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Parasram Arora
White वे भी क्या दिन थे ज़ब मै ठहाके मार कर हँसा करता था बिना शिकायत के जिंदगी बसर करता था छोटे छोटे खबाब देख कर जिंदगी के दिन काट लिया करता था रफ्ता रफरता वक़्त गुजरता गया और बचपन पीछे छुटता गया और मै जवान होता गया ©Parasram Arora भी क्या दिन थे
भी क्या दिन थे
read moreF M POETRY
Unsplash दिल तड़पता है जांन जाती है.. आपकी याद ऐसे आती है.. यूसुफ़ आर खान... ©F M POETRY #आपकी याद ऐसे आती है...
#आपकी याद ऐसे आती है...
read morePraveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी घुटन कियो लिबासों में हो रही है फेशनो के नाम पर नंगेपन की नुबायस हो रही है सादगी अंगों की बनी रहे सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे लगता है बाजारू रुख असभ्यताओ को निमंत्रण दे रहा है फले फूले बाजार,कट लिबास कर अंगप्रदर्शन को तज्जबो दे रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #chaandsifarish सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे
#chaandsifarish सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे
read moreShashi Bhushan Mishra
आस्तीन के साँप बहुत थे फुर्सत में जब छाँट के देखा, झूठ के पैरोकार बहुत थे आसपास जब झाँक के देखा, बाँट रही खैरात सियासत मेहनतकश की झोली खाली, नफ़रत की दीवार खड़ी थी अल्फ़ाज़ों को हाँक के देखा, जादू-टोना, ओझा मंतर, पूजा-पाठ सभी कर डाले, मिलती नहीं सफलता यूँही धूल सड़क की फाँक के देखा, धरती से आकाश तलक की यात्रा सरल कहाँ होती है, बड़ी-बड़ी मीनारों से भी करके सीना चाक के देखा, कदम-कदम चलता है राही दिल में रख हौसला मिलन का, मंज़िल धुँधला दिखा हमेशा सीध में जब भी नाक के देखा, चलना बहुत ज़रूरी 'गुंजन' इतनी बात समझ में आई, हार-जीत के पैमाने पर ख़ुद को जब भी आँक के देखा, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' ©Shashi Bhushan Mishra #आस्तीन के सांप बहुत थे#
#आस्तीन के सांप बहुत थे#
read moreKamal bhansali
White शीर्षक : ऐसे ही अब जीना है.... खुशहाल रहे जीवन, ये अहसास हर कोई करता प्रश्न गहन, फुर्सत में कौन जिंदगी से ये बात करता ! दौड़ रही राहें, पांवों का रुकना अब मुश्किल लगता अगर भूल से गिर गये तो आजकल कौन किसे उठाता ! हसरतों भरे आशियाने सज कर भी वीराने से लगते दुनियादारी निभाने कभी मुस्कुराते चेहरे संग दिख जाते रिश्तों के संसार में मजबूरी की आह रोज सुनाई देती राजनीति की बीमारी जग बंधनों में भी अब नजर आती उम्र की कोई कद्र न हो तो रिश्तों में मिठास नहीं रहती किसे समझाएं ! टूटे सूखे पत्तों से महक कम ही आती फलसफा जीने का, आज में ही अब सब कुछ पाना है धोखा दे रही सांसे, उन पर भी अब विश्वास का रोना है "कमल", सुख अब संसार का सुंदर टूटा सा खिलौना है कल्पना में ही सब कुछ पाना, ऐसा ही अब ये जमाना है ✍️ कमल भंसाली ©Kamal bhansali # ऐसे ही अब जीना है#कमल भंसाली
# ऐसे ही अब जीना हैकमल भंसाली
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