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Ek villain
संकर्षण ने भड़काऊ बयानों पर अखतर दौर आया है रवैया शिव से लेकर अपने आलेख में उचित ही कहा है कि भड़काऊ बयानों पर तंत्र की अनदेखी से समुदाय का नमन बढ़ती है जिससे समाज को भारी क्षति उठानी पड़ती है इसमें खास बात यही है कि तंत्र का एक रवैया आजादी के बाद से बढ़ता गया है समय-समय पर देश के खिलाफ आवाजें भी उड़ती रही है लेकिन मजबूती शासन प्रशासन तंत्र एकपक्षीय झुकाव हमेशा राय विश्वविद्यालयों में हिंदू देवी देवताओं पवित्र ग्रंथों रामायण महाभारत और गीत को लेकर अभद्र 80 जनक kalpana-1 बातों को साजिश साहित्य आजादी के नाम पर बढ़ाया गया है भाई ऐसी आजादी जो की तिथि आत्मक रही हो उसका समुदाय विशेष की कट्टरता की करण दबोचा गया यदि लोकतंत्र में किसी भी विषय पर चर्चा नहीं हो सकती तो क्या तानाशाह में होगी जबकि यह न्यायालय श्री राम के स्वरूप को काल्पनिक बताने वाली कांग्रेस के आग्रह को स्वीकार करने का तत्पर दिखाता है इसी कारण लोकतंत्र पर विस्तार खतरा मंडरा रहा है ना कि अभिव्यक्ति की तर्कपूर्ण देनी है लेकिन सही कहा है कि कोई भी अपने धर्म जाति संप्रदाय के लिए अधिकार नहीं ले सकता जो वह दूसरों को ना चाहे ©Ek villain #तंत्र का एक पक्षीय झुकाव #friends
Motivational indar jeet group
जीवन दर्शन 🌹 असंतुष्ट और उध्दिग्नि व्यक्ति जो सोचता है एक पक्षीय होता है और जो करता है , उसमें हड़बड़ी का समावेश रहता है , एसी मन:स्थिति में किए गए निर्धारण का प्रयास असफल ही होते हैं !.i. j ©motivationl indar jeet guru #जीवन दर्शन 🌹 असंतुष्ट और उध्दिग्नि व्यक्ति जो सोचता है एक पक्षीय होता है और जो करता है , उसमें हड़बड़ी का समावेश रहता है , एसी मन:स्थिति मे
Divyanshu Pathak
इंसान बनाओ मां ! : समाज का भौतिक जीवन स्तर, संस्कृति, मानसिकता, अपेक्षाभाव तथा मूल्यहीन जीवन विस्तार भी ऎसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। न तो कोई मां-बाप अपने बच्चों को कुछ समय देते हैं, न शिक्षकों को उनके जीवन से सरोकार रह गया है। शिक्षा के पाठ्क्रम तय करने वाले दिमाग से नकल करने वाले हैं। पढ़ाई को भी स्टेटस सिंबल बना दिया है। पेट भरना इसका उद्देश्य है। आज का शिक्षित, मन और आत्मज्ञान की दृष्टि से तो अपूर्ण ही कहा जाएगा। अपूर्ण व्यक्ति ही मनुष्योत्तर (पाशविक) कार्य के प्रति आकर्षित होता है। वरना जिस देश में इतना युवा वर्ग हो, वहां अपराधी चैन से जी सकता है! झूठे सपनों ने, बिना पुरूषार्थ के धनवान बन जाने की लालसा ने युवा वर्ग को चूडियां पहना दीं। छात्रसंघ चुनाव में तो वह अपनी शक्ति का राजनीतिक प्रदर्शन कर सकता है, किन्तु मौहल्ले के गुण्डे से दो-दो हाथ नहीं कर सकता। धूल है इस जवानी को, जो देश की आबरू से खिलवाड़ करे। भौतिकवाद ने जीवन को स्वच्छन्दता दी है। तकनीक ने जीवन की गति बढ़ा दी है। एक गलती करने के बाद पांव फिसल जाता है। लौटकर सीधे खड़े हो पाना कठिन
Divyanshu Pathak
ब्रह्मचर्य का विनाश ही वेद विद्या के लोप होने का कारण रहा है। कामुक व्यक्ति के पास वेद विद्या नहीं रह सकती। जैसे प्रकाश और अंधकार विरोधी होते हैं। दतिया स्वामी ने लिखा है कि आलस्य, प्रमाद, कुचेष्टा आदि दुर्गुण ब्रह्मचर्य के अभाव में ही उत्पन्न होते हैं। धैर्य का भी नाश होता है। : आज हम ध्यान में “कांशियसली”-प्रवृत्ति को दबाने का प्रयास कर रहे हैं और इसे ध्यान कह रहे हैं! यह ध्यान नहीं है-“सपे्रशन का”, दबाने का प्रया
N S Yadav GoldMine
श्री कृष्ण का धृतराष्ट्र को फटकार कर उनका क्रोध शान्त करना और धृतराष्ट्र का पाण्डवों को हृदय से लगाना पढ़िए महाभारत !! 📝📝 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व द्वादश अध्याय: श्लोक 1-17 :- श्री कृष्ण का धृतराष्ट्र को फटकार कर उनका क्रोध शान्त करना और धृतराष्ट्र का पाण्डवों को हृदय से लगाना. 📙 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायन जी कहते हैं -राजन्! तदनन्तर सेवक-गण शौच-सम्बन्धी कार्य सम्पन्न कराने के लिय राजा धृतराष्ट्र-की सेवा में उपस्थित हुए। जब वे शौच कृत्य पूर्ण कर चुके, तब भगवान मधुसुदन ने फिर उनसे कहा-राजन! आपने वेदों और नाना प्रकार के शास्त्रों का अध्ययन किया है। सभी पुराणों और केवल राजधर्मों का भी श्रवण किया है। 📙 ऐसे विद्वान, परम बुद्धिमान् और बलाबल का निर्णय करने में समर्थ होकर भी अपने ही अपराध से होने वाले इस विनाश को देखकर आप ऐसा क्रोध क्यों कर रहे हैं ? भरतनन्दन! मैंने तो उसी समय आपसे यह बात कह दी थी, भीष्म, द्रोणाचार्य, विदुर और संजय ने भी आपको समझाया था। राजन्! परंतु आपने किसी की बात नहीं मानी। 📙 कुरुनन्दन! हम लोगों ने आपको बहुत रोका; परंतु आपने बल और शौर्य में पाण्डवोंको बढा-चढ़ा जानकर भी हमारा कहना नहीं माना। जिसकी बुद्धि स्थिर है, ऐसा जो राजा स्वयं दोषों को देखता और देश-काल के विभाग को समझता है, वह परम कल्याण का भागी होता है। 📙 जो हित की बात बताने पर भी हिता हित की बातको नहीं समझ पाता, वह अन्याय का आश्रय ले बड़ी भारी विपत्तिbमें पड़कर शोक करता है। भरत नन्दन! आप अपनी ओर तो देखिये। आपका बर्ताव सदा ही न्याय के विपरीत रहा है। राजन्! आप अपने मन को वश में न करके सदा दुर्योधन के अधीन रहे हैं। अपने ही अपराध से विपत्ती में पड़कर आप भीमसेन को क्यों मार डालना चाहते हैं? 📙 इसलिये क्रोधको रोकिये और अपने दुष्कर्मोंको याद कीजिये। जिस नीच दुर्योधन ने मनमें जलन रखनेके कारण पात्र्चाल राजकुमारी कृष्णाको भरी सभामें बुलाकर अपमानित किया, उसे वैरका बदला लेनेकी इच्छासे भीमसेनने मार डाला। आप अपने और दुरात्मा पुत्र दुर्योधनके उस अत्याचारपर तो दृष्टि डालिये, जब कि बिना किसी अपराधके ही आपने पाण्डवों का परित्याग कर दिया था। 📙 वैशम्पायन उवाच वैशम्पाचनजी कहते हैं – नरेश्वर! जब इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने सब सच्ची-सच्ची बातें कह डालीं, तब पृथ्वी पति धृतराष्ट्र ने देवकी नन्दन श्रीकृष्ण से कहा- महाबाहु! माधव! आप जैसा कह रहे हैं, ठीक ऐसी ही बात है; परतु पुत्र का स्नेह प्रबल होता है, जिसने मुझे धैर्य से विचलित कर दिया था। 📙 श्रीकृष्ण! सौभग्य की बात है कि आपसे सुरक्षित होकर बलवान् सत्य पराक्रमी पुरुष सिंह भीमसेन मेरी दोनों भुजाओं- के बीच में नही आये। माधव! अब इस समय मैं शान्त हूँ। मेरा क्रोध उतर गया है, और चिन्ता भी दूर हो गयी है अत: मैं मध्यम पाण्डव वीर अर्जुन को देखना चाहता हूँ। समस्त राजाओं तथा अपने पुत्रों के मारे जाने पर अब मेरा प्रेम और हित चिन्तन पाण्डु के इन पुत्रों पर ही आश्रित है। 📙 तदनन्तर रोते हुए धृतराष्ट्र ने सुन्दर शरीर वाले भीमसेन, अर्जुन तथा माद्री के दोनों पुत्र नरवीर नकुल-सहदेव को अपने अगों से लगाया और उन्हें सान्तवना देकर कहा – तुम्हारा कल्याण हो। 📙 इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्तर्गत जल प्रदानिक पर्व में धृतराष्ट्र का क्रोध छोड़कर पाण्डवों को हृदयसे लगाना नामक तेरहवॉं अध्याय पूरा हुआ। N S Yadav .... ©N S Yadav GoldMine #gururavidas श्री कृष्ण का धृतराष्ट्र को फटकार कर उनका क्रोध शान्त करना और धृतराष्ट्र का पाण्डवों को हृदय से लगाना पढ़िए महाभारत !! 📝📝
Divyanshu Pathak
प्रकृति ने जीवन को पूर्णता देने के लिए नर-नारी दो भाव बनाए और हमने स्वेच्छा से अपूर्णता को स्वीकार किया। एक तरह से तो प्रकृति को चुनौती ही दी है। तब जीवन में सुख कैसे प्रवेश करेगा। #komal sharma #shweta sharma इसी स्वरूप को दूसरी तरह से भी देखा जा सकता है। शिक्षा में बुद्धि और शरीर का पोषण होता है। मन और आत्मा नगण्य या