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GULAM MOHMAD
किसी पे राज़-ए-मुहब्बत न आशकार किया तेरी नज़र के बदलने का इंतज़ार किया न कोई वादा था उनसे न कोई पाबन्दी तमाम उम्र मगर उनका इंतज़ार किया ठहर के मुझपे ही अह्ल-ए-चमन की नज़रों ने मेरे जुनून से अंदाज़ा-ए-बहार किया सहर के डूबते तारो, गवाह रहना तुम कि मैंने आख़िरी साँसों तक इंतज़ार किया जहाँ से तेरी तवज्जोह हुई फसाने पर वहीं से डूबती नज़रों नसे इख्तिसार किया यही नहीं कि हमीं इंतज़ार करते रहे कभी-कभी तो उन्होंने भी इंतज़ार किया ©Gulam mohmad GULAM MOHMAD शायरी गजल है #crimestory शायरी गजल
Maroof alam
गजल दिल को दिलासा देकर बहार मे छोड़ गया था कोई हमे गमखानों की गार मे छोड़ गया था टूटा जब गुलदस्ता तब हुआ हमे मालूम खत को लिखकर कोई गुलदान मे छोड़ गया था इसी एक बात पर उलझे हुए हैं अब तक पैगाम ऐ उल्फ़त को कौन ये गुमनाम मे छोड़ गया था मारुफ आलम गजल/शायरी
Maroof alam
बहुत हुआ हमें नुकसान राहों मे छूट गये सब मेहरबान राहों मे भूखे प्यासे तड़प रहे काफिले रहा न कोई कदरदान राहों मे हमने तो यूहीं पुकार लिया तुझे देखा जो रोता परेशान राहों मे अपना दर्द खुद से ही कह लो न रखो किसी पे अहसान राहों मे किसी को कोई निदा न देना दिल लूटें तुझे जब निगेहबान राहों मे राह के पत्थर को ठोकर न लगे करना इतना सा एहतराम राहों मे सफर ये भी खत्म होगा "आलम" समझ खुद को मेहमान राहों मे मारूफ आलम गजल/शायरी