कुछ मीठे है कुछ पुराने ह
अज्ञात
अगला भाग-2 ©Rakesh Kumar Soni लाड़ली बहना सुधा त्रिपाठी को समर्पित सम सुधा सुनाम है मंगल मूरति धाम.. केहि विध करूँ बखान मैं सद्गुन अनत ललाम... उर धरे भाव सो, करहुं
कवि राहुल पाल 🔵
मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी उनकी संगामी रचना में हम ढ़लते रहे !१! वो प्रमेय जैसे हमको सताते रहे हर एक बिंदु पर चाप हम लगाते रहे व्यास की आस थी वो त्रिज्या बने , हम परिधि पर बस चक्कर लगाते रहे !२! जब भी सोचा उन्हें संग जोड़ने को वो लगातार हमे खुद से घटाते रहे , जाने कैसे वो दिन प्रतिदिन दूने हुए हम गुणनखण्ड में ही टूट जाते रहे !३! वो न देखे हमारी तरफ अब कभी , साथ हर बिदु का उनसे निभाते रहे, वो थे हमारे हर केंद्र का केंद्र बिंदु , बस हर डगर डग को उनसे मिलाते रहे ..!४! जब मैं न्यून बना,वो अधिकतम बने कोंण सम्भव दशा से दूर जाते रहे विकर्ण थे मेरी इस जिंदगी का जो उनसे खुद को कई बार हम मिलाते रहे !५! वो अंक बने और मैं बना शून्य सा , वो दशमलव को लगा भूल जाते रहे प्यार के ब्याज का जब बंटवारा हुआ लाभ में वो रहे,हानि को खुद पाते रहे !६! तब सरल कोंण सी थी उनसे नजरें मिली आज समकोण से वो नजरें झुकाते रहे .. मैं बिना लक्ष्य की "राहुल "शब्द रेखा बना बस अनन्त यादें अनन्त तक ले जाते रहे !७! ~~((( गणित की विधा में प्रेम )))~~ मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी उनकी
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 18 हनुमानजी अक्षय कुमार का संहार करते है कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि। कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि॥18॥ हनुमानजी ने कुछ राक्षसों को मारा और कुछ को कुचल डाला और कुछ को धूल में मिला दिया और जो बच गए थे वे जाकर रावण के आगे पुकारे कि हे नाथ! वानर बड़ा बलवान है।उसने अक्षय कुमार को मार कर सारे राक्षसों का संहार कर डाला ॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम मेघनाद और ब्रह्मास्त्र का प्रसंग रावण मेघनाद को भेजता है सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना॥ मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥ रावण राक्षसों के मुख से अपने पुत्र का वध सुन कर बड़ा गुस्सा हुआ और महाबली मेघनादको भेजा॥और मेघनाद से कहा कि हे पुत्र!उसे मारना मत किंतु बांध कर पकड़ लें आना, क्योंकि मैं भी उसे देखूं तो सही वह वानर कहाँ का है॥ मेघनाद हनुमानजी को बंदी बनाने के लिए आता है चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥ कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥ इन्द्रजीत (इंद्र को जीतनेवाला) योद्धा मेघनाद असंख्य योद्धाओ को संग लेकर चला। भाई के वध का समाचार सुनकर उसे बड़ा गुस्सा आया॥हनुमान जी ने उसे देख कर यह कोई दारुण भट (भयानक योद्धा) आता है ऐसे जानकार कटकटा के महाघोर गर्जना की और दौड़े॥ हनुमानजी ने मेघनाद के रथ को नष्ट किया अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥ रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दई निज अंगा॥ एक बड़ा भारी वृक्ष उखाड़ कर उससे लंकेश्र्वर रावण के पुत्र मेघनाद को विरथ अर्थात रथहीन, बिना रथ का कर दिया॥उसके साथ जो बड़े बड़े महाबली योद्धा थे,उन सबको पकड़ पकड़ कर हनुमान जी ने अपने शरीर से मसल डाला॥ हनुमानजी ने मेघनाद को घूंसा मारा तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा॥ मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई॥ ऐसे उन राक्षसों को मारकर हनुमानजी मेघनाद के पास पहुँचे।फिर वे दोनों ऐसे भिड़े कि मानो दो गजराज आपस में भीड़ रहे है॥हनुमानजी मेघनाद को एक घूँसा मारकर वृक्ष पर जा चढ़े और मेघनाद को उस प्रहार से एक क्षण भर के लिए मूर्च्छा आ गयी। मेघनाद हनुमानजी से जीत नहीं पाया उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया॥ फिर मेघनाद ने सचेत होकर बहुत माया रची, अनेक माया ये फैलायी पर वह हनुमानजी से किसी प्रकार जीत नहीं पाया॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 718 से 729 नाम 718 महामूर्तिः जिनकी मूर्ति बहुत बड़ी है 719 दीप्तमूर्तिः जिनकी मूर्ति दीप्तमति है 720 अमूर्तिमान् जिनकी कोई कर्मजन्य मूर्ति नहीं है 721 अनेकमूर्तिः अवतारों में लोकों का उपकार करने वाली अनेकों मूर्तियां धारण करते हैं 722 अव्यक्तः जो व्यक्त नहीं होते 723 शतमूर्तिः जिनकी विकल्पजन्य अनेक मूर्तियां हैं 724 शताननः जो सैंकड़ों मुख वाले है 725 एकः जो सजातीय, विजातीय और बाकी भेदों से शून्य हैं 726 नैकः जिनके माया से अनेक रूप हैं 727 सवः वो यज्ञ हैं जिससे सोम निकाला जाता है 728 कः सुखस्वरूप 729 किम् जो विचार करने योग्य है 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 18 हनुमानजी अक्षय कुमार का संहार करते है कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि। कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल