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N S Yadav GoldMine

{Bolo Ji Radhey Radhey} सुंदर कांड :- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े #alone #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड :- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े हो गये। कपिश्रेष्ठ ने वहाँ सरल (चीड़), कनेर, खिले हुए खजूर, प्रियाल (चिरौंजी), मुचुलिन्द (जम्बीरी नीबू), कुटज, केतक (केवड़े), सुगन्धपूर्ण प्रियंगु (पिप्पली), नीप (कदम्ब या अशोक), छितवन, असन, कोविदार तथा खिले हुए करवीर भी देखे। फूलों के भार से लदे हुए तथा मुकुलित (अधखिले), बहुत से वृक्ष भी उन्हें दृष्टिगोचर हुए जिनकी डालियाँ झूम रही थीं और जिन पर नाना प्रकार के पक्षी कलरव कर रहे थे। 

 हनुमान जी धीरे धीरे अद्भुत शोभा से सम्पन्न रावणपालित लंकापुरी के पास पहुँचे। उन्होंने देखा, लंका के चारों ओर कमलों से सुशोभित जलपूरित खाई खुदी हुई है। वह महापुरी सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई हैं। श्वेत रंग की ऊँची ऊँची सड़कें उस पुरी को सब ओर से घेरे हुए थीं। सैकड़ों गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ ध्वजा-पताका फहराती हुई उस नगरी की शोभा बढ़ा रही हैं। 

 उस पुरी के उत्तर द्वार पर पहुँच कर वानरवीर हुनमान जी चिन्ता में पड़ गये। लंकापुरी भयानक राक्षसों से उसी प्रकार भरी हुई थी जैसे कि पाताल की भोगवतीपुरी नागों से भरी रहती है। हाथों में शूल और पट्टिश लिये बड़ी बड़ी दाढ़ों वाले बहुत से शूरवीर घोर राक्षस लंकापुरी की रक्षा कर रहे थे। नगर की इस भारी सुरक्षा, उसके चारों ओर समुद्र की खाई और रावण जैसे भयंकर शत्रु को देखकर हनुमान जी विचार करने लगे कि यदि वानर वहाँ तक आ जायें तो भी वे व्यर्थ ही सिद्ध होंगे क्योंकि युद्ध द्वारा देवता भी लंका पर विजय नहीं पा सकते। रावणपालित इस दुर्गम और विषम (संकटपूर्ण) लंका में महाबाहु रामचन्द्र आ भी जायें तो क्या कर पायेंगे? राक्षसों पर साम, दान और भेद की नीति का प्रयोग असम्भव दृष्टिगत हो रहा है। यहाँ तो केवल चार वेगशाली वानरों अर्थात् बालिपुत्र अंगद, नील, मेरी और बुद्धिमान राजा सुग्रीव की ही पहुँच हो सकती है। अच्छा पहले यह तो पता लगाऊँ कि विदेहकुमारी सीता जीवित भी है या नहीं? जनककिशोरी का दर्शन करने के पश्चात् ही मैँ इस विषय में कोई विचार करूँगा। 

 उन्होंने सोचा कि मैं इस रूप से राक्षसों की इस नगरी में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि बहुत से क्रूर और बलवान राक्षस इसकी रक्षा कर रहे हैं। जानकी की खोज करते समय मुझे स्वयं को इन महातेजस्वी, महापराक्रमी और बलवान राक्षसों से गुप्त रखना होगा। अतः मुझे रात्रि के समय ही नगर में प्रवेश करना चाहिये और सीता का अन्वेषण का यह समयोचित कार्य करने के लिये ऐसे रूप का आश्रय लेना चाहिये जो आँख से देखा न जा सके, मात्र कार्य से ही यह अनुमान हो कि कोई आया था। 

 देवताओं और असुरों के लिये भी दुर्जय लंकापुरी को देखकर हनुमान जी बारम्बार लम्बी साँस खींचते हुये विचार करने लगे कि किस उपाय से काम लूँ जिसमें दुरात्मा राक्षसराज रावण की दृष्टि से ओझल रहकर मैं मिथिलेशनन्दिनी जनककिशोरी सीता का दर्शन प्राप्त कर सकूँ। अविवेकपूर्ण कार्य करनेवाले दूत के कारण बने बनाये काम भी बिगड़ जाते हैं। यदि राक्षसों ने मुझे देख लिया तो रावण का अनर्थ चाहने वाले श्री राम का यह कार्य सफल न हो सकेगा। अतः अपने कार्य की सिद्धि के लिये रात में अपने इसी रूप में छोटा सा शरीर धारण करके लंका में प्रवेश करूँगा और घरों में घुसकर जानकी जी की खोज करूँगा। 

 ऐसा निश्चय करके वीर वानर हनुमान सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। सूर्यास्त हो जाने पर रात के समय उन्होंने अपने शरीर को छोटा बना लिया और उछलकर उस रमणीय लंकापुरी में प्रवेश कर गये।

©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड :- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े

