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Deep Kush
जटा में हो गंगा विराजमान, और गले में सर्प कि माला हो, हो चिता भस्म से लिपटा जो, जो स्वंम ही विष का प्याला हो, मृत्यु भी नतमस्तक हो जाए, जो स्वयं में इतना बलशाली हो, वो ‘महाकाल' कहलाया है, जिसकी सारी दुनिया दीवानी हो !!! जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्। डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शि
Deep Kush
जटा में हो गंगा विराजमान, और गले में सर्प कि माला हो, हो चिता भस्म से लिपटा जो, जो स्वंम ही विष का प्याला हो, मृत्यु भी नतमस्तक हो जाए, जो स्वयं में इतना बलशाली हो, वो ‘महाकाल' कहलाया है, जो तीनों लोको का स्वामी हो !!! जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्। डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शि
Rakesh Kumar Dogra
My series on "Single Selfie " post no 8 तुम्हारे गमों के फुटकर सौदे तुम्हे महंगे पड़ते है, हम थोक के सौदागर हैं थोक में हमें सस्ते पड़ते हैं।
Imran Shekhani (Yours Buddy)
Neena Jha
ज़मींदार भूख लगी है खाना दो, दो वक़्त का नहीं एक वक़्त का ही दो, पेट पापी कहलाता है, इसके लिए कुछ करने दो, लड़की बिकती है तो बिकने दो, खाना उसे भी चाहिए न!, लड़का चोरी करे करने दो, पेट उसे भी भरना है न!, कोई झूठ बोले बोलने दो, उसे भी धोखा खाना है न! कोई खूनी बने बनने दो, खून उसे भी तो बनाना है न!, धन की मारामारी है, या गरीबी, बेरोज़गारी लाचारी है, अरे! वो ज़मींदार है, खेत खलिहान का भंडार है, फ़िर क्यों पेट पापी उसका? क्यों खून में चोरी-चकारी है? क्यों नीयत हर पल खोटी है? क्यों मार काट ही जीवन है? क्यों धोखा देना नियम उसका? भूख लगी है तो खाना लो, एक वक़्त नहीं, चार वक़्त का लो, कमा कर बेशक धन बचाओ, मग़र पेट, पापी न बनने दो! संजोगिनी ©Neena Jha #neverendingoverthinking #नीना_झा #जय_श्री_नारायण #संजोगिनी जय माँ शारदे 🙏 विषय...भूख लगी है खाना दो, दो वक़्त का नहीं एक वक़्त का ही दो, प
PRATIK MATKAR
तुझा माझा जमेना आणि तुझ्याविना करमेना रोज सकाळी तुझ्या गोड आवाजाने होणारी माझ्या दिवसाची सुरुवात आज झालीच नाही आणि मग थोड्या वेळाने माझ्या लक्षात आले की काल रात्री आपल्या झालेल्य
रजनीश "स्वच्छंद"
वो कहाँ जाएंगे।। मेरी बातों से बोलो रुठ कहाँ जाएंगे, भरी महफ़िल से बोलो उठ कहाँ जाएंगे। चोरी चकारी जो था काम उनका, ये दौलत वो बोलो लूट कहाँ जाएंगे। जा पहुंचा गिरेबां तक जो हाथ अपना, इन हाथों से बोलो छूट कहाँ जाएंगे। शर्मो-हय्या गिरवी रही इनकी तिजोरी में, ये लातों के बोलो भूत कहाँ जाएंगे। फन काढ़ थे जो बैठे किस्मत पे हमारी, अकड़ ये बोलो टूट कहाँ जाएंगे। भरे घड़े ये भर रहे जो जोर-शोर से, पाप के घड़े ये बोलो फूट कहाँ जाएंगे। मेरे लहु पे चल रही इनकी दुकान थी, अब ये बोलो सूट-बूट कहाँ जाएंगे। आंसुओं की नींव पे महल जो बन रहे, धनकुबेरों के बोलो गुट कहाँ जाएंगे। महफिलों में नाम जो उछला है बार बार, सनकी पिता के बोलो पूत कहाँ जाएंगे। मेरी बातों से बोलो रुठ कहाँ जाएंगे, भरी महफ़िल से बोलो उठ कहाँ जाएंगे। ©रजनीश "स्वछंद" वो कहाँ जाएंगे।। मेरी बातों से बोलो रुठ कहाँ जाएंगे, भरी महफ़िल से बोलो उठ कहाँ जाएंगे। चोरी चकारी जो था काम उनका, ये दौलत वो बोलो लूट कहाँ
शुभम सिसौदिया
हमें तो बनाया था उसने ही अपना दिखाया था उसने हमें एक सपना कहा था कि लाऊंगा बाहर से पैसा बनाऊंगा काशी को जापान जैसा कहां हैं तुम्हारे वो लाखो
शुभम सिसौदिया
Sagar vm Jangid
अगर मैं रावण होता तो जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् #dashhara #ravan जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकार चण्डताण