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New 'mahabharat लगा दो' Quotes, Status, Photo, Video

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Shashi Bhushan Mishra

#दिल पर लगा दिया#

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New Year 2024-25 दिल की किताब आंखों से पढ़ने को बेक़रार,
नज़रें मिलाकर देख लो तुम मुझसे एकबार,

दिल में रहा  क़ायम ये भ्रम  है प्यार उन्हें भी,
नज़रें  बचाकर   देखते   देखा  है  कई  बार,

सूरजमुखी  सा  आफ़ताब  देख  खिल उठे,
हर सुब्ह  रहा करता है  इस कद्र  इंतज़ार,

फ़ुरसत  में  किसी  रात  चांद  डूबता  नहीं,
मिलती तो मांग लाते हम भी चांदनी उधार,

हुस्न-ओ-अदा पर फ़िदा हुए  राह के पत्थर,
रुक जाए मुसाफ़िर भी राह चलते कई बार,

महफूज़ मेरा चैन-ओ-सुकूं उनकी फ़ज़ल से,
बख़्शी ख़ुदा ने  दुआ की दौलत भी बेशुमार,

दीदार-ए-हुस्न   मुकम्मल  होता नहीं कभी,
होती है नुमाइश में झलक गोया क़िस्त बार,

फूलों  के  ईर्द-गिर्द  सुनूं  भ्रमर का 'गुंजन',
दिल पर लगा दिया खाली है का इश्तिहार,
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' 
            प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #दिल पर लगा दिया#

SohrabAlam

वख़्त लगा दो वक़्त बनाने मे ,कसम खुदा की...💯👍💯❤️

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Parasram Arora

दो गज़ जमीन

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Unsplash बहूत रात  जागने के बावजूद.
 एक गहरी नींद मुझे  मिली नहीं 

कितना बड़ा ये जहांन है 
फिर भी  रहने के लिए 
दो गज़ ज़मीन मुझे मिली नहीं 

खुलकर रोने क़ी ख़्वाहिश थीं मेरी.
पर रोने के लिए घर मेi खाली कोना मुझे मिला नहीं

©Parasram Arora दो गज़ जमीन

NOTHING

DR. LAVKESH GANDHI

जलन # # जलने लगा जमाना मुझे#

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White जमाना 

 जमाने ने गलतियांँ करके 
मुझे शहर में मशहूर कर दिया
 जब मैं शहर में मशहूर हो गया 
तो जमाना खुद मुझे जलने लगा

©DR. LAVKESH GANDHI #जलन #
# जलने लगा जमाना मुझे#

Ashraf Fani

बहरहाल! ज़िन्दगी इतनी सस्ती हुई कैसे जो थी करोड़ों की कोई दो कौड़ियों में इसे गिनने लगा #ashraffani शायरी हिंदी में शेरो शायरी 'दर्द भरी शाय

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White बहरहाल! ज़िन्दगी 
इतनी सस्ती हुई कैसे
जो थी करोड़ों की 
कोई दो कौड़ियों में
इसे गिनने लगा

©Ashraf Fani बहरहाल! ज़िन्दगी 
इतनी सस्ती हुई कैसे
जो थी करोड़ों की 
कोई दो कौड़ियों में
इसे गिनने लगा
#ashraffani  शायरी हिंदी में शेरो शायरी 'दर्द भरी शाय

Avinash Jha

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha #संशय
#Mythology  #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun

हिमांशु Kulshreshtha

जो लगा उन्हें

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White जो लगा उन्हें
 इश्क़ है मुझे उनसे 
वो, बेतरह मगरूर हो गए
भूल गए वादे, इक़रार सभी
बस दूर मुझ से हो गए
मलाल महज इतना ही रहा
माना था जिन्हें ना ख़ुदा अपना
वही हम से दूर हो गए

©हिमांशु Kulshreshtha जो लगा उन्हें

Parasram Arora

दो किनारे

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White काफ़ी  दिनों तक  
साथ साथ  हम चलते 
रहे फिर एक 
दिन अलग हुए 

अब मुझे  तलाश है 
उस जगह की जहा 
नदी के दोनों किनारे
 जा कर मिलते हो

©Parasram Arora दो किनारे

Ravendra

होलिया मेला में लगा बच्चों का झूला

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