N S Yadav GoldMine

{Bolo Ji Radhey Radhey} सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े #Ride #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े हो गये। कपिश्रेष्ठ ने वहाँ सरल (चीड़), कनेर, खिले हुए खजूर, प्रियाल (चिरौंजी), मुचुलिन्द (जम्बीरी नीबू), कुटज, केतक (केवड़े), सुगन्धपूर्ण प्रियंगु (पिप्पली), नीप (कदम्ब या अशोक), छितवन, असन, कोविदार तथा खिले हुए करवीर भी देखे। फूलों के भार से लदे हुए तथा मुकुलित (अधखिले), बहुत से वृक्ष भी उन्हें दृष्टिगोचर हुए जिनकी डालियाँ झूम रही थीं और जिन पर नाना प्रकार के पक्षी कलरव कर रहे थे। 

 हनुमान जी धीरे धीरे अद्भुत शोभा से सम्पन्न रावणपालित लंकापुरी के पास पहुँचे। उन्होंने देखा, लंका के चारों ओर कमलों से सुशोभित जलपूरित खाई खुदी हुई है। वह महापुरी सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई हैं। श्वेत रंग की ऊँची ऊँची सड़कें उस पुरी को सब ओर से घेरे हुए थीं। सैकड़ों गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ ध्वजा-पताका फहराती हुई उस नगरी की शोभा बढ़ा रही हैं। 

 उस पुरी के उत्तर द्वार पर पहुँच कर वानरवीर हुनमान जी चिन्ता में पड़ गये। लंकापुरी भयानक राक्षसों से उसी प्रकार भरी हुई थी जैसे कि पाताल की भोगवतीपुरी नागों से भरी रहती है। हाथों में शूल और पट्टिश लिये बड़ी बड़ी दाढ़ों वाले बहुत से शूरवीर घोर राक्षस लंकापुरी की रक्षा कर रहे थे। नगर की इस भारी सुरक्षा, उसके चारों ओर समुद्र की खाई और रावण जैसे भयंकर शत्रु को देखकर हनुमान जी विचार करने लगे कि यदि वानर वहाँ तक आ जायें तो भी वे व्यर्थ ही सिद्ध होंगे क्योंकि युद्ध द्वारा देवता भी लंका पर विजय नहीं पा सकते। रावणपालित इस दुर्गम और विषम (संकटपूर्ण) लंका में महाबाहु रामचन्द्र आ भी जायें तो क्या कर पायेंगे? राक्षसों पर साम, दान और भेद की नीति का प्रयोग असम्भव दृष्टिगत हो रहा है। यहाँ तो केवल चार वेगशाली वानरों अर्थात् बालिपुत्र अंगद, नील, मेरी और बुद्धिमान राजा सुग्रीव की ही पहुँच हो सकती है। अच्छा पहले यह तो पता लगाऊँ कि विदेहकुमारी सीता जीवित भी है या नहीं? जनककिशोरी का दर्शन करने के पश्चात् ही मैँ इस विषय में कोई विचार करूँगा। 

 उन्होंने सोचा कि मैं इस रूप से राक्षसों की इस नगरी में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि बहुत से क्रूर और बलवान राक्षस इसकी रक्षा कर रहे हैं। जानकी की खोज करते समय मुझे स्वयं को इन महातेजस्वी, महापराक्रमी और बलवान राक्षसों से गुप्त रखना होगा। अतः मुझे रात्रि के समय ही नगर में प्रवेश करना चाहिये और सीता का अन्वेषण का यह समयोचित कार्य करने के लिये ऐसे रूप का आश्रय लेना चाहिये जो आँख से देखा न जा सके, मात्र कार्य से ही यह अनुमान हो कि कोई आया था। 

 देवताओं और असुरों के लिये भी दुर्जय लंकापुरी को देखकर हनुमान जी बारम्बार लम्बी साँस खींचते हुये विचार करने लगे कि किस उपाय से काम लूँ जिसमें दुरात्मा राक्षसराज रावण की दृष्टि से ओझल रहकर मैं मिथिलेशनन्दिनी जनककिशोरी सीता का दर्शन प्राप्त कर सकूँ। अविवेकपूर्ण कार्य करनेवाले दूत के कारण बने बनाये काम भी बिगड़ जाते हैं। यदि राक्षसों ने मुझे देख लिया तो रावण का अनर्थ चाहने वाले श्री राम का यह कार्य सफल न हो सकेगा। अतः अपने कार्य की सिद्धि के लिये रात में अपने इसी रूप में छोटा सा शरीर धारण करके लंका में प्रवेश करूँगा और घरों में घुसकर जानकी जी की खोज करूँगा। 

 ऐसा निश्चय करके वीर वानर हनुमान सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। सूर्यास्त हो जाने पर रात के समय उन्होंने अपने शरीर को छोटा बना लिया और उछलकर उस रमणीय लंकापुरी में प्रवेश कर गये।

©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey}
सुंदर कांड:- चार सौ योजन अलंघनीय समुद्र को लाँघ कर महाबली हनुमान जी त्रिकूट नामक पर्वत के शिखर पर स्वस्थ भाव से खड़े

Vikas Sharma Shivaaya'

दशहरा के मंत्र  रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।  अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।।  रावण को रथ और श्रीराम #समाज

