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Stories related to फेवा ताल मा

Vikas Sahni

#गाना_रोकना_मतलब_खाना_रोकना साँस रुक जाये तो हवा संगीत है आजकल दर्द की दवा संगीत है फिर भी नहीं उसे मिलता है ये यह तो बेहद बेरहम वह मीत है,

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#गाना_रोकना_मतलब_खाना_रोकना
साँस रुक जाये तो हवा संगीत है
आजकल दर्द की दवा संगीत है
फिर भी नहीं उसे  मिलता है ये
यह तो बेहद बेरहम वह मीत है,
जिसपे पुनः बना अधूरा गीत है।

आजकल गाना रोकना
मतलब खाना रोकना!
चरित्रहीनता है यह कह
उसे रोज़ाना रोकना!!
गाना रुके तो कविता बन जाये,
खाना रुके तो कविता बन जाये।

इस प्रकार प्यार में कोई ताल तोड़ जाए
तो बेशक वह उसे सारे साल छोड़ जाए,
नहीं पड़ने वाला दिल को कभी कोई फ़र्क 
संगीत स्वर्ग बने तो विरह वाला भोगे ऩर्क

फिर अचानक भीतर से कविता रोकती है,
फिर अचानक भीतर से कविता टोकती है,
"बस बहुत कर ली बड़ी-बड़ी बातें,
नींदों को भूलकर गुज़री कई रातें!
अब संगीत संगीत नहीं रहा,
अब कोई भी मीत नहीं रहा 
कि इंसानियत शर्मशार है, 
यह सोच कर धिक्कार है।
अब शराफ़त आफ़त बन कर डर गयी है
म्हारी महफ़िल महज़ लुटेरों से भर गयी है।"
अतः कविता की इन बातों ने,
अतः कविता की इन रातों ने,
उसे मुद्दे से त्वरित जुदा कर दिया 
जब संगीत को उसने खुदा कर दिया 
खुदा को भूलकर!
                                                            ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni #गाना_रोकना_मतलब_खाना_रोकना
साँस रुक जाये तो हवा संगीत है
आजकल दर्द की दवा संगीत है
फिर भी नहीं उसे  मिलता है ये
यह तो बेहद बेरहम वह मीत है,

Ravidash nayak

#Sad_Status मा❤ अनमोल विचार

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White पयार करना तो मा सेकरना यारो कयुँ की लडकी दिल तोडकर चलीजाति है मा कबिबि अपने बंचेको सोडकर नहि जाती है

©Ravidash #Sad_Status मा❤ अनमोल विचार

Parasram Arora

उपेक्षित मा

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White जिस मा ने बच्चो को अपनी ममत्व क़ी छाँव मे परवरीश देकर बड़ा किया था 

आज वो मा  उपेक्षित सी अपना जीवन किसी तरह गुजार रहीं  है 
लगता हैँ वे निर्मम औलादे मा के ममत्व का क़र्ज़ उतराना भूल गई है

©Parasram Arora उपेक्षित मा

Shashi Bhushan Mishra

#ताल-मेल बैठाना पड़ता#

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तालमेल   बैठाना   पड़ता,
मिलने आना-जाना पड़ता,

मज़बूरी को दरकिनार कर,
यारा  फ़र्ज़ निभाना पड़ता,

बदले हों हालात तो सबको,
वक्त की धुन पे गाना पड़ता,

चोर के मन में रहता खटका,
राह में जिसके थाना पड़ता,

खो जाने की  फ़िक्र  सताए,
उस मंज़र तक आना पड़ता,

हार मानकर बैठ न अब तू,
विजयी सदा सयाना पड़ता,

जैसा देश  भेष भी  'गुंजन',
अपने-आप  बनाना पड़ता,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' 
      प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #ताल-मेल बैठाना पड़ता#
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