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काव्यात्मक अंकुर
वस्ती प्रगतीची वाट चालताना वृक्षतोडीची पद्धत स्वीकारली भगदाड पाडत धरतीला उंच इमारतीची वस्ती उभारली "ऐशो आरामाच्या चकमकीत सृष्टीची राख होई" ©अंकुर #काव्यात्मकअंकुर🌱 #वस्ती #अंकुर #काव्यात्मकअंकुर🌱 #त्रिवेणी #Triveni #marathi #writeaway #write #Building #development
Dhiraj Karandekar
Jiten rawat
इंसानों को इंसान की पहचान रहे, हैवानियत खत्म हो इंसानियत रहे, इंसानों की वस्ती में इंसान रहे! यहाँ कोई दुःखी न परेशान रहे, घरों में अपने सब खुशहाल रहे, इंसानों की वस्ती में इंसान रहे! लबों पर लोगों के मुस्कान रहे, किसी की कोई बदनामी न हो, ऐसी हम-सब की पहचान रहे! इंसानो की वस्ती में इंसान रहे!! इंसानो की वस्ती में इंसान रहे!! इंसानों को #इंसान की #पहचान रहे, #हैवानियत खत्म हो #इंसानियत रहे, इंसानों की #वस्ती में इंसान रहे! यहाँ कोई #दुःखी न #परेशान रहे, #घरों में
sagar chauhan
yogesh atmaram ambawale
मोठे मोठे बंगले नि उंचच उंच इमले, तरीही घर हे चार भिंतीचेच बनले. जरी घर हे चार भिंतीनेच बनलेले असते, तरी त्यात पूर्ण विश्व सामावले असते. स्वर्गाहून सुंदर अशी ती वास्तू असते, घर म्हणतात त्याला जिथे आई वडिलांची वस्ती असते. घर हे चार भिंतीचे नंदनवन ही असते, मुलांच्या कल्लोळाने जिथे मस्ती ही चालते. घर हे चार भिंतीचे सजवण्या तिचीही साथ असते, एकट्याने जमत नसते सोबत अर्धांगिनी ही लागते. घर हे चार भिंतीचे नुसतेच घर नसते, प्रेम,नाते,आपुलकीची भावनाही तिथेच जुळलेली असते. शुभ संध्या मित्रहो आताचा विषय आहे घर चार भिंतींचे.. #घरचारभिंतींचे चला तर मग लिहुया. #collab #yqtaai #YourQuoteAndMine Collaborating with Y
Divyanshu Pathak
मेरा मन करता है तुमसे प्यार करूँ बन दिवाना बस तुम मेरे साथ रहो जग चाहे हो जाये बेगाना ! प्यार के बारे में जब भी कोई सोचता है तो यही ख़्याल दिल में सबसे पहले आता है । : वक़्त गुजरता है धीरे धीरे यह अभिशप्त बनकर रह जाता है । : या तो
Yashpal singh gusain badal'
बंधन खुशियौँ पे पहरा है । दिलोँ में खामोशी है । आखौँ मेँ आँसू हैँ । जिश्म पे बेहोशी है । किन रस्तोँ पे तुम चले यार! तुम ही नहीँ समझ पाये ! फिर किसके खुशी के खातिर, इतनी दूर निकल आये । मंजिल नजर नहीँ आती ! हो गये कदम घायल , कानोँ मेँ अभी बजते हैं , उस बेबफा के पाँव के पायल!, उस बेरहम के सदमे से , अब तलक नहीँ उबर पाये ! फिर किसके खातिर आज तुम , इतनी दूर निकल आये । । रात बहुत अँधेरी है , वक्त ने नजर फेरी है । सारे सितम हो गये अब , किस सितम की देरी है ? उन सितमगरोँ की वस्ती मेँ किसे अपना समझ आये ! जिसकी खुशी के खातिर , इतनी दूर निकल आये । यशपाल सिह बादल ©Yashpal singh gusain badal' #Dark खुशियौँ पे पहरा है ।दिलोँ मैँ खामोशी है । आखौँ मेँ आँसू हैँ । जिश्म पे बेहोशी है । किन रस्तोँ पे तुम चले यार! तुम ही नहीँ समझ पाये
Ravendra
sandy
❤️💛❤️ अनामिका 💛❤️💛 "लैंगिक सतावणीस प्रतिबंध" (Prevention of Sexual Harassment) असे काहिसे नोटिस बोर्डवर वाचले आणि तेवढ्यात आलियाच्या अॉफिसा