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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी सोहवते चाय की, शर्मिंदगी जता रही है मेजबानी के अभाव में कपो पर उदासी छा रही है लते लगी थी जिन्हें चाय की वो भी महँगाई की मार से पत्ती चीनी ईंधन भी नही जुटा पा रही है इज्जत किसी की ना जाय इसलिये चाय छोड़ने की दलीले काम आ रही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #chai पत्ती चीनी ईंधन भी नही जुटा पा रही है
#chai पत्ती चीनी ईंधन भी नही जुटा पा रही है
read moreShailendra Anand
रचना दिनांक,,28,,11,,2024 वार,, गुरुवार समय,, सुबह पांच बजे ्््भावचित्र ्् ््््निज विचार ्् ्््शीर्षक ््् ््ये मोहब्बत में दिल से, जन्मा ये आत्मप्रेम का मन्ज़रनामा््््रचना्््भावचित्र ््् ््ये मोहब्बत और दिल से, जन्मा आत्म मन्ज़रनामा्््् वाह बहुत खूब जनाब ने फ़रमाया है,, यह दिल बाजार से उठकर, किसी नक्काशी वाले के हाथ पत्थर के बुत में, हथौड़े छिनी और उस पत्थर के बुत में समा गई।। वो मोहब्ब्त जो निकलती भी नहीं, और मेरे घर आंगन में किराये के,, इस दिल के दरवाजे पर दस्तक दे चुकी है ।। अब बताओ मैं करु तो क्या करु, ,,हरुफ से स्वरुप में विराज रही है, प्रेम शब्द की शब्दावली से धड़कने बनकर, दिलों में बारुद लेकर विस्फोट कर चुकी हैं ,, अब जाय तो मस्तिष्क रुपी चक्की में पीस पीस कर देख रहा हूं।। मैं इस पत्थर की बेजान शिला मैं शैलेंद्र जो पत्थर ही मेरा शाब्दिक अर्थ, मौलिक कल्पना में ही आनंद है,, जो कला संस्कृति साहित्य में , एक जीवंत कलाकृति होती है।। यही है मोहब्बत का मन्ज़रनामा, जो हर पल हर क्षण हरहाल में,, अपने वज़ू में इल्म नूरानी मोज्जां , चमत्कार से कम नहीं है।। हम तो बस एक फानूस है, किसी की मोहब्बत भरी नज़रों के,, आप मेरे दिल का आयना नजरिया है,।। यह दरिया दिल के समन्दर में,, मिले ना मिले ये मोहब्बत, ये मन्ज़रनामाये दिलों की पालकी है।। ्््््कवि शैलेंद्र आनंद ््् 28,,, नवम्बर 2024,, ©Shailendra Anand हिंदी शायरी ्््भावचित्र ््््् कवि शैलेंद्र आनंद
हिंदी शायरी ्््भावचित्र ््््् कवि शैलेंद्र आनंद
read moreShailendra Anand
White रचना दिनांक,,,9,,,,11,,,2024,, वार,,, शनिवार समय,,, सुबह ्््पांच बजे ््््निज विचार ््् ्््भावचित्र ्््् ्््शीर्षक ््् ््््हे मां भारती भगवती तेरे चरणों में मेरा शीश समर्पित करिष्यामि ्् ््् ््््छाया चित्र में दिखाया गया कि चर्चारत विचार सच में बहुत सुंदर है,, विचार सच में देश धर्म कर्म से ही एक नई दिशा लेकर चलते हैं, मां शब्द में प्राणपण समर्पण भाव वंशानुगत देवत्व प्राप्त , देश धर्म कर्म दान पुण्य में सब कुछ लगन से, शीश अपना मां भगवती चरणों में समर्पित करिष्यामि ्् ््््कहत पुनि पुनि सुधि ले अपन में,, ज्ञानरस ज्ञानयज्ञं यथायोग्य संस्कार है।।1।। सब मिलहि प्रभु में एक नज़र सब धर्मों में,, कारन कवन कुछ नाही आणि सुमंगला चार है।। 2।। तन मन में सब कुछ है लेकिन सुखद है विश्राम,, करत अभ्यास अंजना मानी, सिंहवाहिनी दूर्गेश्वरी कालरात्रि सिद्धेश्वरी।।3।। मनमंगल तनबुध्यश्चं नवमंशुक़ं मांदैवीयसिध्ददात्री, चंद़ गुरुवर्य आराध्यमं पुज्यं श्रद्धा मेवच अष्टमंतिथि महागौरीश्चं ।।4 ।। पुनश्चंस्मरणं महादेवीचं नवरात्र पर्व शुक़वासरे,, महादैवीय नवमंशुक़ं मांदैवीयसिध्ददात्रीचं,।।5 ।। चित्र मानस हदयं च पाण्डित्यं कर्म भूमि वर्चस्व,, ब़म्ह कर्ममंत्र यंत्र देवत्व कल्पना, साधना तपस्या खुद में हो,।।6 ।। संत समागम प्रेम शब्द है जाति धर्म भाषा से, जन्मा सदविचार पर सच्चाई से ही चलना ही मानव जीवन का कमंयोग आधार है।। 7 ।। सद्गपुरुषो के सद्गुणों में संतुलनरखना ही समय काल की गणना है,, सत्य सनातन विचार सच में बहुत सुंदर सार है।। 8।। ्भावचित्र ् में मानसिक रूप में,अनेक निराले अंदाज समर्पण सनातन संस्कृति में गुंथी हुई,, धुन में मगन मस्त रहो मस्ती छाई हुई है प्रेम शब्द में।।9 ।। प्राणपण लफ्ज़ निकले नयन सजल नेत्रों से , देखा और कहा गया शहीद मां शब्द में ,, प्राणपण समर्पण भाव वंशानुगत देवत्व प्राप्त देश धर्म कर्म दान पुण्य में।।10।। सब कुछ लगन से शीश अपना मां भगवती के चरणों में समर्पित करिष्यामि,, नमन वन्दंनीय मां भारती की जय हो।। 11 ।। कवि शैलेंद्र आनंद 9,,, नवम्बर 2024,,, ©Shailendra Anand #love_shayari मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर स्टूडेंट् ्््भावचित्र ््््् कवि शैलेंद्र आनंद
#love_shayari मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर स्टूडेंट् ्््भावचित्र ््््् कवि शैलेंद्र आनंद
read moreBharat Bhushan pathak
सब्ज़ियों को देख रोटी मुँह फुलाती इस तरह। जन्म-जन्मांतरों के सौत लड़ती जिस तरह।। डुब जाए रोटियाँ सब्ज़ियों की ख़्वाहिश है। उग जाने रोटियों में देखिये ज़ोर-आजमाईश है।। सब्ज़ियों का रोटियों से मुहब्बत मुमकिन नहीं। दूर रहती हैं ये जैसे साथ चीनी नमकीन नहीं।। ©Bharat Bhushan pathak सब्ज़ियों को देख रोटी मुँह फुलाती इस तरह। जन्म-जन्मांतरों के सौत लड़ती जिस तरह।। डुब जाए रोटियाँ सब्ज़ियों की ख़्वाहिश है। उग जाने रोटियों म
सब्ज़ियों को देख रोटी मुँह फुलाती इस तरह। जन्म-जन्मांतरों के सौत लड़ती जिस तरह।। डुब जाए रोटियाँ सब्ज़ियों की ख़्वाहिश है। उग जाने रोटियों म
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