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Nisheeth pandey
शीर्षक - निःस्वार्थ प्रेम ➖➖➖➖➖➖➖ मैं यादों की गठड़ी खोलूँ तो, तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ बहुत याद आते हैं.... मैं गुजरे पल के ख्यालों में डूबू तो, मेरे हाथों में तुम्हारे हाथ बहुत याद आते हैं.... अब जाने कौन सी महलों की नगरी में, रंग-रैलियों में भूल गयी मुद्दत से....😔_ मैं यादों की रात में जागूँ तो , तुम्हारे शब्दों की छुअन बहुत याद आते हैं.... तुम्हारी बातें थीं फूलों की हँसी जैसी, लहजे तेरे खुशबू जैसे थे..… मैं वीरानगी की तन्हाई में टहलूँ तो, तुम्हारी उंगलियों की छुअन मेरी उंगलियों को बहुत याद आते हैं.... तुम्हारी चाहत बदल गयी, एक नए वफ़ा में ढल गयी..…. अब तुम्हें नए फितूर से फुरसत नही, अब तुम्हें मेरी मोहब्बत की जरुरत नही.. किये वादे कसमें वफा की बातें गुम हो गये हैं, "तू" अब "तुम" नहीं रहीं "आप" हो गई है... मैं यादों की गठड़ी खोलूँ तो, तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ बहुत याद आते हैं.... तूम बिन रूठा रूठा उम्र रिसता जा रहा है, जीवन रंगहीन उबाऊ किताब सा बन रहा है... कभी तुम्हारी याद में हर्ट अटैक सा दर्द दे जाती है और कभी यादों की लतीफ़ा होठों पर स्माइल दे जाती है ... जानता हूं अब तूम गुल्लर की फूल हो गयी मेरे लिये, जानता हूँ तुम्हें पाना क्या देखना भी सम्भव नहीं मेरे लिये ... जी लो तुम अपने पलों को हस के मेरी जान, फिर लौट के निःस्वार्थ प्रेम में फ़ना होने के जमाने नहीं आते..... *निशीथ* ©Nisheeth pandey शीर्षक - निःस्वार्थ प्रेम ➖➖➖➖➖➖➖ मैं यादों की गठड़ी खोलूँ तो, तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ बहुत याद आते हैं.... मैं गुजरे पल के ख्यालों