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Nina
सजीला चंद्रमा चंद इच्छाओं से सजा, चंद अपेक्षाओं से धुला, सजाया था स्वयं रूप। स्वयं का स्व तनिक बड़ा हो गया, इस युग के अनुरूप। हृदय कोमल ही खिला, मन निर्मल ही रहा, न बदला प्रेम का स्वरूप। निश्छल, निर्मल, सजल, सरल निर्बाध बहे सु रूप। इस प्रेम की छवि, उस रूप की रश्मि, कहां संजोती शुद्ध रूप? सूरज की गर्मी वायु की नर्मी, किसको देती अरूप? श्वेत है कण कण, रुपहला सा वर्ण, ये प्रेम का प्रतीक, बिल्कुल सटीक, बन गया चंद्रमा, आज सा न सजीला। आज सा न सजीला!! ©Nina #Karwachauth हिंदी कविता
#Karwachauth हिंदी कविता
read moreRanjit Malik
Tere .mere pyaar ka silsila yuhi chalta rehey.Tamaam umar tak yeh prem ka diya jalta rahey . ©Ranjit Malik #Karwachauth