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दशहरा के मंत्र 



रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। 

अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।। 

रावण को रथ और श्रीराम को पैदल देखकर बिभीषन अधीर हो गए और प्रभु से स्नेह अधिक होने पर उनके मन में संदेह आ गया कि प्रभु कैसे रावण का मुकाबल करेंगे। श्रीराम के चरणों की वंदना कर वो कहने लगे।



नाथ न रथ नहि तन पद त्राना-केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥ सुनहु सखा कह कृपानिधाना-जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥ 

हे नाथ आपके पास न रथ है, न शरीर की रक्षा करने वाला कवच और पैरों में पादुकाएं हैं, इस तरह से रावण जैसे बलवान वीर पर जीत कैसे प्राप्त हो पाएगी? कृपानिधान प्रभु राम बोले- हे सखा सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ ये नहीं कोई दूसरा ही है॥



सौरज धीरज तेहि रथ चाका-सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका ॥ 

बल बिबेक दम परहित घोरे-छमा कृपा समता रजु जोरे ॥

इस चौपाई में श्रीराम ने उस रथ के बारे में बताया है जिससे जीत हासिल की जाती है। धैर्य और शौर्य उस रथ के पहिए हैं। सदाचार और सत्य उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। विवेक, बल, इंद्रियों को वश में करने की शक्ति और परोपकार ये चारों उसके अश्व हैं। ये क्षमा, दया और समता रूपी डोरी के जरिए रथ में जोड़े गए हैं।



ईस भजनु सारथी सुजाना-बिरति चर्म संतोष कृपाना ॥ 

दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा-बर बिग्यान कठिन कोदंडा ॥  

इस चौपाई में प्रभु ने सारथी के बारे में बताया है। जो रथ को चलाता है। ईश्वर का भजन ही रथ का चतुर सारथी है । वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान धनुष है।



अमल अचल मन त्रोन समाना-सम जम नियम सिलीमुख नाना ॥ कवच अभेद बिप्र गुर पूजा-एहि सम बिजय उपाय न दूजा ॥ 

पाप से मुक्त और स्थिर मन तरकस के समान है। वश में किया हुआ मन, यम-नियम, ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है।



सखा धर्ममय अस रथ जाकें-जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें ॥ 

हे सखा (बिभीषन) यदि किसी योद्धा के पास ऐसा धर्ममय रथ हो तो उसके सामने शत्रु होता ही नहीं, वो हर क्षेत्र में जीत हासिल करता है।



महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर

जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।। 

हे धीरबुद्धि वाले सखा सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार (जन्म मरण का चक्र) रूपी महान दुर्जय शत्रु को भी जीत सकता है,फिर रावण को जीतना मुश्किल कैसे हो सकता है।



सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज

एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज ।। 

प्रभु श्रीराम के वचन सुनकर बिभीषन प्रफुल्लित हो गए और उन्होंने प्रभु के चरण पकड़कर कहा, हे प्रभु, आपने इस युद्ध के बहाने मुझे वो महान उपदेश दिया है जिससे जीवन के किसी भी क्षेत्र में विजय पाने का मार्ग मिल गया है। ये मंत्र पाकर मैं धन्य हो गया

🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' दशहरा के मंत्र 


रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। 

अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।। 

रावण को रथ और श्रीराम

ajay jain अविराम

धर्म ध्वजा #बात

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शीश व्यभिचारियों के चरण झुकाते है
मिथ्यावाद पापियों के पैर भी दबाते है
धर्म ध्वजा जो श्री राम की अमानत है
सोचो हम कैसे कैसे हाथों मे थमाते है
अविराम धर्म ध्वजा

Fragrance

पताका #Diwali #समाज

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इस दिवाली पे मेरी फुलझड़ी 
को किसी और ने जलाया
मे भी कहा कम था। मे भी किसी का पटाका ले आया

©kumar rajput saket पताका

#Diwali

somnath gawade

विजयाची ही पताका

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       विजयाची ही भव्य पताका
      आसमंतासही देईल आव्हाने...
      येथील सह्याद्रीच्या कडे-कपारी
        शौर्याचीही स्फुर्तील कवने..
       


  विजयाची ही पताका

रवि फलटणकर

आकाशी लहरते शिवरायांची पताका..🚩 #nojotovideo

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Brandavan Bairagi "krishna"

विश्व में पताका फहराये मेरा भारत। #कविता

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विश्व में पताका फहराये मेरा भारत
उपलब्धियों बुलंदियों को छुये 
मेरा भारत
विश्व बंधुत्व का पाठ पढाये 
मेरा भारत
ऐसे भारत को मेरा बार बार
सलाम है।
जय हिंद विश्व में पताका फहराये मेरा भारत।

Praveen Jain "पल्लव"

#travelogue पताका नैतिकता की फहरानी है #nojotohindi #कविता

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Ghumnam Gautam

एक ऐसा इलाका चाँद पे है
नाम का अपने ख़ाका चाँद पे है
गर्व से क्यों भला न इतराएँ!
जब हमारी पताका चाँद पे है

©Ghumnam Gautam #chandrayaan3 #पताका 
#चाँद #गर्व #नाम #हमारी 
#ghumnamgautam
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